- राधेश्याम कमल
Aakashdeep: काशी के नभमंडल में शनिवार की शाम बांस की टोकरियों में आकाशदीप जगमगाने लगे। एक ओर शरद पूर्णिमा की चांदनी चटख हुई और दूसरी ओर प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर शहीदों की याद में बांस के पोरों पर आकाशदीप [Aakashdeep] जलने शुरू हुए। बांस की डलियों में टिमटिमाते दीप चंद्रहार की मानिंद झिलमिला उठे। गंगोत्री सेवा समिति की ओर से यह आकाशदीप लोगों की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले पुलिस एवं पीएसी के 11 शहीदों की स्मृति में जलाए गए।
गंगा की मध्यधारा में दीपदान भी किया गया। प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर पुलिस और पीएसी के शहीद जवानों को नमन करते हुए आकाशदीप जलाने की शुरूआत पांच वैदिक आचार्यों ने मां गंगा के षोडशोचार पूजन से की। इसके बाद 101 दीपों को गंगा में प्रवाहित किया गया। इस दौरान वेद मंत्रों की गूंज होती रही। पीएसी बैंड की धुन के साथ मुख्य अतिथियों ने शहीदों की याद में आकाशदीप प्रज्ज्वलित किए।
जिन शहीद जवानों की याद में आकाशदीप [Aakashdeep] जलाए गए, उनमें स्व० भेदजीत सिंह, आरक्षी जनपद जालौन, स्व० संदीप निषाद, आरक्षी जनपद प्रयागराज, स्व० राघवेंद्र सिंह आरक्षी जनपद प्रयागराज, स्व० जसवंत सिंह, कानपुर, स्व० विपिन कुमार, पीएसी 12वीं बटालियन अलीगढ़, स्व० कुलदीप त्रिपाठी 25वीं बटालियन रायबरेली, स्व० वीरेंद्र नाथ मिश्रा उप निरीक्षक नागरिक पुलिस, स्व० सुनील कुमार चौबे मुख्य आरक्षी नागरिक पुलिस, स्व. देवेंद्र मिश्र पुलिस उपाधीक्षक, स्व० सुमित कुमार आरक्षी, स्व० उमाशंकर यादव आरक्षी के नाम शामिल हैं।
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आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक पुलिस और पीएसी के वीर शहीद जवानों की याद में जलाए जाने वाले आकाशदीप [Aakashdeep] की शुरूआत के अवसर पर समिति के अध्यक्ष पं. किशोरी रमण दुबे ने बताया कि शहीदों की आत्माओं का मार्ग आलोकित करने के लिए गंगा के तट पर आकाशदीप रोशन किए जाते हैं। कार्तिक मास में दीपदान का विधान और विशेष महत्व है। कहा कि गंगा के घाट पर कार्तिक माह में जलता आकाशदीप [Aakashdeep] इस बात का परिचायक है कि हमारे शहीदों के प्रति हमारे मन में श्रद्धा की रोशनी कितनी उज्जवल है।
आयोजन में प्रमुख रूप से पं कन्हैया त्रिपाठी, गंगोत्री सेवा समिति के सचिव दिनेश शंकर दुबे, गंगेश्वरधर दुबे, डॉ संतोष ओझा, शांतिलाल जैन, संकठा प्रसाद, गीतकार कन्हैया दुबे केडी रामबोध सिंह आदि शामिल रहे। संचालन नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला ने किया।
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पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा यानि देव दीपावली तक जलते हैं Aakashdeep
दिव्य कार्तिक मास में गंगा तट सरोवरों, तालाबों व कूपों के साथ ही घर की छतों तक पर आकाशदीप [Aakashdeep] जलाने की प्रथा काशी में सदियों पुरानी है। इसका प्रमाण है पंचनद तीर्थ के रूप में पूजित पंचगंगा घाट पर होल्कर घराने की महारानी अहिल्याबाई के गढ़वाया गया हजार दीपों से अलंकृत गुलाबी पत्थरों वाला वह विशाल दीप स्तंभ, जिसकी आयु अब तक 240 वर्ष (स्थापना वर्ष 1780) हो चुकी है। काशी के घाटोें पर आकाशदीप [Aakashdeep] जलाने की परम्परा बढ़ती ही जा रही है।
इस परंपरा के तहत काशी के घाटों पर आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक वेद पाठ के बीच दिव्य ज्योति की टोकरी को अनंत आकाश की ओर ले जाया जाता है। वैसे तो लंबे-लंबे बांसों के शीर्ष पर टंगी पिटारियों में जलाए जाने वाले इन आकाशदीपों से काशी के लगभग सभी घाटों की छटा कार्तिक मास में निखर उठती है, किंतु पंचगंगा घाट, दशाश्वमेध घाट, गायघाट, केदार घाट व अस्सी घाट पर ज्योतिपुंज का एक झुरमुट-सा बनाते यह आकाशदीप अलौकिक आभा का सृजन करते प्रतीत होते हैं।
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मास पर्यंत निभाई जाने वाली इस रस्म का निर्वहन नगर के कई ऐसे नेमी परिवारों में घरेलू लोकाचार के रूप में भी होता है। लोग काष्ठ स्तंभों पर लाल बल्ब जलाकर हर शाम संध्योपासना के साथ अपने यशस्वी पूर्वजों की शेष स्मृतियों को नमन करते हैं। इस पर्व का समापन त्रिपुरोत्सव की महत्ता प्राप्त कार्तिक की ओस में भीगी पूर्णिमा की रात देवदीपावली पर्व की धूमधाम के बीच होता है। पांच हाथ से लेकर बीस हाथ तक की लंबाई वाले बांसों की फुनगी पर लगी घिर्रियों के सहारे करंड की पिटारी में आलोकित किए जाने वाले इन आकाशदीपों की विद्वानों ने आधात्यमिक व्याख्या भी की है।
इन आख्यानों के अनुसार आकाश सर्वव्यापी ब्रह्म का प्रतीक है। पिटारी की खपच्चियां जीवात्मा का बोध कराती हैं। मूल दर्शन यह कि जीव के मन में ज्ञानदीप प्रज्ज्वलित होने पर ही भौतिक सुखों की प्राप्ति के संग परम ब्रह्म का सानिध्य भी प्राप्त होता है।