Abbas Ansari: मऊ सदर से विधायक अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता अब इतिहास बन गई है। हेट स्पीच से जुड़े एक मामले में दो साल की सजा मिलने के बाद उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो गई। शनिवार को मऊ के एमपी-एमएलए कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया था, जिसके अगले ही दिन रविवार को विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने औपचारिक निर्णय लेते हुए मऊ सदर सीट को रिक्त घोषित कर दिया।
इस विशेष कार्यवाही के लिए विधानसभा सचिवालय को रविवार की छुट्टी के दिन खोला गया और चुनाव आयोग को इसकी विधिवत जानकारी दे दी गई। अब मऊ सदर सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं।
Abbas Ansari: क्या है मामला?
वर्ष 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) ने एक जनसभा में भड़काऊ बयान दिया था। उन्होंने मंच से यह कहा था कि उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बात कर यह सुनिश्चित किया है कि सरकार बनने के छह महीने तक किसी अधिकारी या कर्मचारी का तबादला नहीं होगा, ताकि पहले “हिसाब-किताब” बराबर किया जा सके।
उनके इस बयान (Abbas Ansari) को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना गया और सब-इंस्पेक्टर गंगाराम बिंद ने मऊ कोतवाली में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। मामला करीब तीन वर्षों तक अदालत में चला और अंततः शनिवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) डॉ. केपी सिंह ने अब्बास को दो साल की सजा और ₹2000 का जुर्माना सुनाया।
कानूनी प्रक्रिया और परिणाम
भारत के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार, किसी भी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा मिलने पर उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। इसी के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द करने की अधिसूचना जारी की।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और जीत
अब्बास अंसारी (Abbas Ansari), कुख्यात पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी के बेटे हैं। उन्होंने 2022 के चुनाव में अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए सपा-सुभासपा गठबंधन के तहत मऊ सदर सीट से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में अब्बास को 1,24,691 वोट मिले थे और उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी अशोक सिंह को 38,575 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। अब उनकी सदस्यता समाप्त होने से मऊ सदर की राजनीति एक बार फिर नया मोड़ लेने वाली है।
अब चुनाव आयोग जल्द ही मऊ सदर सीट के उपचुनाव की तारीखों का ऐलान करेगा। इस उपचुनाव को राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जा रहा है, खासकर पूर्वांचल की राजनीतिक फिजा को देखते हुए।