क्या आपने कभी ध्यान दिया हैं कि जब भी चंद्र ग्रहण लगता है तो उस समय पूर्णिमा की रात होती है लेकिन ऐसा क्यों? चंद्र ग्रहण का हमेशा पूर्णिमा की रात को लगने का ही क्या कारण हैं ? आज हम आपकी इस चिंता का समाधान करेंगे तथा आपको बताएँगे कि इस समय ऐसी क्या स्थिति बनती हैं जिससे यह पूर्णिमा के दिन ही आता है।
चंद्र ग्रहण के समय स्थिति
जब चंद्र ग्रहण लगता हैं तो उस समय हमारी पृथ्वी सूर्य तथा चंद्रमा के मध्य में आ जाती है। इस स्थिति में चंद्रमा तक या तो सूर्य का प्रकाश बिल्कुल भी नही पहुँच पाता या आंशिक रूप से पहुँचता है। ऐसे समय में चंद्रमा पृथ्वी की छाया में रहता हैं जिसे हम चंद्र ग्रहण कहते हैं।
पृथ्वी के ठीक पीछे होने के कारण यह हमें पूर्ण रूप से दिखाई तो देता हैं लेकिन अपने उस प्रकाश को हमारे तक नही पहुंचा पाता। इसी कारण उस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई तो पड़ता हैं लेकिन सूर्य का प्रकाश न पहुँचने के कारण यह लाल पड़ जाता है जिसे हम चंद्र ग्रहण कहते हैं।
यह स्थिति वर्ष में 12 बार बनती हैं क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर लगभग 29.5 दिनों के अंतराल में चक्कर लगाता हैं। इसी कारण वर्ष मंो 12 पूर्णिमा आती हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि जब ऐसी स्थिति वर्ष में बारह बार बनती हैं तो चंद्र ग्रहण इतनी बार क्यों नही आता। आपका प्रश्न एक दम सही हैं, आइये इसका उत्तर जानते हैं।
चंद्रमा का पृथ्वी की कक्षा पर झुकाव
हम यह तो जानते हैं कि चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाता हैं जिसके कारण हर माह में एक पूर्णिमा तथा एक अमावस्या आती हैं लेकिन इसके साथ ही चंद्रमा का झुकाव पृथ्वी की कक्षा की ओर 5 डिग्री का कोण बनाता हैं। नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिये, इसमें बीच में पृथ्वी हैं तथा उसके चारो ओर चंद्रमा के घूमने की अलग-अलग स्थिति दर्शायी गयी हैं अर्थात चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर केवल एक ही गोलाई की परिधि में चक्कर न लगाकर नीचे की ओर 5 डिग्री का कोण बनाते हुए घूमता हैं जिसके कारण उसकी गोलाई की परिधि का क्षेत्र बदलता रहता हैं।
चंद्रमा जब भी पृथ्वी के पीछे होता हैं तो उस दिन पूर्णिमा होती हैं क्योंकि उस समय सूर्य का प्रकाश चंद्रमा से टकराकर पृथ्वी तक पूर्ण रूप से पहुँचता हैं। इसके कारण जब वह पृथ्वी के पीछे चला जाता हैं तब वह हमेशा उसी स्थिति में रहे ऐसा संभव नही। बहुत बार वह पृथ्वी की कक्षा के ऊपर या नीचे चक्कर लगता हैं। जब इस कक्षा में अंतर आता हैं तो उस समय उस पर सूर्य का प्रकाश सीधे नही पहुँच पाता तथा वह पृथ्वी की छाया क्षेत्र में होता हैं तब हम उसे चंद्र ग्रहण का नाम देते हैं।
यह स्थिति भी तीन प्रकार की बनती हैं जिसमें कभी चंद्रमा पूर्ण रूप से पृथ्वी की छाया में होता हैं तो कभी आंशिक रूप से जिसे हम पूर्ण, अर्ध तथा उपच्छाया चंद्र ग्रहण का नाम देते हैं। इसलिये हमेशा पूर्णिमा के दिन ही चंद्र ग्रहण लगता हैं।
Anupama Dubey