- कभी पं. शिव कुमार शर्मा, भजन सोपोरी ने भी की थी तारीफ
- खास मुलाकात
राधेश्याम कमल
वाराणसी। काशी के अहिल्याबाई घाट निवासी देवी प्रसाद ने संतूर के सुर को और भी सुरीला बनाने के लिए नया प्रयोग किया है। उन्होंने संतूर को एक नया आयाम दिया है। उनके बनाये गये संतूर की कई दिग्गज कलाकारों ने न केवल तारीफ की बल्कि अपने साथ संगीत समारोहों में मंच पर उन्हें जगह दी। इनमें प्रख्यात कलाकार पद्मश्री स्व. भजन सोपोरी, पं. शिव कुमार शर्मा, पं. छन्नू लाल मिश्र, अभय रुस्तम सोपोरी समेत कई बड़े कलाकार भी हैं जिन्होंने देवी प्रसाद के बनाये संतूर का मान-सम्मान बढ़ाया। कलाकारों के बीच देवी प्रसाद का संतूर देवी संतूर के नाम से जाना जाता है। देवी प्रसाद से संतूर के लिए देश ही नहीं विदेशों के भी कलाकार लालायित रहते हैं। देवी प्रसाद से जनसंदेश टाइम्स ने खास मुलाकात की।
पहले कभी संतूर पर करते थे रियाज, अब करने लगे नवसृजन
65 वर्षीय देवी प्रसाद बताते हैं कि पहले वर्ष 83 के आसपास हम संतूर बजाया करते थे। इसके लिए हमने बाजार से संतूर खरीदा था। लेकिन उसकी आवाज से हम संतुष्ट नहीं थे। प्रख्यात कलाकार पं. शिवकुमार शर्मा का हमने एलपी रिकार्ड वाला संतूर सुना था। उनकी जो संतूर की सुरीली आवाज थी उसने हमको बहुत प्रभावित किया। हमने सोचा कि हमारे संतूर में इतनी सुरीली आवाज क्यों नहीं है। इस पर हमने खोज किया और पहले एक कारीगर को बुला कर इसको बनाना शुरु किया। इस दौरान हम खुद संतूर बनाने लगे। इसके साथ ही नाम व शोहरत भी मिलती गई। बड़े-बड़े कलाकार उनके अहिल्याबाई घाट स्थित आवास पर आने लगे। इसके साथ ही विदेशी भी आने लगे। वे बताते हैं कि वह संतूर के अलावा स्वर मंडल भी बनाते हैं। उनका बनाया हुआ स्वर मंडल प्रसिद्ध कलाकार पं. छन्नू लाल मिश्र संगीत समारोहों में बजाते थे।
पं. शिवकुमार शर्मा ने कहा कि यह संतूर देवी प्रसाद ने बनाया है
वे बताते हैं कि हमने दिग्गज कलाकार पद्मश्री पं. भजन सोपोरी को भी संतूर बना कर दिया। इसके साथ ही उनके सुपुत्र अभय रुस्तम सोपोरी को संतूर बना कर दिया। जिसको वह अभी भी बजा रहे हैं। विश्व प्रसिद्ध संकटमोचन संगीत समारोह में मेरा ही बनाया हुआ संतूर लेकर मंच पर आये थे। इस दौरान उन्होंने श्रोताओं से कहा कि जो हम संतूर वादन पेश कर रहे हैं उसे काशी के देवी प्रसाद ने बनाया है। गंगा महोत्सव के दौरान जब प्रसिद्ध कलाकार पं. शिव कुमार शर्मा आये थे तब हम भी उनके साथ थे। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि ये जो मेरे बगल में बैठे हैं वह काशी के देवी प्रसाद हैं। यह संतूर उन्हीं के हाथों गढ़ा गया है।
चार दशकों से कर रहे हैं संतूर निर्माण का कार्य
देवी प्रसाद बताते हैं कि वे पिछले चार दशकों से वर्ष 83 से संतूर बनाने का कार्य कर रहे हैं। अब हम मंच पर संतूर बजाते नहीं है। कई साल पहले डा. राजेन्द्र प्रसाद घाट पर संतूर बजाया था। लोगों ने काफी प्रशंसा की थी। काशी के पं. श्याम रघुल ने कहा था कि तुम संतूर के पंडित हो। उनके यहां से पं. भजन सोपोरी, दिव्यांश श्रीवास्तव (दिल्ली)के अलावा कोलकाता, मुंबई, पुणे, दिल्ली के कलाकार भी संतूर ले गये हैं। इसके अलावा जापान के जिमी मियासिटा व अर्जेंटिना व चाइना के भी कलाकार संतूर लेकर गये हैं।
एक से दो माह लगता है संतूर बनाने में
वे बताते हैं कि एक संतूर तैयार करने में एक से दो माह लग जाते हैं। इसमें सेटिंग करने में समय लगता है। साउण्ड सेटिंग करने में ट्यून करने में समय लगता है। इसके लिए कोलकाता से तून लकड़ी मंगवाते हैं। यह लकड़ी मुलायम होती है। इंडियन लकड़ी मैपल हार्ड होती है। पहले इसका ढांचा बनाते हैं फिर डिजाइनिंग करते हैं। इसके बाद पालिस की जाती है तब यह तैयार होता है। यह हमने स्वयं की चेष्टा करके तैयार किया है। प्रसिद्ध संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा ने कहा था कि इनके संतूर की आवाज बहुत ही सुरीली है।
बचपन से ही रही संगीत में रूचि
देवी प्रसाद की शिक्षा इंटर तक हुई है। उनके माता-पिता के अलावा धर्मपत्नी का भी निधन हो चुका है। परिवार में उनका पुत्र नवीन बीएचयू मंच कला संकाय से पीएचडी कर रहा है। कहा कि बचपन से ही उनकी संगीत के प्रति रूचि थी। पहले वे हाथीफाटक में साड़ी की प्रिंटिंग किया करते थे। उस समय दियुती किशोर आचार्य ने मुझसे कहा कि हमारे यहां बैठ कर सितार सीखा करो। कभी जिंदगी में काम आयेगा। हम तुमसे कोई भी फीस नहीं लेंगे। हमने सितार सीखना शुरू किया। यहीं से संगीत के प्रति मेरा रूझान शुरू हुआ।