आज से शारदीय नवरात्रि {Sharadiya Navratri} की शुरुआत हो गई। पूरे 9 दिनों तक चलें वाले इस नवरात्री के पर्व में माता गौरा के अलग-अलग रूपों का श्रृंगार, पूजा व दर्शन करने का विधान है। आज नवरात्री {Sharadiya Navratri} के पहले दिन माता शैलपुत्री की दर्शन-पूजन करने का विधान है। भक्तों का रेला माता शैलपुत्री देवी के दरबार में भोर से ही उमड़ा है। धर्म की नगरी काशी में माता का अति प्राचीन मंदिर वरुणा नदी के तट पर अलईपुर में स्थित है।

मां सौम्य रूप में यहां विराजमान हैं। भक्त उनकी एक झलक पाने के लिए देर रात से ही कतारबद्ध हैं। मंगला आरती के बाद जैसे ही मंदिर के कपाट खुले पूरा मंदिर परिसर माता के जयकारों से {Sharadiya Navratri} गूंज उठा। इस दौरान सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई है। वाराणसी पुलिस के महिला और पुरुष जवान चप्पे-चप्पे पर तैनात हैं।
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माता शैलपुत्री {Sharadiya Navratri} का यह मंदिर सिटी रेलवे स्टेशन से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचना आसान है। मंदिर के पुजारी के अनुसार माता यहां स्वयं विराजमान हैं। माता नवरात्रि में भक्तों यहां साक्षात् दर्शन देती हैं।
यहां सुहागिन महिलाएं यहां अपने पति की लंबी उम्र की कामना करने आती हैं और माता को चुनरी और गुड़हल का फूल अर्पित करती हैं। इसके अलावा लाल फूल और हाथों में नारियल लेकर आते हैं और माता की महाआरती में शामिल होकर अपने दांपत्य जीवन के सभी विघ्नों को दूर करने की कामना माता शैलपुत्री से करते हैं।
Sharadiya Navratri : ये है मंदिर निर्माण की पूरी कहानी
बता दें कि वाराणसी के इस मंदिर {Sharadiya Navratri} का वर्णन काशी खंड में भी है। ऐसा कहा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण शैल राज हिमालय ने इसका निर्माण कराया था। जब बाबा भोलेनाथ माता शैलपुत्री से विवाह कर काशी लेकर आये तो हिमलाय को यह लगा कि शिव अड़भंगी हैं पता नहीं उनके पास क्या होगा और वो काशी पहुंच गए।
इसके बाद हिमालय राज काशी पहुंचे तो उन्हें सोने की काशी देख ग्लानि हुई और वो वरुणातट पर विश्राम बैठ गए और उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण कराया। एक दिन में मंदिर बनवाकर वो चले गए पर भगवान् शिव के गणों ने उन्हें सूचना दी तो वो माता शैलपुत्री के साथ इस मंदिर को देखने आए और तभी से माता शैलपुत्री का यहां वास हो गया।