Aacharya Narendra Dev: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य नरेंद्र देव की जयंती को विवि प्रशासन ने भूला दिया। विवि ने लौह पुरुष सरदार पटेल की जयंती तो मनाई लेकिन अपने खुद के पूर्व कुलपति और देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले समाजवादी विचारक आचार्य नरेंद्र देव को भूला दिया।
हद तो तब हो गई कि विवि के तमाम विभागों में लौह पुरुष की जयंती पर विविध आयोजन किये गये लेकिन आचर्य [Aacharya Narendra Dev] के विषय में विवि प्रशासन के किसी भी अधिकारी की ओर से एक शब्द भी नहीं बोला गया। बता दें कि आचार्य नरेंद्र देव का जन्म 31 अक्तूबर 1889 में हुआ था। वह 1916 से 1948 तक आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य और जवाहरलाल वर्किंग कमेटी के सदस्य भी थे।
भग्न स्वास्थ्य के बावजूद आपने 1930 के नमक सत्याग्रह, 1932 के आंदोलन तथा 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में साहस के साथ भाग लिया और जेल की यातनाएं भी सहीं। आपके लिये यह भी जानना जरूरी है कि आचार्य नरेंद्र देव को पहले काशी विद्यापीठ के उपाध्यक्ष और सन 1926 में भगवान दास जी के इस्तीफे के बाद काशी विद्यापीठ के अध्यक्ष( कुलपति) बनाया गया था।
काशी विद्यापीठ के ही श्रीप्रकाश ने पहली बार उन्हें आचार्य कहकर संबोधित किया, जो बाद में उनके नाम के साथ स्थाई रूप से जुड़ गया। इन्हें काशी विद्यापीठ में समाजवदी विचारधारा की नींव रखने के लिए भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर के एक कायस्थ परिवार में जन्में आचार्य नरेंद्र देव के पिता बलदेव प्रसाद नामी-गिरमी अधिवक्ता थे। साथ ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पिता का प्रभाव आचार्य नरेंद्र देव के भी पड़ा।
Aacharya Narendra Dev की प्रारंभिक शिक्षा सीतापुर में ही हुई। उन्होंने बीए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। इसके बाद पुरातत्व पढ़ने के लिए वह क्वींस कालेज आ गए। वर्ष 1913 में उन्होंने संस्कृत से एमए, व एलएलबी किया। पढ़ाई करते हुए ही नरेंद्र देव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए। लिहाजा लोकमान्य तिलक, आरसी दत्त व जस्टिस रानाडे जैसे क्रांतिकारियों के प्रभाव में रहे। बहरहाल पिता की इच्छा को देखते हुए उन्होंने फैजाबाद में वकालत भी शुरू की।
Aacharya Narendra Dev: देश की आजादी में निभाई थी अहम भूमिका
वर्ष 1915 से 1920 तक उन्होंने [Aacharya Narendra Dev] वकालत की। इस बीच असहयोग आंदोलन शुरू हो गया। इसे देखते हुए वह वकालत छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। बाद में शिव प्रसाद गुप्त के आमंत्रण पर वह विद्यापीठ आ गए। वर्ष 1926 में भारत रत्न डॉ. भगवानदास के त्यागपत्र देने के बाद उन्हें काशी विद्यापीठ का आचार्य बनाया गया। 1934 में जय प्रकाश नारायण के सुझाव पर सोशलिस्ट पार्टी के उद्घाटन सत्र में नरेंद्र देव को चेयरमैन बनाया गया। इसके बाद वे जीवन भर समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे।
उन्होंने [Aacharya Narendra Dev] संघर्ष व समाज नामक साप्ताहिक विद्यापीठ व समाज नामक त्रैमासिक, जनवाणी नामक मासिक पत्रिका का भी संपादन किया। आचार्य ईमानदारी और नैतिकता को सर्वोच्च स्थान पर रखते थे। जब कांग्रेस से मतभेद हुआ तो उन्होंने नैतिकता के आधार पर विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। आजीवन राष्ट्रीयता और समाजवाद को प्रेरणास्रोत मानने वाले आचार्य नरेंद्र देव का निधन 19 फरवरी 1956 में हुआ।