आज हम हिरण्यकश्यप की कथा के बारे में जानेंगे
हिरण्यकश्यप सतयुग में जन्मा एक दैत्य राजा था जो अति-पराक्रमी तथा शक्तिशाली था तथा जिसको हिरण्यकशिपू या हिरण्यकश्यपु के नाम से भी जाना जाता है। उसका जन्म महर्षि कश्यप के कुल में हुआ था। साथ ही उसको भगवान ब्रह्मा से विचित्र वरदान मिला था। भगवान ब्रह्मा से मिले इसी वरदान के कारण स्वयं नारायण को मृत्यु लोक में अपना अवतार लेकर उसका वध करना पड़ा था।

हिरण्यकश्यप केकुल में ही उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था जो उसकी मृत्यु के पश्चात उसका उत्तराधिकारी बना था। आज हम हिरण्यकश्यप की कथा के बारे में जानेंगे।
हिरण्यकश्यप का जीवन परिचय
हिरण्यकश्यप का पूर्व जन्म
अपने पूर्व जन्म में हिरण्यकशिपू तथा उसका छोटा भाई हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के प्रहरी थे जिनका नाम जय-विजय था। एक दिन उन्होंने भगवान ब्रह्मा के चार मानस पुत्रों का अपमान किया था तथा वैकुंठ में जाने से रोका था। तब उन्हें श्राप मिला था कि वे तीन जन्म तक असुर कुल में जन्म लेंगे तथा उनका वध भगवान विष्णु के हाथों होगा। इसलिये जय-विजय का अगला जन्म हिरण्यकशिपू तथा हिरण्याक्ष के रूप में हुआ था।
हिरण्यकशिपू का जन्म
हिरण्यकशिपू तथा उसके भाई हिरण्याक्ष के माता-पिता का नाम महर्षि कश्यप तथा दिति था। महर्षि कश्यप की कई पत्नियाँ थी जिसमें से एक दिति थी। उसी के गर्भ से दैत्यों का जन्म हुआ था। दरअसल एक दिन दिति किसी कारणवश कामातुर हो उठी थी और उसने गलत तिथि में महर्षि कश्यप को संभोग के लिए कहा था। महर्षि कश्यप के मना करने के बाद भी जब दिति नही मानी तो दोनों के बीच संभोग हो गया। इसके परिणामस्वरुप दो दैत्यों हिरण्यकशिपू तथा हिरण्याक्ष का जन्म हुआ।
हिरण्यकशिपू की पत्नी का नाम
हिरण्यकशिपू का विवाह कयाधु नाम की स्त्री से हुआ था जिससे उसे प्रह्लाद नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। यही पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बना था। दरअसल जब हिरण्यकशिपू तपस्या में लीन था तो उस समय देवताओं ने उसकी नगरी पर आक्रमण करके वहां अपना शासन स्थापित कर लिया था।
तब देवर्षि नारद मुनि ने कयाधु की रक्षा की थी और उसे अपने आश्रम में स्थान दिया था। वही पर हिरण्यकशिपू के पुत्र प्रह्लाद का जन्म हुआ था। देवर्षि नारद मुनि की संगत में रहने के कारण वह विष्णु भगवान का भक्त बन गया था।
हिरण्यकशिपू के भाई का वध
जब हिरण्यकशिपू के छोटे भाई हिरण्याक्ष ने अपने अहंकार में पृथ्वी को समुंद्र में डुबो दिया तब भगवान नारायण ने अपना तृतीय अवतार वराह लेकर उसका वध कर दिया तथा पृथ्वी को समुंद्र से निकाल दिया। अपने भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपू इतना ज्यादा क्रोधित हो गया था कि वह विष्णु से बदला लेना चाहता था।
हिरण्यकशिपू को वरदान प्राप्त हुआ
लगभग सौ वर्षों तक कठिन तपस्या करने के पश्चात हिरण्यकशिपूने वरदान माँगा कि उसकी मृत्यु भगवान ब्रह्मा के बनाये हुए किसी भी प्राणी से ना हो फिर चाहे वह मनुष्य हो या पशु। इसके साथ जी उसकी मृत्यु न अस्त्र-शस्त्र से, ना दिन व रात में, ना भवन के बाहर और ना ही अंदर, न भूमि ना आकाश में हो। इस वरदान को पाकर वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया था।
हिरण्यकशिपू का अत्याचार व प्रह्लाद
भगवान ब्रह्मा से यह वरदान पाकर उसनें तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया तथा इंद्र का भी आसन छीन लिया। जगह-जगह उसने अधर्म के कार्य किये तथा ऋषि-मुनियों की हत्याएं करवा दी। वह स्वयं को भगवान मानने के लिए लोगों को बाध्य करने लगा लेकिन स्वयं उसका पांच वर्ष का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्ति में लीन रहता।
शुरू में तो उसने अपने छोटे से पुत्र को धमकियाँ दी लेकिन जब वह नहीं माना तब उसने उसकी हत्या के कई षड़यंत्र रचे। हिरण्यकशिपू के द्वारा प्रह्लाद को सांपों से भरे कक्ष में रखना, हाथियों के पैरों के सामने फेंकना, पर्वत से गिराना, अग्नि में जलाना इत्यादि सम्मिलित है। किंतु हर बार प्रह्लाद की भगवान विष्णु के द्वारा रक्षा कर ली जाती थी।
हिरण्यकशिपू का वध
भगवान विष्णु वैकुंठ में बैठे अपने भक्त प्रह्लाद पर यह सब अत्याचार होते हुए देख रहे थे तथा धीरे-धीरे उनके क्रोध का घड़ा भरता जा रहा था। एक दिन हिरण्यकशिपू प्रह्लाद से विष्णु के होने का प्रमाण मांग रहा था। तब प्रह्लाद ने कहा कि वे तो कण-कण में हैं। इस पर हिरण्यकशिपू ने अपने भवन के एक स्तंभ की ओर ईशारा करते हुए कहा कि क्या वे इसमें भी हैं? तब प्रह्लाद ने इस पर हां में उत्तर दिया।
यह सुनकर हिरण्यकशिपू ने क्रोध में वह स्तंभ तोड़ डाला। जैसे ही वह स्तंभ टूटा उसमें से भगवान विष्णु का अत्यंत क्रोधित रूप नरसिंह अवतार में प्रकट हुआ जिसका आधा शरीर सिंह का तथा बाकि का आधा शरीर मनुष्य का था।
उस नरसिंह अवतार ने हिरण्यकशिपू को उसके भवन की चौखट पर ले जाकर, संध्या के समय, अपने गोद में रखकर नाखूनों की सहायता से उसका वध कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने उसको मिले वरदान की काट ढूंढ़कर हिरण्यकशिपू का अंत किया तथा उसका उत्तराधिकारी भक्त प्रह्लाद को बनाया।
हिरण्यकशिपू का अगला जन्म
चूँकि जय-विजय को तीन बार राक्षस कुल में जन्म लेना था जिनका वध भगवान विष्णु के अवतार के हाथों ही होना था। हिरण्यकशिपू व हिरण्याक्ष तो उनका पहला जन्म था। इसलिये अपने दूसरे जन्म में दोनों फिर से राक्षस कुल में जन्मे।
हिरण्यकशिपू का अगला जन्म महर्षि विश्रवा के कुल में रावण के रूप में हुआ था जो कि लंका का राजा था। जबकि उसके छोटे भाई हिरण्याक्ष का जन्म अगले जन्म में भी उसके छोटे भाई कुंभकरण के रूप में हुआ था। इन दोनों का वध स्वयं भगवान विष्णु के ही अवतार श्रीराम के हाथों हुआ था।
Anupama Dubey