हजारों वर्षों की अधीनता में हमारे लाखों मंदिरों को तोड़ डाला गया था तथा सनातनियों का रक्त बहाया गया था। पश्चिम दिशा से ईस्लाम का झंडा लिए आये आक्रमणकारी निरंतर हिंदुओं का रक्त बहाते तथा मंदिरों गुरुकुलों को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इसके सबसे बड़े उदाहरण श्रीराम जन्मभूमि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ तथा सोमनाथ मंदिर हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे चार धामों में से एक भगवान जगन्नाथ के मंदिर पर भी सत्रह बार आक्रमण हुआ था। आज हम आपको उसी के बारे में विस्तार से बताएँगे।
जगन्नाथ मंदिर पर हमले का इतिहास
1.पहला हमला: वर्ष 1340
उस समय उड़ीसा राज्य उत्कल के नाम से जाना जाता था तथा वहां के महाराज नरसिंह देव तृतीय थे। तब बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने मंदिर पर भीषण आक्रमण कर दिया था। राजा नरसिंह देव ने इलियास की सेना से युद्ध किया लेकिन इलियास की सेना के द्वारा मंदिर परिसर में लाखों सैनिकों, पुजारियों तथा श्रद्धालुओं की हत्या कर दी गयी जिससे पूरा प्रांगन रक्त से भर गया था।
उस समय इलियास की क्रूर सेना के द्वारा मंदिर परिसर को बहुत क्षति पहुंचाई गयी लेकिन राजा नरसिंह के आदेश पर सैनिकों ने मुख्य मूर्तियों को छुपा दिया था जिससे वे बच गयी थी।
2.दूसरा हमला: वर्ष 1360
पहले हमले के 20 वर्षों के पश्चात सन 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने जगन्नाथ मंदिर पर आक्रमण किया। तुगलक भारत के इतिहास में एक क्रूर तथा मुर्ख राजा के रूप में पहचाना जाता है।
3.तीसरा हमला: वर्ष 1509
जगन्नाथ मंदिर पर तीसरा हमला बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी के नेतृत्व में हुआ। आक्रमण की जानकारी मिलते ही किसी अनिष्ट की आशंका को ध्यान में रखते हुए मंदिर के पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी में स्थित चिल्का नामक द्वीप में छुपा दिया था।
उस समय ओड़िशा के महाराज सूर्यवंशी प्रताप रुद्रदेव ने अपनी सेना के साथ अलाउद्दीन की सेना के साथ हुगली में भयंकर युद्ध किया तथा शत्रु सेना को परास्त किया। राजा सूर्यदेव में आक्रमणकारी सेना को वहां से भागने पर विवश कर दिया था।
4.चौथा हमला: वर्ष 1568
चौथा हमला मंदिर पर हुए सबसे भीषण हमलों में से एक था जिसे काला पहाड़ नामक एक अफगान हमलावर के नेतृत्व में किया गया था। इस आक्रमण के पहले ही पुजारियों के द्वारा मुख्य मूर्तियों को चिल्का के द्वीप में छुपा दिया गया था। इसके पश्चात हुए आक्रमण में इतना भीषण रक्तपात हुआ था कि ओड़िशा राज्य हिंदू राजाओं के हाथ से निकलकर अफगान व मुस्लिम शासकों के हाथ में चला गया था।
इस समय मंदिर की वास्तुकला तथा नक्काशियों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाया गया तथा कई मूर्तियों को जलाकर नष्ट कर दिया गया। यह आक्रमण ओड़िशा के इतिहास का सबसे भयानक नरसंहार वाला था जिसने वहां की सत्ता तक बदल डाली थी।
Anupama Dubey