Varanasi: निर्जला एकादशी के शुभ अवसर पर बाबा विश्वनाथ का विशेष जलाभिषेक आयोजन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से किया गया, जिसमें पांच पवित्र नदियों – गंगा, सिंधु, चिनाब, रीवा और मानसरोवर – के जल से बाबा का अभिषेक किया गया। यह अभूतपूर्व आयोजन धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनकर उभरा। काशी (Varanasi) के घाटों पर गुरुवार सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। गंगा स्नान और दान करने के लिए लोगों का सैलाब उमड़ आया। मंदिर परिसर ‘हर-हर महादेव’ के जयघोष से गूंज उठा और वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।

भक्ति की मिसाल बनी कलश यात्रा
इस आयोजन की शोभा उस समय और बढ़ गई जब सैकड़ों महिलाएं सिर पर कलश लिए, सिंधु नदी का पवित्र जल लेकर राजेंद्र प्रसाद घाट (Varanasi) से बाबा विश्वनाथ मंदिर तक पहुँचीं। पूरी यात्रा वैदिक मंत्रोच्चारण और भक्ति संगीत के साथ पारंपरिक विधि-विधान से सम्पन्न हुई। श्रद्धा और आस्था से परिपूर्ण यह दृश्य हर किसी को भावविभोर कर गया।

इस भव्य यात्रा में पूर्व मंत्री नीलकंठ तिवारी भी शामिल हुए और उन्होंने इस सांस्कृतिक आयोजन को अपना समर्थन दिया। यह आयोजन काशी की गंगा-जमुनी तहजीब और आध्यात्मिक विरासत की एक शानदार झलक प्रस्तुत करता है।
Varanasi: व्रत का महत्व और धार्मिक आस्था
पंडित आचार्य विकाश ने बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत सभी तीर्थों में स्नान के बराबर फल देता है। इस दिन अन्न के साथ-साथ जल का भी पूर्ण रूप से त्याग किया जाता है, जिससे इसका नाम ‘निर्जला’ पड़ा है।

उन्होंने बताया कि महाभारत काल में पांचों पांडवों में से भीम, जो अधिक भोजन करते थे और व्रत में संयम नहीं रख पाते थे, उन्होंने भी इस कठिन व्रत को किया था और इसके फलस्वरूप उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसलिए इसे ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है।
इस दिन व्रत रखने वालों को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही जरूरतमंदों को छाता, वस्त्र, फल, गुड़ और जल से भरा कलश दान करना विशेष फलदायी माना गया है। अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना, दान देना और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।