कानपुर। हमारे दौर के महत्वपूर्ण कवि और गद्यकार उद्भ्रांत के 75 वर्ष पूरा करने के अवसर पर प्रस्ताव साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था की ओर से कानपुर प्रेस क्लब में 10 जून को सम्मान समारोह, कानपुर से 27 वर्षों से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव का उद्भ्रांत विशेषांक का लोकार्पण तथा उद्भ्रान्त : व्यक्तित्व व कृतित्व पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता नव निकष पत्रिका के संपादक डॉ लक्ष्मीकांत पांडे ने की।
इस अवसर पर सभी का आभार व्यक्त करते हुए उद्भ्रांत ने कहा कि यह मेरे लिए भावुक कर देने वाला क्षण है। कानपुर मेरे अंदर रचता-बसता है। मेरी जड़ें यही हैं। कानपुर के श्रमिक आंदोलन, साहित्य और समाज से मुझे ना हारने और जूझते रहने की ताकत मिली है। उद्भ्रांत ने अपने साहित्यिक गुरु हरिवंश राय बच्चन को भी याद किया।
मुख्य वक्ता के रूप बोलते हुए लखनऊ से पधारे कवि, संस्कृतिकर्मी और रेवांत पत्रिका के प्रधान संपादक कौशल किशोर ने कहा कि उद्भ्रांत का साहित्य सृजन शब्द साधना है। इनकी यात्रा बीज से शिखर की है। इन्होंने गद्य और पद्य की अनेक विधाओं में सृजन किया। गीत काव्य में तब सक्रिय हुए जब इस विधा को साहित्य से बाहर कर दिया गया था। उसी तरह इनके पत्रों की दो किताबें ऐसे वक्त में आई हैं जब पत्र लेखन स्थगित है।
कौशल किशोर ने उद्भ्रांत के व्यक्तित्व के संदर्भ में कहा कि कानपुर इनकी कर्मभूमि रही है। यहां के श्रमिक आंदोलन की ऊष्मा को इनके साहित्य में महसूस किया जा सकता है। पत्र लेखन, आत्मकथा और संस्मरण आदि में उस समय का साहित्य और इतिहास मौजूद है। इनका गीत, हिम्मत हार नहीं रे साथी सूरज निकलेगा, इनके व्यक्तित्व के जुझारूपन को दिखाता है। यहां साहस के साथ सच के लिए संघर्ष है। उद्भ्रांत उम्मीद नहीं छोड़ते। इनके कृतित्व और व्यक्तित्व की खूबियां प्रस्ताव पत्रिका में उभर कर सामने आई हैं।
लखनऊ से ही पधारे कवि-कथाकार डॉ शैलेश पंडित ने दूरदर्शन में उद्भ्रांत के साथ के संघर्ष भरे दौर को साझा किया । उन्होंने उद्भ्रांत के प्रबंध काव्य राधा माधव के आधुनिक संदर्भ की चर्चा की और कहा कि यह धर्मवीर भारती की कनुप्रिया की अगली कड़ी है। उद्भ्रांत हमें अपनी परंपरा, पर्यावरण और लोक उत्सव के साथ जोड़ते हैं। उनका जोर इस बात पर है कि मशीनों की अंधी दौड़ हमें उस मोड़ पर ले जाएगी जहां जीने का अर्थ खत्म हो जाएगा। राधा माधव हमें जीवन का अर्थ, एक राग तथा रागोत्सव देता है।
कवि-आलोचक डॉक्टर राकेश शुक्ल ने इनके गीत-काव्य पर कहा कि इसकी वजह से ही वे समकालीन कविता में आंतरिक लय ला पाए हैं। इनके पास गहरी अंतर्दृष्टि है, वहीं जीवन बोध भी भरपूर है। यहां बाहरी जगत अपनी बाहों में बांधता है तो अंतर जगत चेतना को मुक्त करता है। इनके काव्य कौशल के कारण ही नामवर सिंह, शिव कुमार मिश्र जैसे आलोचकों ने इनके सृजन की सराहना की है।
इस मौके पर डॉ प्रभा दीक्षित, जयराम सिंह जय, अशोक शास्त्री, हरभजन सिंह मेहरोत्रा आदि रचनाकारों ने भी उद्भ्रांत के रचनाकर्म, कानपुर से जुड़ाव तथा उनके जीवन के विभिन्न अनछुए पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किए। आरंभ में कानपुर के प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहित बरुआ ने सभी अतिथियों का शाल ओढ़ाकर कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संयोजन समकालीन सांस्कृतिक प्रस्ताव पत्रिका के संपादक कैलाश बाजपेई की ओर से किया गया था। परिचर्चा का आरंभ इन्हीं के वक्तव्य से हुआ तथा प्रस्ताव संस्था की ओर से अशोक बाजपेई ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। कुशल संचालन कवि व गीतकार अरुण तिवारी ने किया तथा बीच-बीच में उद्भ्रांत के साहित्य सृजन और व्यक्तित्व पर सारगर्भित टिप्पणियां भी की। कामरेड अवधेश कुमार सिंह, अरविंद चतुवेर्दी, सुशील मिश्र सहित दर्जनों लोगों की मौजूदगी थी।
sudha jaiswal