2nd Day Ramleela: भगवान विष्णु ने कौशल्या के गर्भ से जन्म लेने से पूर्व उनको अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराया। जिसे वह देखकर भयभीत हो उठी। उसके बाद उन्होंने उनसे बाल रूप में लीला करने का आग्रह किया। इसके उपरांत भगवान ने चारों भाइयों समेत बाल रूप में जन्म लिया।
पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद (2nd Day Ramleela) दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। संतान सुख से वंचित अयोध्या के राजा दशरथ अपने गुरु वशिष्ट के पास गए उनसे निवेदन किया कि उनकी कृपा से उनके पास सब प्रकार की धन संपदा है लेकिन संतान का सुख नहीं है जिस पर उन्होंने उनसे कहा कि धैर्य रखो तुमने पूर्व जन्म में भगवान नारायण की आराधना करके उनको अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा है। उन्होंने तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेने का वर दिया है. तुम्हें पुत्रों की प्राप्ति होगी जो भक्तों के दुःख दूर करेंगे।
इसके बाद दशरथ ने श्रृंगी ऋषि को बुलाकर उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ (2nd Day Ramleela) कराया। इसके बाद अग्नि देव प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पास से उन्हें एक हव्य दिया और कहा कि इसे बराबर भाग में अपनी रानियों को खिला दो वह गर्भवती हो जाएगी. राजा दशरथ के ऐसा करने पर रानियां गर्भवती हो गई। इसके बाद भगवान विष्णु ने जन्म लेने से पूर्व माता कौशल्या को अपने विराट रूप का दर्शन कराया। जिसे देखकर वह भयभीत हो गई। उनसे उन्होंने आग्रह किया कि आप बाल रूप धारण करके लीला करें। तब भगवान ने बाल रूप में चारों भाइयों समेत जन्म लिया।
2nd Day Ramleela: महाराज उदित नारायण सिंह के कार्यकाल में हुआ रामलीला का शुभारंभ
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का कैनवास जितना बड़ा है, इसका इतिहास उतना ही उलझा हुआ है. इसे लेकर न जाने कितने शोध हुए लेकिन कोई भी इस बात की अकाट्य पुष्टि नहीं करता कि आखिर रामलीला वास्तव में शुरू कब हुई, लेकिन सारे शोध इस तत्व पर लगभग सहमत हैं कि रामनगर की रामलीला का शुभारंभ महाराजा उदित नारायण सिंह के कार्यकाल में हुआ था. जिनका शासन काल सन् 1794 से 1835 तक था। रामलीला आरंभ होने के बाबत किवदंतियां है, लेकिन सबसे विश्वसनीय किवदंती मिजार्पुर से जुड़ी हुई है।
बताते हैं कि बरईपुर मिजार्पुर में विट्ठल साहू और भोनू नामक दो बनिया हर साल रामलीला (2nd Day Ramleela) कराते थे। महाराज उस रामलीला में बतौर अतिथि आमंत्रित किए जाते थे। धनुष यज्ञ की लीला थी। उस दिन महाराज को लीला में पहुंचने में थोड़ी देर हो गई। लीला के आयोजकों ने उनका इंतजार किए बगैर श्री राम बने पात्र से धनुष तुड़वा दिया। बीच रास्ते में महाराज को जब यह बात पता चली कि बिना हमारे पहुंचे रामलीला शुरू हो गई। तो वह वापस लौटकर किले में आ गए।
यह बात उन्हें इतना दुखी कर गया कि वह उदास से रहने लगे। लगातार कई दिनों तक उनकी उदासी देख महारानी ने वजह पूछी महाराजा ने उनको सारी बात बता दी. इस पर महारानी ने ताना मार दिया कि वे दोनों बनिया होकर रामलीला कर सकते हैं और आप महाराज होकर नहीं। बस यह बात महाराज को लग गई और उन्होंने रामनगर में लीला शुरू करवा दी। महाराज उदित उदित नारायण के समय रामलीला (2nd Day Ramleela) किले में ही होती थी, लीला का वर्तमान स्वरूप 1835 के बाद अस्तित्व में आया जब महाराजा ईश्वरी नारायण सिंह गद्दी पर बैठे।