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Home धर्म कर्म

Chitragupta Jayanti: सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं भगवान चित्रगुप्त, धरती के हर एक जीवों के कर्मों का रखते हैं लेखा-जोखा

by Abhishek Seth
November 11, 2023
in धर्म कर्म, वाराणसी
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Chitragupta Jayanti
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Chitragupta Jayanti: भगवान चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार भगवान चित्रगुप्त महाराज सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश है, जो मनुष्यों एवं समस्त जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक अथवा पुर्नजन्म का निर्णय लेने का अधिकार भगवान चित्रगुप्त जी के पास है अर्थात किसको स्वर्ग मिलेगा और कौन नर्क में जाएगा? इस बात का निर्धारण जीवात्मा के कर्मों के आधार पर ही भगवान चित्रगुप्त उर्फ धर्मराज महाराज करते हैं। मान्यताओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त को कायस्थों का इष्टदेव बताया जाता हैंं, लेकिन वह सकल सृष्टि के कर्म देवता है।

विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा की कई विभिन्न संताने थीं, लेकिन भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] के जन्म अवतरण की कहानी भगवान ब्रह्मा जी के अन्य बच्चों से कुछ भिन्न हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार परमपिता ब्रह्मा के पहले 13 पुत्र ऋषि हुए और 14वें पुत्र भगवान चित्रगुप्त जी देव हुए! ग्रंथों में भगवान चित्रगुप्त को महाशक्तिमान राजा के नाम से सम्बोधित किया गया है।

भगवान चित्रगुप्त, संसार के सभी प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने के लिए यमलोक में विराजमान हैं। महाराज यमराज मृत्यु के उपरांत, जीवों के कर्मों के अनुसार दण्ड निर्धारित करते हैं। उसके बाद ही, स्वर्ग-नरक का दरवाजा खोला जाता है और यह दंड महाराज चित्रगुप्त के लेखा-जोखा के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

वेदों और पुराणों के अनुसार, धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज [Chitragupta] अपने दरबार में जीवों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करते हैं। कहने का आशय यह कि भगवान शनि देव जिस प्रकार सृष्टि के प्रथम दंडाधिकारी हैं, उसी प्रकार भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश है। भगवान चित्रगुप्त जी भारतवर्ष (आर्यावर्त) के कायस्थ वंशज के जनक देवता हैं। कायस्थ भगवान चित्रगुप्त के वंशज है।

Chitragupta Jayanti

भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] के 12 पुत्रों का विवाह नागराज की 12 पुत्रियों से हुआ

भगवान चित्रगुप्त महाराज की दो शादियां हुई। पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा/देवी नंदनी, जो ब्राह्मण कन्या थी। इनसे चार पुत्र हुए, जो भानू (श्रीवास्तव), विभानू (सूरजध्वज), विश्वभानू (निगम) और वीर्यभानू (कुलश्रेष्ठ) कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती/देवी शोभावति ऋषि कन्या थी। इनसे आठ पुत्र हुए, जो चारु (माथुर), चितचारु (कर्ण), मतिभान (सक्सेना), सुचारू (गौड़), चारुण (अस्थाना), हिमवान (अम्बष्ठ), चित्र (भटनागर) और अतीन्द्रिय (बाल्मीक) कहलाए। इस प्रकार भगवान चित्रगुप्त के कुल 12 पुत्र है। भगवान चित्रगुप्त के इन 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकी की 12 कन्याओं से हुआ था, जिससे कायस्थों का ननिहाल नागवंशी है।

मान्यता है कि माता नंदिनी के चारों पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा शोभावती के आठों पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था। भारत के कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में वल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में थे।

Highlights

  • भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] के 12 पुत्रों का विवाह नागराज की 12 पुत्रियों से हुआ
  • चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?
  • ‘ॐ’ से व्यक्त किया जाता है भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] को
  • चित्रगुप्त महाराज का मंत्र
  • जब नाराज होकर कलम रख दिया था भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] ने

चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?

भगवान चित्रगुप्त का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है। कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना है, इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है, इसलिए उसका कोई चित्र या मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वन हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है।

जिस तरह कहने को कि थाली में पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं। चित्रगुप्त ही सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं। सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण, पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की आत्मा परमात्मा का ही अंश है।

मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं। भाई दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त महाराज की जयंती मनाया जाता है। इस दिन कलम-दवात की पूजा (कलम, दवात, स्याही और तलवार की पूजा) की जाती है।

‘ॐ’ से व्यक्त किया जाता है भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] को

पुराणों की मानें तो अनादि-अनंत वही हो सकता है जो पूर्ण हो। अपूर्णता का लक्षण आराम तथा अंत से युक्त होना है। पूर्ण वह है जिसका क्षय (ह्रास या घटाव) नहीं होता। पूर्ण में से पूर्ण को निकल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है, पूर्ण में पूर्ण मिला देने पर भी पूर्ण ही रहता है। इसे ‘ॐ’ से व्यक्त किया जाता है। इसी का पूजन कायस्थ जन करते हैं। ‘ॐ’ की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी ‘ॐ’ की रक्षा के लिए स्थापित किया गया। ‘ॐ’ की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान ‘ॐ’ की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है।

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते

चित्रगुप्त महाराज का मंत्र

‘ॐ नमो भगवते चित्रगुप्ताय नम: अस्त्र लेखनी मसि एवं तलवार असि जीवनसाथी सूर्यपुत्री दक्षिणा नंदिनी एरावती शोभावती।’

जब नाराज होकर कलम रख दिया था भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] ने

पुराणों में उल्लेख है कि भाई दूज के दिन कायस्थ लोग कलम-दवात की पूजा करने के बाद 24 घंटे के लिए कलम का उपयोग नहीं करते हैं, क्योंकि इसके पीछे भी कहानी है कि जब भगवान राम के राजतिलक में भगवान चित्रगुप्त [Chitragupta] का निमंत्रण छूट गया (निमंत्रण नहीं दिया गया) था, जिसके कारण भगवान चित्रगुप्त महाराज ने नाराज होकर कलम को रख दी थी। उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था। इसलिए परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानि किसी भी तरह का का हिसाब-किताब नही करते हैं।

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