Bhagat Singh Jayanti : देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह को आज ही के दिन यानी 28 सितम्बर 1907 को लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था।

आज हम बात करेंगे भगत सिंह का बनारस (Bhagat Singh Jayanti) से क्या नाता रहा है। चलिए आगे की स्लाइड्स में देखें कि देश के लिए शहीद हो जाने वाले क्रांतिकारी वीर भगत सिंह का धर्म की नगरी काशी से क्या सम्बन्ध रहा…
पहली बार बनारस में भगत सिंह (Bhagat Singh Jayanti) की मदद शचीन्द्र नाथ सान्याल ने की थी। काशी में पैदा हुए सान्याल अपने समय के सम्मानित क्रांतिकारियों में थे। उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की थी। महात्मा गांधी द्वारा 1922 में असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद देश के युवाओं को इस संगठन ने राह दिखाने का काम किया था।

1924 में भगत सिंह (Bhagat Singh Jayanti) ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी। इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई थी। इतना ही नहीं उनके निजी फैसले यानि कि शचींद्र शान्याल के मार्गदर्शन के बाद ही उनकी विवाह प्रस्ताव सम्बंधित दुविधा दूर हुई थी।
इसके अलावा जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी की सजा का पता महामना मदन मोहन मालवीय को चला तो वो भी बेचैन हो गए। इसके बाद 14 फरवरी 1931 को वो खुद लॉर्ड इरविन के पास एक दया याचिका लेकर गये। इसमें उन तीनों की फांसी पर रोक लगाने और उनकी सजा को कम करने का आग्रह किया गया था।
भगत सिंह (Bhagat Singh Jayanti) और राजगुरु की पहली मुलाकात भी संभवत: बनारस में ही हुई थी। यह पहली मुलाकात इतनी मजबूत थी कि मौत भी इसे तोड़ न सकी। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने जयदेव कपूर को संगठन को मजबूत करने के लिए बनारस भेजा था। इसी समय भगत सिंह भी बनारस पहुंचे और जय देव के साथ कुछ दिनों के लिए लिम्डी हास्टम में ठहरे।
शहीद होने से पहले कई क्रांतिकारी बनारस आए थे। यहां छिपने के ठिकानों पर रुकते थे और आगे की कार्ययोजना बनाकर चले जाते थे। बनारस के बालाजी घाट, रामकुंड और बेनिया अखाड़े के आसपास छिपते थे। 1931 में 23 मार्च को क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। जबकि उन्हें 24 मार्च को फांसी देने का समय निर्धारित था।

इस दिन को शहीदी दिवस (Bhagat Singh Jayanti) के नाम से मनाया जाता है। रामकुंड के निवासी केके शर्मा ने बताया कि भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु ने असेंबली में बम धमाके की योजना बनाई थी। यह बम सिर्फ आजादी की लड़ाई की शुरुआत की सूचना अंग्रेजों तक पहुंचाना था। दोनों ने एक-एक बम फेंका था। इसमें किसी की मौत नहीं हुई।
बनारस से कई क्रांतिकारियों का काफी जुड़ाव रहा है। अक्सर रामकुंड अखाड़े में क्रांतिकारी छिपते थे। यहां उनके लिए खाने पीने का इंतजाम यहां के धनी लोग करते थे। इसके अलावा बालाजी घाट, बेनिया अखाड़ा और शहर के कई क्षेत्रों में छिपकर रहते थे।
Bhagat Singh Jayanti : भगत सिंह के अंतिम शब्द
भगत सिंह (Bhagat Singh Jayanti) ने फांसी के फंदे पर चढ़ने से पहले “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाया था। जो कि आज भी भारत देश में स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक माना जाता है।
“मैं अपने देश के लिए मरने के लिए तैयार हूं। मुझे कोई पछतावा नहीं है।”
“मैं दुनिया में न्याय और समानता देखना चाहता हूं।”
“मैं भारत को एक स्वतंत्र और प्रगतिशील राष्ट्र बनाना चाहता हूं।”
भगत सिंह के अंतिम शब्द भारत के लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं। वे हमें याद दिलाते हैं कि स्वतंत्रता और न्याय के लिए संघर्ष करना कभी भी आसान नहीं होता है, लेकिन यह एक ऐसा संघर्ष है जो लड़ने लायक है।