Atal in Kashi: ताल बिहारी वाजपेयी का काशी से गहरा लगाव था। वह हरदम काशी आने को उत्सुक रहते थे। पूरे देश में लोग जयंती पर अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर रहे हैं।आज से ठीक 5 वर्ष पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल अपने पीछे सुनहरी यादों को छोड़ते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गए थे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल (Atal in Kashi) बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ से बताई जाती है। अटल बिहारी वाजपेयी का काशी से गहरा लगाव था। काशी में उनकी हर यात्रा से जुड़ी ढेर सारी यादें हैं। कहा जाता है कि चुनावी सभा (Atal in Kashi) के दौरान वे अपने पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता को नहीं भूलते थे। चाहे वह छोटा हो या बड़ा।
80 के दशक में (जब अटलजी जनसंघ से जुड़े थे) आम चुनाव में उनकी घंटाघर (वर्तमान में चौक क्षेत्र) में जनसभा रख दी गई। तैयारी बैठक के दौरान सभा में वंदेमातरम् गान का दायित्व पद्मपति शर्मा को सौंपा गया था। इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी (Atal in Kashi) ने वहां उपस्थित सभी कार्यकर्ताओं की सुध ली। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उस दिन की जनसभा में हारमोनियम के साथ वंदेमातरम् का गान पूरे जनसभा की शोभा बन गया था।
Atal in Kashi: अटल की रैली में जाने को जबरदस्ती कराया मुंडन
पद्मपति शर्मा ने बताया कि अटलजी की सभा में जाने से रोकने के लिए मेरे मामा जी ने जबरदस्ती मेरा मुंडन करा दिया। बावजूद इसके अटलजी के आगमन के साथ ही मैं भी सभा स्थल (Atal in Kashi) पर पहुंच गया था। मैंने वंदेमातरम गान आंसूओं के साथ जब समाप्त किया तब अटलजी मेरा चेहरा देख कर परेशान हो उठे।
पद्मपति शर्मा ने आगे बताया कि उस दौरान अटलजी (Atal in Kashi) पूछ बैठे, क्या हुआ बेटे जी आपको। मेरे सब्र का बांध टूट गया। मैंने उन्हें सारी बातें बताईं। यह सुन कर काफी तमतमाए। अटलजी ने छोटे मामाजी को वहीं जम कर खरी-खरी सुनाई और उधर बड़े मामा अपनी मंडली के साथ पतली गली से निकल गए। अटलजी ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, आप मेरे साथ ही दो दिन रहेंगे। ये दो दिन मेरी अनमोल धरोहर ही हैं।
पद्मपति शर्मा बताते हैं कि सोचता हूं कि जो हुआ, अच्छा ही हुआ। ऐसे सानिध्य के लिए एक क्या सौ बार भी सर मुंडाना कम होगा। इस बात को पूरे पचास बरस से ज्यादा बीत गए। उस चुनाव में जनसंघ का प्रत्याशी 145 वोट से कांग्रेस के हाथों हार गया। तब कौन जानता था कि एक दिन वह जग जीत लेंगे अपनी वाणी और सत्कर्मों से।
बलरामपुर में संघ के लगे शिविर में अटलजी (Atal in Kashi) ने आते ही मेरे बारे में पूछा, तब मैं गोंडा में दसवीं की परीक्षा दे रहा था। बाद में 1980 में दूसरी बार सामना हुआ मेरा अटलजी से जब वे मध्यावधि चुनाव के दौरान काशी आए थे।
पद्मश्री डॉ० राजेश्वर आचार्य ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए 1955 में हुआ साहित्यकार सम्मेलन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मुख्य अतिथि अटल बिहारी वाजपेयी से सम्मानित होने के बाद मैंने उन्हें बनारसी अंदाज में अपने संगीतकार होने के बारे में बताया तो उन्होंने तत्काल अपनी चुटीली शैली में मनोविनोद करते हुए कहा कि अच्छा भाई सम्मान करा लिया तब बता रहे हो। उपस्थित सभी लोग हंसने लगे। यह थी उनकी उत्पन्नमति और उनका सहज मनोविनोदपूर्ण सरल महान व्यक्तित्व।

वाजपेयी के कारण देश में नई राजनीति व ऊर्जा का संचार
महामना मदन मोहन मालवीय के पौत्र जस्टिस गिरधर मालवीय ने कहा कि मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय को स्थापित करके भारत को आधुनिक भारत बनाने का काम किया। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी के कारण देश में नई राजनीति व ऊर्जा का संचार हुआ।
विपक्षी भी उनकी अद्भुत नेतृत्व क्षमता, कर्तव्य पारायणता का लोहा मानते थे। मालवीय जी को नमन करते हुए क्षेत्रीय अध्यक्ष ने कहा कि महामना के विराट व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना असंभव है। सह संगठन महामंत्री भवानी सिंह ने कहा कि अटल जी व मालवीय जी दोनो ही युग दृष्टा थे।
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष शुक्ला ने कहा कि अटल जी के विराट व्यक्तित्व की झलक उनके व्यवहार में दिखाई देती थी। महान शिक्षाविद मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करके बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार देने का भी कार्य किया।