लखनऊ। देश में दमा (अस्थमा) के बारे में आम धारणा पर बात करने के साथ ही रोग के प्रति जागरूकता तथा उपचार की स्वीकृति की जरुरत को उजागर करते हुए, डॉ बीपी सिंह, रेस्पिरेटरी, क्रिटिकल केयर एंड स्पेशलिस्ट फॉर स्लीप मेडिसिन, लखनऊ ने कहा कि, भारत में दमा सामाजिक कलंक, गलत धारणाओं और झूठी बातों का शिकार है, जैसा कि लगभग 23% रोगी ही अपनी अवस्था को इसके वास्तविक नाम से पुकारते हैं। डा0 बीपी सिंह मंगलवार को होटल हयात में पत्रकारों से रूबरू होते हुए आगे बताया कि अपनी स्थिति के बारे में बताने से बचने की इस प्रवृत्ति के कारण देश में इस रोग की पहचान बहुत कम संख्या में हो पाती है, जहाँ गंभीर दमा के 70% मामले चिकित्सीय रूप से बिना निदान के रह जाते हैं। इसके अलावा, इन चुनौतियों के कारण रोगियों के लिए समय पर चिकित्सा सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है, और इसलिए वे शुरूआत में अपनी स्थिति पर काबू नहीं कर पाते हैं। डॉ. एस निरंजन, सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ, लखनऊ ने कहा कि, हालांकि, इन्हेलेशन थेरेपी अस्थमा के प्रबंधन की मुख्य बुनियाद है, फिर भी भारत में इनहेलर से सम्बंधित सामाजिक कलंक ने इस रोग के कुप्रबंधन को और बढ़ा दिया है। यह विशेष रूप से बच्चों में मामले में ज्यादा प्रबल है जहाँ पेरेंट्स अक्सर रोग को छिपा जाते है। भारत में इन चुनौतियों से निपटने के लिए दमा और इसके अनुशंसित उपचारों दोनों के लिए भारत के नजरिये में महत्वपूर्ण बदलाव आवश्यक है।
sudha jaiswal