- मेहनत, लगन, परिश्रम से जुटे रहिये सफलता निश्चित मिलेगी
- मेरा परफारमेंस कभी रूकेगा नहीं लगातार जारी रहेगा
- मेरे गुरू ही मेरे जीवन के हैं आदर्श
- युवा कथक नर्तक रूद्र शंकर से खास मुलाकात
राधेश्याम कमल
वाराणसी। खुद को बेहतर बनने के लिए जिन बड़े कलाकारों ने बड़ी रेखाएं खींची थी उनसे आगे आने के लिए बड़ी लकीरें खींचने की कोशिश कर रहा हूं। इस आर्ट से हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ सकूं इसके लिए हम शुरू से ही प्रयासरत हैं। इस आर्ट परफारमेंस में हमें लगातार सफलता भी मिलती जा रही है। यह कहना है बनारस घराने के युवा कथक नर्तक रूद्र शंकर का जिन्होंने कम उम्र एवं कम समय में ही सफलता के नये आयाम स्थापित कर लिये हैं। जीवन के 25वें वसंत में पदार्पण करने वाले रूद्र शंकर बनारस के प्रख्यात कथक नर्तक पं. माता प्रसाद मिश्र के सुपुत्र हैं। पं. माता प्रसाद मिश्र-पं. रविशंकर मिश्र की कथक में बहुत ही पुरानी जोड़ी अब तक चली आ रही है। रूद्रशंकर का पूरा परिवार ही संगीत से जुड़ा हुआ है। उनके ताऊ पं. चन्द्रशेखर मिश्र कथक में हैं। छोटा भाई उदय शंकर तबला वादन के क्षेत्र में प्रसिद्धि अर्जित कर रहे हैं। कहा कि मेरे गुरु ही मेरे आदर्श हैं। वे दूरदर्शन के ग्रेडेड कलाकार हैं। उन्हें कई पुरस्कारोंं से नवाजा गया है। उन्हें अभी हाल में ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पुरस्कार मिला है। कहा कि मेहनत, लगन, परिश्रम से जुटे रहिये सफलता निश्चित मिलेगी। बोले- मेरा परफारमेंस कभी रूकेगा नहीं लगातार जारी रहेगा। चेतगंज के चाउरछटवां निवासी रूद्र शंकर से उनके आवास पर जनसंदेश टाइम्स ने खास मुलाकात की।

मेरे प्रथम गुरु पिता माता प्रसाद, बाद में पं. रविशंकर रहे
रूद्र शंकर बताते हैं कि कथक की प्रारम्भिक शिक्षा हमने अपने पिता व गुरु प्रख्यात कथक नर्तक पं. माता प्रसाद मिश्र से ली। इसके प्रसिद्ध कथक नर्तक व चाचा पं. रविशंकर मिश्र के सानिध्य में आकर कथक की बारीकियों को सीखा। हम लोग आचार्य पं. सुखदेव महराज की शिष्य परम्परा के अन्तर्गत आते हैं। वे बताते हैं कि कथक की शुरूआत उन्होंने महज डेढ़ साल की उम्र में स्वीटजरलैंड से की। उन दिनों पापा स्वीटजरलैंड में कथक करने के लिए गये थे। इस समारोह में हम भी साथ में बैठे थे। बाद में बैठे-बैठे हम भी कथक करने लगे। इस पर वहां बैठे हजारों दर्शकों ने तालियां बजा कर मेरा उत्साहवर्धन किया। यही से मेरा परफारमेंस शुरू हो गया।

महज ग्यारह साल की उम्र में संकटमोचन में पेश किया कथक
वे बताते हैं कि पापा का आशीर्वाद तो शुरू से ही हम पर रहा। लेकिन पांच साल की उम्र से उन्होंने हमें कथक का पूरा ज्ञान दिया। इसके बाद शीतला माता संगीत समोराह, दुर्गा मंदिर में छह वर्ष की उम्र में कथक पेश किया। महज ग्यारह वर्ष की उम्र में प्रसिद्ध संकटमोचन संगीत समारोह में परफारमेंस दिया। इसके बाद डा. राजेन्द्र प्रसाद घाट पर गंगा महोत्सव में कथक पेश किया।
तबला सम्राट पं. किशन महाराज ने दिया था 101 रु. का पुरस्कार
रूद्र शंकर बताते हैं कि जब वे बहुत छोटे थे तब प्रसिद्ध तबला वादक पं. किशन महराज के कबीरचौरा स्थित आवास पर कथक पेश किया था। पं. किशन महराज ने कथक देख कर इतने खुश हुए थे कि उन्होंने 101 रुपये का पुरस्कार दिया। कहा था कि बेटा अभी बहुत छोटे हो लेकिन तुम बहुत अच्छा कर रहे हो। काफी आगे तक जाओगे। वे बताते हैं कि काशी नरेश कुंवर अनंत नारायण सिंह के महल में जब परफारमेंस किया तो उनकी महारानी ने खुश होकर मुझे सम्मानित किया।
दर्शकों ने दी बाल नटराज की उपाधि
रूद्र शंकर बताते हैं कि बचपन से ही वे शिव पर आधारित डांस ज्यादा करते हैं। यही वजह है कि दर्शकों ने मुझे बाल नटराज की उपाधि दी। ग्यारह वर्ष की उम्र में जब वे फिर स्वीटजरलैंड गये थे तो वहां पर वर्क-ए- कुंड म्यूजियम में सात दिनों तक परफारमेंस दिया था। जापान में भी वे जब पापा के साथ गये तो वहां टोकियो, क्योटो व फरेडो में कई परफारमेंस दिये। जापान में एक माह का कार्यक्रम था। जापान में संगीत फेस्टिवल में दो दिन रात भर प्रोग्राम चलता है।
पं. बिरजू महराज, दुर्गा लाल व गोपी कृष्ण का है असर
वे बताते हैं कि उनके कथक पर तीन गुरुओं का असर है। इनमें पं. बिरजू महराज, दुर्गा लाल व गोपी कृष्ण हैं। हम कथक में नार्थ और साउथ दोनों को लेकर परफारमेंस करते हैं। वे अब तक ताज महोत्सव, गोपीकृष्ण फेस्टिवल, अवध महोत्सव, महाकथक उत्सव, उदय शंकर डांस फेस्टिवल समेत न जाने कितने ही महोत्सवों में भाग ले चुके हैं। रूद्र शंकर कथक के दौरान जब हवाई चक्कर लगाते हैं तो दर्शक दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। इसके अलावा वह घोड़े की चाल, ट्रेन की गति आदि कई परफारमेंस करते हैं।