- जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश राय ने किसानों को दिया सावधानी बरतने का सुझाव
वाराणसी। फसलों में कीट या रोग का संक्रमण और उसका प्रसार बीज, मिट्टी, वायु एवं पानी आदि कई माध्यमों से होता है। समय रहते सावधानी नहीं बरती गयी तो संबंधित रोग का कीड़े व्यापक रूप लेते हैं। उसके बाद उनका नियंत्रण न सिर्फ खर्चीला बल्कि कठिन भी हो जाता है। बीज व भूमि का शोधन कर फसलों को बीमारियों से बचाकर अधिक पैदावार ली जा सकती है। बोवाई से पहले बीज शोधन एवं भूमि शोधन कर लेने से भूमि एवं बीज के साथ जुड़ी बीमारियों के बीजाणु, कीटों के अंडाणु तथा लार्वा नष्ट हो जाते हैं। आगामी खरीफ की फसलों की बोवाई से पूर्व इस दिशा में पहल करना आवश्यक है।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश कुमार राय ने किसानों को बीज व भूमि शोधन की सलाह दी है। उन्होंने जमीन की गहरी जुताई करने पर बल दिया है। जिसके तहत बताया है कि भूमि शोधन के लिए अंतिम जुताई के समय दीमकों का प्रकोप रोकने के उद्देश्य से ब्यूवेरिया बेसियाना 25 किलो प्रति हेक्टेयर या क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी 2-3 ली. प्रति हे. की दर से छिड़काव करें। धान की फसल को झोंका यानि ब्लॉस्ट रोग ने बचाने के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरीसेंस के जरिये 500 ग्राम प्रति हे. की दर से भूमि शोधन करना चाहिए।
इसी प्रकार अरहर, उर्द, मूंग तथा मूंगफली की फसल को जड़ सडन और उकठा रोग से बचाने के लिए 2़5 किलो ट्राइकोडर्मा को 60-70 किलो सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर आखिरी जुताई के समय भूमि शोधन करना लाभकारी है। वहीं, धान की फसल को झोंका रोग से बचाने के लिए दस ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरीसेंस से प्रति किलो बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए। धान को कंडुवा यानि फॉल्स स्मट से बचाने के लिए 45 ग्राम ट्राइकोडर्मा अथवा 25 ग्राम थीरम अथवा दो ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलो बीज की दर से बीज शोधन करना चाहिए। धान की फसल को झुलसा यानि बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट से बचाने के लिए स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट 90%, टैट्रासाईक्लिन हाईड्रोक्लोराइड 10% से चार ग्राम प्रति 25 किलो बीज का शोधन करें।