Atiq Ahmed History
अतीक, अतीक, अतीक…
एक ऐसा नाम जिसके नाम से खौफ भी दहशत में आ जाए… जिसके नाम से प्रयागराज समेत पूरा पूर्वांचल काँपता था…
आज अख़बार से लेकर सत्ता के गलियारों, प्रशासनिक महकमों, मीडिया के दफ्तरों तक केवल इसी नाम के चर्चे हैं। कहते हैं न कि हर ‘अति’ का एक अंत होता है, ऐसा ही अंत इस अतीक का भी हुआ। जिसके नाम से पूर्वांचल के कई जिले कांपते थे। उसे जरायम की दुनिया में कदम रखे कल के तीन बदमाशों ने पल भर में मिट्टी में मिला दिया। वारदात तब हुई, जब अतीक और उसके भाई अशरफ को शनिवार को रूटीन मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जा रहा था। इस बीच मीडियाकर्मी बनकर आए तीन बदमाशों ने अतीक और उसके भाई अशरफ पर ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए उसे मौत की नींद सुला दिया।
यूपी बिहार में एक कहावत है, ‘सब धान बाईस पसेरी नहीं होता’। वैसे ही अतीक भी अन्य नेता (जिन्होंने अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा) से अलग हैं। देश की सियासत में कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपराध की दुनिया से निकलकर राजनीति के गलियारों में कदम रखा। लेकिन अतीक इन सबसे अलग है। अतीक राजनीति में होते हुए भी अपनी अपराधिक छवि से बाहर नहीं निकल पाया। माफिया से नेता बने अतीक की यूपी में तूती बोलती थी।
जिस अतीक के नाम से पूरा पूर्वांचल खौफ खाता था, आपको जानकर हैरानी होगी कि उसका जन्म अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। तो ऐसा क्या हुआ कि अतीक को अपनी गरीबी दूर करने के लिए अपराध की दुनिया में कदम रखना पड़ा। अतीक को एक आम लड़के से अपराध की दुनिया में किसने खींचा? गरीबी, अशिक्षा या फिर कोई तीसरी वजह… आइए जानते हैं अतीक के जीवन से जुड़ी दास्तां…
10 अगस्त 1962 को जन्मे अतीक उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद के रहने वाले थे। पढ़ाई लिखाई में कुछ खास रूचि न होने और हाईस्कूल में फेल हो जाने के कारण उसने पढ़ाई छोड़ दी। पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन और उगाही के कई मामलों में अतीक का नाम आया।
यूपी में एक कहावत है, ‘हर लड़का अपने जवानी में भटक जाता है।’ अतीक के केस में भी हम ऐसा ही कह सकते हैं। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अतीक अहमद के खिलाफ जो पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। वो मुकदमा था, हत्या का। वर्ष 1979 का वह दौर, जब 17 वर्ष की उम्र में अतीक पर चांद बाबा के क़त्ल का इल्जाम लगा था। उसके बाद अतीक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। समय आगे बढ़ता रहा और अतीक के जुर्म की काली किताब का पन्ने भरते रहे।
1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक अहमद का कच्चा चिट्ठा जारी किया। जिसमें बताया गया कि अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशाम्बी, चित्रकूट, इलाहाबाद ही नहीं बल्कि बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं। हालांकि अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराधिक मामले इलाहाबद में ही दर्ज हुए। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1986 से 2007 तक ही उसके खिलाफ एक दर्जन से ज्यादा मामले केवल गैंगस्टर एक्ट के तहत ही दर्ज किये गए।
अपराध से राजनीति की ओर बढ़े कदम…
अतीक को अब अपराध की दुनिया के साथ ही सत्ता की ताकत का भी बोध हो चुका था। जिसके बाद अतीक ने यूपी की राजनीति में अपना नाम दर्ज कराया। वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और जीत हासिल कर विधायक बना। 1996 में फिर से इसी सीट पर अतीक अहमद को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक बना।
अतीक ने 1999 में सपा का दामन छोड़ अपना दल का रुख किया। प्रतापगढ़ सीट से उसने चुनाव लड़ा और हार गया। हालांकि 2002 में वह इसी पार्टी से विधायक बना। 2003 में जब यूपी में सपा सरकार बनी, तो अतीक ने मुलायम सिंह यादव का हाथ पकड़ लिया। 2004 के लोकसभा में समाजवादी पार्टी ने अतीक के फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह जीत हासिल कर सांसद बना। समय बीता, वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री बनीं। अतीक के हौसले पस्त होने लगे। अतीक के खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे। इस दौरान अतीक को अंडरग्राउंड होना पड़ा।
चुनाव हारने पर राजू पाल की हत्या
2004 के आम चुनाव में अतीक अहमद के सांसद बनने पर इलाहाबाद पश्चिम की विधानसभा सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर उपचुनाव हुआ। सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को टिकट दिया। लेकिन इस दौरान बसपा ने अशरफ के सामने राजू पाल को खड़ा कर दिया। उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने राजू पाल की कुछ महीने बाद 25 जनवरी, 2005 को दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में सीधे तौर पर अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को आरोपी बनाया गया था।
बसपा विधायक राजू पाल की हत्या में नामजद आरोपी होने के बाद भी अतीक सांसद बना रहा। चौतरफा आलोचनाओं का शिकार होने के बाद मुलायम सिंह यादव ने दिसम्बर 2007 में बाहुबली सांसद अतीक अहमद को पार्टी से बाहर कर दिया। अतीक अहमद ने राजू पल हत्याकांड के मुख्य गवाहों को धमकाने डराने की कोशिश की। लेकिन मायावती के कुर्सी पर आ जाने से वह कामयाब नहीं हो सका।
गिरफ़्तारी के डर से बाहुबली सांसद अतीक अहमद फरार हो गया। उसके घर, कार्यालय समेत पांच स्थानों के संपत्ति की न्यायालय के आदेश पर कुर्की की जा चुकी थी। कोर्ट ने पांच मामलों में उसकी संपत्ति की कुर्की करने का आदेश दिया था। अतीक अहमद की गिरफ़्तारी पर उस समय पुलिस ने 20 हजार रुपए का ईनाम रखा गया था। इनामी सांसद की गिरफ्तारी के लिए पूरे देश में अलर्ट जारी किया गया था। सांसद अतीक की गिरफ्तारी के लिए परिपत्र जारी किये गये थे। लेकिन मायावती के डर से अतीक ने दिल्ली में समर्पण किया।
सरकार बदलने पर अतीक की उल्टी गिनती शुरू
मायावती के सरकार में आने के बाद अतीक अहमद की उलटी गिनती शुरू हो गई थी। पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक अहमद की एक खास परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित करते हुए उसका निर्माण ध्वस्त करा दिया। ऑपरेशन अतीक के तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ घूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद चार अन्य गवाहों की ओर से भी उसके खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए गए थे। दो माह के भीतर ही अतीक अहमद के खिलाफ इलाहाबाद में 9, कौशाम्बी और चित्रकूट में एक-एक मुकदमा दर्ज किया गया था।
150 से ज्यादा मामले, 120 से ज्यादा शूटर
अतीक और उसका भाई अशरफ जमानत पर बाहर घूम रहे थे। इन दोनों पर 150 से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। 1986 से 2007 तक गैंगस्टर एक्ट के तहत 12 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। उसके गैंग में 120 से ज्यादा शूटर थे। अतीक अहमद और उसके गिरोह के सदस्यों के खिलाफ 96 मामले लंबित हैं। अतीक के भाई अशरफ के घर की 5 बार कुर्की हुई। दोनों भाई चुनाव भले ही जीत गए मगर कभी माफिया इमेज से कभी बाहर नहीं आ पाए। पुलिस अधिकारी अतीक के सुनियोजित आपराधिक गठजोड़ से तंग आ चुके थे। 23 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश से बाहर भेजने का आदेश दिया। 3 जून, 2019 को उसे अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया।
विदेशी हथियारों के लिए किया ISI से गठजोड़
चकिया के स्थानीय लोगों का कहना है कि अतीक को विदेशी हथियारों और विदेशी गाड़ियों का शौक था। इसके चलते उसके काफिले में दर्जनों विदेशी गाड़ियां शामिल रहती थीं। विदेशी हथियारों की सप्लाई के लिए उसने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI औक कुछ आतंकी संगठनों से गठजोड़ किया। यूपी की एसटीफ की पूछताछ में अतीक ने कबूल किया पंजाब सीमा पर ड्रोन तस्करी से गिराए हथियारों की खेप उस तक आराम से पहुंचती थी। जिसके दम पर वो अपने अपराधों के कारोबार को अंजाम देता था।