- कहा-शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था के मूलभूत सुधारों पर करना चाहिए फोकस
- बीएचयू के अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र का दो दिनी आयोजन
जितेंद्र श्रीवास्तव
वाराणसी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि शिक्षक ही युवाशक्ति के निर्माता होते हैं। उन्होंने कहा कि काबिल युवाओं को तैयार करने वाले शिक्षक ही हैं। वह बीएचयू के अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र की तरफ से आयोजित दो दिवसीय ‘शैक्षिक जगत के समक्ष उच्च शिक्षा में उभरती चुनौतियां’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि पद से शुक्रवार को संबोधित कर रहे थे।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था के मूलभूत सुधारों पर फोकस करना चाहिए। सीखने-सिखाने के साथ वर्तमान में जीना होगा। चिंतन-मनन करना ही शिक्षक का काम है। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि सीखने के लिए हर इंसान को अहंकार से दूर होना होगा। काम करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। पूर्व राष्ट्रपति ने मातृभाषा में शिक्षा और उसके प्रयोग को तेजी से आत्मसात करने की बात कही। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि सभी स्तरों पर शिक्षकों को हमारे समाज के सबसे सम्मानित और जरूरी सदस्यों के रूप में फिर से स्थापित किया जाना चाहिए, क्योंकि वे लोग ही वास्तव में नागरिकों की हमारी अगली पीढ़ी को आकार देते हैं।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए आईयूसीटीई गवर्निंग बोर्ड के चेयरमैन प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र में शिक्षाविदों की नियति है कि वे आंतरिक या बाह्य प्रत्येक चुनौती का समाधान प्रस्तुत करें, जिनका लोग या राष्ट्र सामना कर सकते हैं। एकेडेमिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने भीतर उम्मीदों के आलोक में देखना है। इसके लिए इतिहास, विरासत, संस्कृति, ज्ञान निर्माण और पीढ़ीगत परंपरा के गहन अध्ययन की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षाविदों का आह्वान किया कि वे अपनी साख को पुर्नस्थापित करने और उच्च शिक्षा संस्थानों की विश्वसनीयता को एक बार फिर से उन्नत स्तर पर पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत करें।
इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 100 से ज्यादा प्रतिभागी शामिल हुए हैं। इस दौरान कुल 15 विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान भी होंगे। इस संगोष्ठी का उद्देश्य वर्तमान और भविष्य में शैक्षिक जगत के समक्ष उच्च शिक्षा में उभरती चुनौतियों को चिह्नित करना है। साथ ही उनके समाधान के लिए सार्थक विमर्श और भावी कार्ययोजना पर विचार-मंथन करना है। सभी का स्वागत करते हुए केंद्र के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने संगोष्ठी की आवश्यकता व रूपरेखा से प्रतिभागियों को अवगत कराया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में आईयूसीटीई के दायित्वों से अतिथियों एवं प्रतिभागियों को परिचित करवाया। संचालन डॉ. रचना विश्वकर्मा ने किया। धन्यवाद वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हरीशचंद्र ने दिया। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. दीप्ति गुप्ता व सह संयोजक डॉ. कुशाग्री सिंह रहे।