- एनआरएलएम को है बड़े ब्रांड अंबेसडर की दरकार
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ रही महिलाएं
- पूर्व की स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना में पुरुषों का था वर्चस्व, महिलाएं रहीं उपेक्षित
- महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही स्कीम, कई स्तर पर हो रहे प्रयासों का दिख रहा असर
सुरोजीत चैटर्जी
वाराणसी। एक वक्त था जब आधी आबादी को कंधे से कंधा मिलाकर चलने के दावों के बावजूद गांव की महिलाएं लोगों के सामने बात करने में सकुचाती थीं। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की आत्मनिर्भरता के बारे में सोचा भी नहीं जाता था। घर में चौका-बर्तन, पति-बच्चों की देखभाल, सास-ससुर की सेवा में ही उनके दिन बीत जाते थे। अब ये दौर है कि महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। काम-काज और स्वरोजगार की ओर उन्होंने कदम बढ़ा दिये हैं। ग्रामीण महिलाएं अब मुखर हो चुकी हैं। समस्याओं और मुद्दों को लेकर आवाज़ उठाने लगी हैं। घर-परिवार चलाने के लिए खुद रोज़गार कर रही हैं। इस दिशा में उनके बढ़े आत्मविश्वास का अनुमान इसी से लगाएं कि वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री समेत देश-विदेश के तमाम प्रमुख नेताओं और लोगों से बात करने में संकोच नहीं करतीं। उनके बनाए प्रोडक्ट मार्केट में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इस पहल में बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है सरकार की ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ यानि एनआरएलएम। यह स्कीम अब प्रदेश स्तर पर भी संचालित हो रही है। इस पहल के बावजूद स्वरोजगारी महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती है बड़ी-बड़ी कंपनियों के बहुप्रचारित उत्पाद।

कंपनियां विख्यात लोगों और सेलिब्रिटीज़ को मॉडल के तौर पर पेश करती हैं। उन्हें ब्रांड अंबेसडर बनाती हैं। ज़ाहिर तौर पर उसका प्रभाव आमलोगों पर पड़ता है तो कंपनियों के प्रोडक्ट आसानी से बिक भी जाते हैं। इस चैलेंज के बावजूद ठेठ गांव की स्वरोजगारी महिलाओं की मेहनत में कमी नहीं आयी है। उनके उत्पाद अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की जद्दोजहद जारी है। महिला स्वरोजगार समूहों यानि सेल्फ हेल्प ग्रुप्स यानि एसएचजी को भी बड़े ब्रांड अंबेसडर की आवश्यकता है। एनआरएलएम के कारण समाज में आए बदलाव पर उपायुक्त एनआरएलएम दिलीप कुमार सोनकर से ‘खास मुलाक़ात’ की गयी—-
स्कीम में व्यापक स्तर पर दी जा रहीं सुविधाएं
दिलीप कुमार सोनकर बताते हैं कि पहले स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना संचालित होती थी। उसमें स्वरोजगार समूहों को चलाने के लिए महिला व पुरुष की भागीदारी एकसाथ हुआ करती थी। अनुदान आदि कम थे। वहीं, पुरुष प्रधान समाज में तमाम मामलों में स्वरोजगार समूहों के पुरुष सदस्य समूह की महिला सदस्यों को तवज्जो नहीं देते थे। उस स्थिति गांवों में महिला सशक्तिकरण की सोच को अमली जामा पहनाने में दिक्कत होने लगी।

साथ ही समूह में शत-प्रतिशत सदस्यों की भागीदारी में अड़चनों के चलते कई व्यावहारिक समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं। तब सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना को बंद कर महिलाओं को महत्व देते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन आरंभ किया। इसमें कई स्तर पर अनुदान और ग्रांट आदि देकर स्वरोजगार समूहों को प्रोत्साहित किया जाता है। यहां तक कि एक ग्राम पंचायत में पांच स्वरोजगार समूह बनने पर ‘ग्राम संगठन’ बनाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 75 हजार रुपये ग्रांट भी देते हैं। जोखिम निवारण निधि के रूप में 1.50 लाख रुपये और कलस्टर फेडरेशन में मेंटेनेंस के लिए 1.10 लाख रुपये देते हैं। इसी प्रकार अन्य प्रक्रिया भी की जाती है।

सुधर रहा ग्रामीण परिवारों का जीवन स्तर
दिलीप सोनकर के मुताबिक भारत सरकार का राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन वाराणसी और पूर्वांचल कई जिलों में 2015 में एकसाथ लागू हुई। पूरी तरह महिलाओं के नेतृत्व पर आधारित इस स्कीम के तहत बीते जनवरी माह तक वाराणसी जनपद में कुल 10,434 स्वरोजगार समूहों का संचालन हो रहा है। इन समूहों में कुल मिलाकर एक लाख 25 हजार 208 महिलाएं मिलकर विभिन्न उत्पाद तैयार कर रही हैं। उनके घर-परिवार के जीवन स्तर में आर्थिक समेत कई स्तर पर सुधार दिख रहा है। एनआरएलएम ने महिलाओं में क्रांति ला दी है। इसके प्रति महिलाओं की बढ़ती रुचि का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में 991 समूह गठन के लक्ष्य के सापेक्ष अबतक 1054 सेल्फ हेल्प ग्रुप्स (एसएचजी) का गठन हो चुका है।

फिलहाल स्थानीय स्तर पर उनके उत्पाद बाज़ार तक पहुंचाए जा रहे हैं। साथ ही ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनियों समेत जेम पोर्टल के जरिये प्रोडक्ट मुहैया कराने का प्रयास जारी है। इन स्वरोजगारी महिलाओं को विभिन्न शिल्प मेला, सरस मेला, राज्य व राष्ट्रीयीय स्तर के मेलों में भेजते हैं।
स्किल बढ़ाने की कवायद
एक सवाल के जवाब में दिलीप सोनकर कहते हैं कि महिला स्वरोजगारियों के उत्पादों की बेहतर मार्केटिंग के लिए पैकेजिंग आदि की दिशा में स्किल डेवलप करने की कवायद चल रही है। मार्केटिंग को लेकर स्वरोजगारी महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है।

एनआरएलएम में इन रोज़गारों से जुड़ी हैं महिलाएं
मुर्गी पालन में : 708
फाइल मेकिंग में : 30
पशुपालन में : 23261
कृषि कार्य में : 28924
सिलाई-कढ़ाई में : 3404
फूलों की खेती में : 1340
सब्जी की खेती में : 9478
दोना-पत्तल बनाने में : 352
अचार-मुरब्बा बनाने में : 153
परचून आदि की दुकानदारी में : 3233
काशी विश्वनाथ मंदिर का महाप्रसाद बनाने में : 20
मोती माला-मसाला-पीतल बर्तन आदि बनाने में 982

2018 से हैं डीसी एनआरएलएम
प्रयागराज के मूल निवासी दिलीप कुमार सोनकर ने इलाहाबाद जनपद से ही पोस्ट ग्रैजुएट तक की शिक्षा प्राप्त की। सरकारी नौकरी में सन 1988 में सीनियर अकाउंटेंट के तौर पर आए। 1994 में खंड विकास अधिकारी बने और सोनभद्र में 1997 में बीडीओ के रूप में तैनाती मिली। 2018 में पदोन्नत होकर राष्टÑीय ग्रामीण आजीविका मिशन के उपायुक्त (डीसी एनआरएलएम) का दायित्व संभाल रहे हैं।
ये भी कर रहीं कार्य
बैंक सखी : 112
समूह सखी : 664
विद्युत सखी : 107
आजीविका सखी : 347
इंटर्नल रिसोर्स पर्सन : 369
सीनियर इंटर्नल रिसोर्स पर्सन : 94
फायनेंस इंटर्नल रिसोर्स पर्सन : 90