भगवान विष्णु से मिलने उनके धाम वैकुण्ठ पहुंचे जहाँ उनकी भेंट जय-विजय से हुई
यह तो हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी के साथ वैकुण्ठ धाम में क्षीर सागर पर अपने शेषनाग पर विराजमान होते है। यही उनका निवास स्थान होता है तथा इसके द्वारपाल जय-विजय नाम के दो देवता होते है। चूँकि उनके ऊपर भगवान विष्णु के धाम के प्रहरी का भार होता है, इसलिये किसी को भी भगवान विष्णु से मिलने से पहले उनकी आज्ञा लेना आवश्यक होता है।

किंतु एक समय ऐसा भी आया जब जय-विजय को भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों के द्वारा श्राप मिला जिसके कारण उन्हें तीन जन्म भगवान विष्णु के शत्रु के रूप में लेने पड़े। आज हम आपको उसी कथा के बारे में विस्तार से बताएँगे।
जय-विजय को मिले श्राप की कथा
भगवान ब्रह्मा के चारों मानस पुत्र आये श्रीहरि से मिलने
भगवान ब्रह्मा के चार मानस पुत्र थे जिनके नाम सनक, सनंदन, सनातन व सनतकुमार थे। यह तीनों भगवान ब्रह्मा के विचारों से उत्पन्न हुए थे जिन्हें हम चार वेद भी कह सकते है। अपने तपोबल के कारण ये चारों आयु में बड़े होने के पश्चात भी यौवन दिखते थे।
एक दिन चारों भगवान विष्णु से मिलने उनके धाम वैकुण्ठ पहुंचे जहाँ उनकी भेंट जय-विजय से हुई। उन्होंने जय विजय से अंदर जाने का आग्रह किया लेकिन अपने अहंकार में चूर जय-विजय ने उन्हें अंदर नही जाने दिया। उन्होंने ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों से कहा कि इस समय श्रीहरि विश्राम कर रहे है तथा अभी वे किसी से नही मिल सकते। इसलिये वे उनसे भेंट करने के लिए किसी और समय आये।
जय-विजय को ब्रह्मा के पुत्रों से मिला श्राप
उनके इस व्यवहार से ब्रह्मा के चारों पुत्र रुष्ट हो गए तथा उनसे कहा कि भगवान विष्णु का कोई भी भक्त उनसे कभी भी मिल सकता है। अपने भक्तों के लिए भगवान विष्णु कभी व्यस्त नही होते। तुम लोगों ने अहंकार के बल पर हमें रोकने का प्रयास किया है। इसलिये हम तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम इस लोक की बजाये पृथ्वी लोक (मृत्यु लोक) में जन्म लोगे तथा एक सामान्य मनुष्य की भांति जीवन व्यतीत करोगे।
जय-विजय की श्रीहरि से प्रार्थना
ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों से मिले श्राप से जय-विजय में भय व्याप्त हो गया। उसी समय श्रीहरि भी अपने द्वार पर आ पहुंचे तथा संपूर्ण घटना का ज्ञान उन्हें हुआ। उन्होंने ब्रह्मा जी के चारों पुत्रों से अपने द्वारपालों के कृत्य के लिए क्षमा मांगी।
इसके पश्चात जय-विजय ने भी अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की तथा श्रीहरि से आग्रह किया कि वे उन्हें श्राप से मुक्त करे। इस पर श्रीहरि ने कहा कि वे ब्रह्म वाक्य को असत्य नही करना चाहते इसलिये यह श्राप तुम्हें भोगना ही पड़ेगा।
अपने द्वारपालों की पीड़ा देखकर श्रीहरि ने उन्हें दो रास्ते दिए। उन्होंने जय-विजय से कहा कि तुम ब्रह्म पुत्रों से मिले श्राप स्वरुप इस पृथ्वी पर तो जन्म लोगे लेकिन तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं। प्रथम रास्ते के अनुसार तुम्हें इस पृथ्वी पर सात जन्म लेने पड़ेंगे जिसमें तुम मेरे भक्त होंगे तथा द्वितीय रास्ते के अनुसार तुम्हें इस पृथ्वी पर तीन जन्म लेने पड़ेंगे जिसमें तुम मेरे शत्रु होंगे।
चूँकि जय-विजय श्रीहरि के बहुत बड़े भक्त थे, इसलिये सात जन्मों का विग्रह उनसे सहा नही जाता। इसलिये उन्होंने श्रीहरि से अपने तीन जन्म शत्रु रूप में मांगे ताकि वे जल्द से जल्द वैकुण्ठ धाम में श्रीहरि के पास आ सके।
जय–विजयकेपुनर्जन्म
भगवान ब्रह्मा के पुत्रों से मिले श्राप के कारण हर युग में जय-विजय का दैत्य, दानव तथा असुर रूप में जन्म हुआ। हर युग में उनकी शक्ति कम होती गयी तथा हर युग में श्रीहरि ने उनका वध करने के लिए अवतार लिया। सतियुग में उनका जन्म हिरण्यकश्यपु व हिरण्याक्ष के रूप में हुआ। श्रीहरि को दोनों का वध करने के लिए दो अलग-अलग अवतार लेने पड़े जो कि क्रमशः नरसिंह तथा वराह अवतार थे।
इसके पश्चात त्रेता युग में दोनों का जन्म रावण तथा कुंभकरण के रूप में हुआ तथा इस युग में भगवान ने श्रीराम के रूप में अवतार लेकर दोनों का वध किया। श्रीराम अवतार का मुख्य उद्देश्य दोनों का वध करना ही था। अपने तीसरे जन्म में जय विजय द्वापर युग में शिशुपाल तथा दंतवक्र के रूप में जन्मे। इस युग में भगवान ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तथा दोनों का वध किया लेकिज इस युग में भगवान श्रीकृष्ण का उद्देश्य केवल इतना ही नही अपितु महाभारत में भी भूमिका निभाना था।
इसके पश्चात जय-विजय का श्राप पूर्ण हो गया और वे पुनः अपने धाम को लौट गए।
Anupama Dubey