- भारतीय शास्त्रीय संगीत का पूरे विश्व में करना चाहती हूं प्रचार-प्रसार
- सब कुछ भारतीय शास्त्रीय संगीत को कर दिया समर्पित
- बचपन में चाइल्ड थियेटर की ओर रहा रूझान
राधेश्याम कमल
वाराणसी। शास्त्रीय संगीत के प्रति इतना लगाव कि असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी और सब कुछ भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित कर दिया। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की कई रचनाओं को स्वरबद्ध किया। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में करना चाहती हैं। बनारस की शास्त्रीय संगीत गायिका डॉ० रागिनी सरना का यही कहना है। डॉ० रागिनी सरना को बचपन में चाइल्ड थियेटर की ओर कुछ ज्यादा ही रूझान था। रंगमंच पर नाटकों के मंचन में अभिनय कर अपनी दक्षता को प्रदर्शित किया। वे बताती हैं कि कई नाटकों में अभिनय करने के बाद यह रूझान थियेटर की ओर से हट कर शास्त्रीय संगीत की ओर हो गया।
डॉ० रागिनी सरना शास्त्रीय गायन में ख्याल के अलावा दादरा, चैती, कजरी, होली, झूला आदि गाती हैं। देश के विभिन्न शहरों के अलावा बनारस के कई प्रमुख मंचों पर डॉ० रागिनी सरना ने अपना परफारमेंस देकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया है। शास्त्रीय गायन के अलावा वे गजल व गीतों को भी मंचों पर पेश करती हैं। यही नहीं, शास्त्रीय गायन के अलावा रागिनी सरना ने कथक नृत्य की भी बारीकियों को भी सीखा है।

बहुमुखी प्रतिभा की हैं धनी
किसी भी कलाकार में इतनी ज्यादा प्रतिभा बहुत कम ही देखने को मिलती है। लेकिन डॉ० रागिनी सरना बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। वे इतनी मिलनसार हैं कि उनके यहां शिल्पायन में आने वाले शिष्य व शिष्याएं उनके मृदु व्यवहार से प्रभावित हो जाते हैं। वह स्थानीय के अलावा विदेशों में भी आनलाइन संगीत की शिक्षा देती हैं। जो निरंतर जारी है। प्रख्यात शास्त्रीय गायिका डॉ० रागिनी सरना से जनसंदेश टाइम्स की खास मुलाकात हुई।
संकटमोचन संगीत समारोह में पिता संग जाती थी संगीत सुनने
डॉ० रागिनी सरना ने बताया कि वे अपने पिता के संग विश्व प्रसिद्ध संकटमोचन संगीत समारोह में संगीत सुनने के लिए जाया करती थी। उन्होंने बताया कि संकटमोचन संगीत समारोह में जाने के चलते ही मेरा शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में रूचि जागृत हुई। नागरी नाटक मंडली प्रेक्षागृह में जाने के दौरान मेरी मुलाकात वर्ष 1997 में प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं। देवाशीष डे से हुई। उनसे मुलाकात के बाद ही शास्त्रीय संगीत में मेरा रूझान और भी बढ़ गया। इसके बाद से ही हमने रंगमंच को छोड़ दिया। मेरे सर्वप्रथम गुरू पं। देवाशीष डे हैं। उनके सानिध्य में ही रह कर उन्होंने शास्त्रीय संगीत की बाराकियों को जाना व समझा। उनका कहना है कि संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए वह अपने गुरु पं। देवाशीष डे के सपने को पूरा कर रही हूं। इस सपने को पूरा करने के लिए हमने जोधपुर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी। डॉ० रागिनी सरना ने बीएचयू से वर्ष 2002 में संस्कृत व म्यूजिक में बीए। आनर्स, 2004 में एम।म्यूज, 2005 में यूजीसी नेट जेआरएफ (पीएचडी) 2009 में यूजीसी नेट एसआरएफ किया।

कई अवार्ड किए अपने नाम
डॉ० रागिनी सरना को वैसे तो कई दर्जन पुरस्कार मिले, लेकिन इसमें प्रमुख रूप से सुर शृंगार मुंबई की ओर से सुरमणि, यूपी संगीत नाटक अकादमी, नटराज कला परिषद, प्रयाग संगीत समिति प्रयागराज की ओर से प्रतिष्ठित गोल्ड मेडल अवार्ड मिला। स्पेन में वह गायन करने जा चुकी हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, पठानकोट, कुल्लू मनाली, रायपुर, जयपुर आदि कई शहरों में गायन को लेकर वर्कशाप कर चुकी हैं। वर्तमान में डॉ० रागिनी सरना जापान के 40 से अधिक शिष्यों को आन लाइन संगीत सीखा रही हैं।
संगीत पर तीन पुस्तकों की रचना
डॉ० रागिनी सरना ने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में रह कर तीन पुस्तकों की रचना की। इसमें राग रगिनी, शिल्पायन संगीत लेख वीथिका व साधो तुम्हें प्रणाम प्रकाशित हो चुकी है। रागिनी सरना आकाशवाणी व दूरदर्शन की बी ग्रेड की कलाकार हैं। संकटमोचन संगीत समारोह, गंगा महोत्सव स्वर शृंगार पुणे समेत न जाने कितने ही मंचों पर उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है।
वर्तमान में वे भेलूपुर स्थित शिल्पायन में बतौर प्राचार्या के पद पर नियुक्त हैं। जहां पर वह शिष्य व शिष्याओं को गायन व वादन में पारंगत करती हैं। इससे पहले वह यहां पर सचिव के पद पर रहीं। उनके प्रशिक्षित शिष्य व शिष्याएं सीसीआरटी में उत्तीर्ण हुए हैं जिसे वह अपनी उपलब्धि मानती हैं।
रागिनी !
काशी तुम पर नाज़ करती है….😅
गायन के क्षेत्र में तुम सदैव प्रगति करती रहो और हम सब को आनंदित करती रहो….😊🌷🍀❣
प्यार से….सरिता आंटी
❣❣😊❣❣
बिल्कुल ठीक, बहुमुखी प्रतिभा की धनी रागिनी सरना जी ने अपना संपूर्ण जीवन संगीत एवं गुरु चरणों में समर्पित कर दिया है। आपको अनेक शुभकामनाएँ एवं साधुवाद।💐💐🙏