Pitru Paksha 2024: काशी को सदियों से “मोक्ष नगरी” के नाम से जाना जाता है, जहां यह मान्यता है कि यहां की धार्मिक गतिविधियों से आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। पितृपक्ष के दौरान काशी के विभिन्न पवित्र स्थलों, जैसे कि पिशाचमोचन कुंड, मणिकर्णिका घाट और दशाश्वमेध घाट, पर पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 18 सितंबर बुधवार से हो रही है, और इसके लिए भक्तों का आगमन शुरू हो गया है।
Pitru Paksha: पिशाचमोचन कुंड का पितृपक्ष में विशेष महत्व
पितृपक्ष के दौरान पिशाचमोचन कुंड का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि यहां पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, और वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। इस कुंड के साथ जुड़ी कई पौराणिक कथाएं इसे विशेष बनाती हैं।

पौराणिक कथा: पिशाचमोचन कुंड का उद्गम
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक राजा ने अनजाने में कई ब्राह्मणों की हत्या कर दी थी, जिससे उन पर गंभीर पाप का दोष लग गया। मुक्ति की खोज में उन्होंने भगवान शिव की शरण ली। भगवान शिव ने उन्हें पिशाचमोचन कुंड में स्नान करने और तर्पण करने की सलाह दी। राजा ने निर्देशानुसार कुंड में स्नान किया और तर्पण किया, जिससे उन्हें पाप से मुक्ति मिली। इस घटना के बाद से ही यह कुंड पितृ दोष और अन्य पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाने लगा।
पितृपक्ष में काशी के धार्मिक अनुष्ठान
पितृपक्ष के दौरान काशी में श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करते हैं, जिनमें मुख्य रूप से तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध और गंगा स्नान शामिल हैं। ये सभी अनुष्ठान पितरों की आत्मा की शांति और उनकी मुक्ति के लिए किए जाते हैं।
- तर्पण: पितरों को शांति प्रदान करने के लिए तर्पण एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें जल में तिल मिलाकर उसे सूर्य देव और पितरों को अर्पित किया जाता है। यह अनुष्ठान पितरों की आत्मा को संतुष्टि प्रदान करता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
- पिंडदान: पिंडदान पितृपक्ष के प्रमुख कर्मों में से एक है। इसमें चावल, तिल और जौ से बने पिंड पितरों की आत्मा को अर्पित किए जाते हैं। काशी के विभिन्न घाटों, विशेषकर मणिकर्णिका और दशाश्वमेध घाट, पर पुरोहित पिंडदान की विशेष व्यवस्था करते हैं।
- श्राद्ध: श्राद्ध एक विस्तृत कर्मकांड है जिसमें पितरों के नाम से ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। यह विश्वास है कि इस दिन पितरों को दिया गया भोजन उन्हें सीधे प्राप्त होता है, जिससे उनकी आत्मा तृप्त होती है।
- गंगा स्नान: पितृपक्ष के दौरान गंगा स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु गंगा के पवित्र जल में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं और पितरों के तर्पण के लिए जल अर्पित करते हैं।

काशी के प्रमुख धार्मिक स्थल
पितृपक्ष के दौरान काशी के पिशाचमोचन कुंड के अलावा अन्य धार्मिक स्थलों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, और अस्सी घाट प्रमुख हैं। इन स्थानों पर श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं।
- मणिकर्णिका घाट: काशी का सबसे प्राचीन और पवित्र घाट, मणिकर्णिका घाट, मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख स्थल माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान यहां विशेष तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं।
- दशाश्वमेध घाट: यह घाट अपने भव्य गंगा आरती और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। पितृपक्ष के समय श्रद्धालु यहां तर्पण और पिंडदान करने आते हैं।
- अस्सी घाट: अस्सी घाट का शांत वातावरण पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। पितृपक्ष के दौरान यहां श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ तर्पण और पिंडदान करते हैं।
पितृ दोष निवारण और काशी की भूमिका
पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति है, लेकिन यह पितृ दोष निवारण के लिए भी महत्वपूर्ण समय है। पितृ दोष तब उत्पन्न होता है जब पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता या वे अशांत रहते हैं। काशी में पिशाचमोचन कुंड और मणिकर्णिका घाट पर तर्पण और पिंडदान करने से पितृ दोष का निवारण होता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
काशी में पितृपक्ष का धार्मिक वातावरण
पितृपक्ष के दौरान काशी का वातावरण पूरी तरह से धार्मिक आस्था और श्रद्धा से भर जाता है। हर गली-कोने में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान होते हैं। यह समय हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और उनकी आत्मा की शांति के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है।
पितृपक्ष में दशाश्वमेध घाट के पुरोहित का संदेश
दशाश्वमेध घाट के प्रमुख पुरोहित विशाल औढेकर कहते हैं, “जो व्यक्ति काशी नहीं आ पाता, वह अपने घर की छत पर भी तर्पण कर सकता है। उसका जल तुलसी के पौधे अथवा मिट्टी में अर्पित किया जा सकता है। जिन्हें पितरों की तिथि नहीं मालूम, वे अमावस्या पर तर्पण कर सकते हैं।”
Highlights
पितृपक्ष के समय काशी में किए गए तर्पण और पिंडदान न केवल पितरों की आत्मा को संतोष और मोक्ष प्रदान करते हैं, बल्कि श्रद्धालुओं को भी जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। काशी की पवित्रता और यहां के धार्मिक स्थलों का महत्व इस पर्व को और भी विशेष बनाता है।