- भारी तनाव (August Resolution) जैसे माहौल के बावजूद कलक्टर फिनले ने नहीं चलवायी गोली
- झंडा फहराने के लिए बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों ने दिखाया जोश
- पूरे कचहरी परिसर के कोना-कोना आंदोलनकारियों ने अपने कब्जे में ले लिया
- वह लक्ष्य पूर्ण होने पर जनपद में हर दिन होने लगा कोई न कोई नया अभियान
लेखक : सुरोजीत चैटर्जी/ जितेंद्र श्रीवास्तव
August Resolution: 8 अगस्त 1942 को बंबई अधिवेशन में गांधीजी के नेतृत्व में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का संकल्प पारित होने के दूसरे ही दिन नौ अगस्त पूरा देश अंग्रेजी हुकूमत को देश के भगाने के लिए मानो एक साथ लड़ाई (August Resolution) में उतर पड़ा। एकओर जहां बंबई में कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए वहीं, बनारस में संपूर्णानंद, प्रो. असरानी, कमलापति त्रिपाठी आदि भी धर लिये गए। कुछ लोग गिरफ्तारी से बचकर भूमिगत हो गये।
लड़ाई के पहले ही दिन छात्र-छात्राओं का एक बड़ा जुलूस प्रो. गैरोला के नेतृत्व में बीएचयू से निकला। उसके बाद प्रो. गैरोला अंडरग्राउंड हो गये। ठठेरी बाजार में भारतेंदु हरिश्चंद्र के घर से सटे मकान ‘बंगाली ड्योढ़ी’ संघर्ष का कार्यालय बन गया। बनारस तहसील में संघर्ष (August Resolution) संचालक महादेव सिंह थे।
नौ अगस्त रविवार का दिन। अल सुबह गली-मुहल्लों से लोग ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा लगाते ‘वंदेमातरम’ का उद्घोष करते हुए निकल पड़े। अचानक ऐसा माहौल (August Resolution) देखकर अंग्रेजी हुकूमत के अफसरों की नींद उड़ गयी। फिर शुरु हुई उनकी भागदौड़। दूसरी ओर, तमाम इलाकों से निकल रहे जुलूस का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था। विश्वेश्वरगंज, मैदागिन, टाउनहाल, चेतगंज, मैदागिन समेत विभिन्न क्षेत्रों में जनता सड़क पर थी।
पुलिस के हाथ-पांव फूल गये। घबराए अफसरों ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया। उसके बाद पुलिस को जैसे ऑर्डर का ही इंतजार था, क्रांतिकारियों पर वह टूट पड़ी। उसके बावजूद आजादी के दीवानों के जोश में कोई कमी नहीं आयी। उनमें हर वर्ग और हर उम्र के लोग शामिल थे।

दस अगस्त को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में ‘स्वतंत्र भारतीय गणतंत्र’ की घोषणा कर दी गई। वहां पढ़ रहे विभिन्न प्रांतों के विद्यार्थियों में भारी जोश था। उन्होंने अपने-अपने प्रदेश में अगस्त क्रांति (August Resolution) की लौ जलाने के लिए फैल जाने का निर्णय लिया। उसी दिन रमाकांत मिश्र के नेतृत्व में दशाश्वमेध से एक बड़ा जुलूस निकला। 11 अगस्त को बड़ी संख्या में विद्यार्थी कचहरी पहुंचे। साथ में भारी तादाद में जनता भी थी। पूरा कचहरी परिसर आंदोलनकारियों के कब्जे में आ गया। छात्रों ने कचहरी पर तिरंगा फहराया। अत्यधिक तनाव जैसे माहौल के बावजूद कलक्टर फिनले ने गोली नहीं चलवायी। हालांकि काफी संख्या में फोर्स तैनात थी।
उसके बाद तो हर दिन एक न एक नया अभियान। दूसरे ही दिन 12 अगस्त को मंडुवाडीह स्टेशन फूंक दिया गया। 13 अगस्त को छात्रों ने गंगापुर की रजिस्ट्री कचहरी जलायी। कपसेठी स्टेशन राख कर दिया। राजातालाब के गोदाम पर धावा बोलकर अनाज किसानों में बांट दिया गया। सिलसिला थमना नहीं, जारी रहा। एक के बाद एक थानों पर तिरंगे फहराए जाने लगे। गोलियां चलीं और कई छात्र शहीद हुए। 16-17 अगस्त की रात फौज ने यूनिवर्सिटी को घेर लिया। प्रो. राधेश्याम, प्रो. गैरोला, राजनारायण, प्रभुनारायण सिंह आदि फरार हो गये।

फिज़ां में बेहद सननसाहट थी। भागदौड़, धर-पकड़, पुलिस-फौज, गोलियां। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ के नारे (August Resolution) गूंज रहे थे। बड़े-बुजुर्गों का उत्साह देखकर बच्चे भी कहां पीछे रहते। जहां कहीं कोई अंग्रेज दिखता, छोटे-छोटे बच्चे ‘क्विट’ की आवाज लगाकर गलियों में गायब हो जाते, जबकि तमाम बच्चों को ‘क्विट’ का अर्थ भी पता नहीं था। उनके लिए ‘क्विट’ शब्द अंग्रेजों को चिढ़ाने वाली कोई गाली थी। आंदोलन, जुलूस, प्रभात फेरियां, गिरफ्तारियां रोजमर्रा का हिस्सा बन चुके थे।
जुलूस जब निकलते तो अक्सर उनके मुहाने दो बड़े-बड़े झंडे चलते थे, एक कांग्रेसी तिरंगा और दूसरा मुस्लिम लीग का चांदवाला। प्रभात फेरियों के साथ-साथ लोग आजादी के गीत गाते हुए चलते थे। उन गीतों में ‘गांधी की यह आंधी चलती, चाल बड़ा तूफानी है, आज कही जाती दुनिया में घर-घर यही कहानी है। अब स्वतंत्रता की कीमत इस भारत ने पहचानी है’ या ‘नहीं रखनी सरकार विदेशी नहीं रखनी, नहीं रखनी सरकार जालिम नहीं रखनी’। जुलूस को जबतक पुलिस आकर तितर-बितर नहीं कर देती तबतक गीत जारी रहते।
August Resolution: 1.87 लाख काशीवासियों पर लगा था सामूहिक जुर्माना
- तमाम लोगों ने जगायी क्रांति (August Resolution) की अलख
- अगस्त क्रांति के दौरान 23 स्थानों पर हुई पुलिस फायरिंग, 19 हुए शहीद, 178 घायल हो गये थे घायल
‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ नारे के साथ 1942 में देशभर में अगस्त क्रांति की शुरुआत हुई तो काशीवासी भी पीछे नहीं रहे। जिले भर में नौ से 28 अगस्त तक लगातार क्रांतिकारियों का जुलूस निकालता रहा। 11 अगस्त को कचहरी पर झंडा फहराया गया। 13 से 28 अगस्त के बीच चार दिन तत्कालीन बनारस के चार स्थानों पर क्रांतिकारियों पर फायरिंग हुई थी जिसमें 15 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए थे।
वाराणसी में अगस्त क्रांति की अलख जगाने वालों में बाबू संपूर्णानंद, पं. कमलापति त्रिपाठी, रामसूरत मिश्र, चंद्रिका शर्मा, ऋषि नारायण शास्त्री, कामता प्रसाद विद्यार्थी, श्रीप्रकाश, बीरबल सिंह, राजाराम शास्त्री, विश्वनाथ शर्मा, रघुनाथ सिंह, राजनारायण सिंह, प्रभुनारायण सिंह, देवमूर्ति शर्मा, कृष्णचंद्र शर्मा, मुकुट बिहारी लाल, गोविंद मालवीय, डॉ. गौरोला आदि प्रमुख थे।

पं. कमलापति त्रिपाठी के शिष्य डॉ. सतीश राय बताते हैं कि अगस्त क्रांति (August Resolution) के दौर में नगर क्षेत्र में नौ अगस्त से प्रतिदिन जुलूस निकले। 11 अगस्त 1942 को भीड़ ने कचहरी पर झंडा फहराया तो लाठी चार्ज हुआ जिसमें कई लोग जख्मी हुए थे। 13 को दशाश्वमेध घाट के निकट चितरंजन पार्क, 16 को धानापुर (वर्तमान में चंदौली जनपद में), 17 को चोलापुर और 28 अगस्त को सैयदराजा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर गोलियां बरसायी गईं। इन चार तिथियों में लगभग 15 लोग शहीद हुए थे। आंदोलन का गढ़ बन चुके काशी विद्यापीठ में पुलिस ने ताला जड़ दिया था।
अगस्त क्रांति (August Resolution) के दौरान जिले के 23 स्थानों पर पुलिस फायरिंग हुई थी। उनमें 19 लोग शहीद और 178 घायल हुए थे। अगस्त 1942 में बनारस में कुल एक लाख 86 हजार 819 लोगों पर सामूहिक जुर्माना लगाया गया। धानापुर कांड में तीन पुलिसकर्मी भी मारे गए थे। उस मामले में तीन लोगों को फांसी की सजा सुनायी गयी। उसके क्रियान्वयन पर पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने रोक लगा दी थी।
क्रांतिकारियों ने चोलापुर थाने पर बोला धावा, ब्रिटिश झंडा जलाकर फहराया तिरंगा
- 17 अगस्त 1942 को चोलापुर थाने पर जुलूस के रुप में पहुंचे थे आजादी के दीवाने
- युवाओं का जुनून और जज्बा देख घबरायी पुलिस ने की फायरिंग, पांच हुए थे शहीद
अंग्रेजी हुकूमत के दौर में आजादी के दीवानों ने एकबार बनारस के चोलापुर थाने पर भारत का तिरंगा झंडा फहराने के लिए थाने पर हमला (August Resolution) किया था। उस वक्त आमने-सामने हुई गोलीबारी में पांच युवा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हो गये और कई गिरफ्तार कर लिये गये। घटना 17 अगस्त 1942 की है। वर्तमान चोलापुर विकास खंड के चोलापुर थाना परिसर और उसके बाहर हुए उस संघर्ष की कहानी थाने से सटे वर्तमान प्रांगण में उन शहीदों की याद में बने स्मारक पर दर्ज है।
यहां के ग्रामीण बताते हैं कि वह नागपंचमी का दिन था। वर्तमान हरहुआ ब्लॉक के आयर गांव निवासी वीरबहादुर सिंह के नेतृत्व में आजादी के दीवानों ने चोलापुर थाने पर तिरंगा फहराने (August Resolution) का निर्णय लिया। 17 अगस्त को वह जुलूस के रूप में थाने की ओर बढ़ चले। उनमें थाने पर झंडा फहराने को लेकर भारी जोश ठाठें मार रहा है। सभी में मानो एक होड़-सी लगी थी कि कौन यह काम कर दिखाएगा। जुलसू में शामिल लोग ‘भारतमाता की जय’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आदि के नारे लगाते हुए बढ़ रहे थे। इस बात की भनक लगने पर पुलिस उन क्रांतिकारियों के निबटने के लिए मोर्चा संभाल लिया।

जैसे-जैसे थाना और युवाओं के बीच की दूरी कम होती जा रही थी वैसे-वैसे क्रांतिकारियों के नारों की आवाज और भी बुलंद होती रही। थाने के सामने पहुंचने के बाद जुलूस में शामिल लोगों की नारेबाजी का स्वर और भी तेज हो गया। सामने बंदूक, रिवॉल्वर और लाठियों से लैस सिपाहियों को देखकर उनका गुस्सा उबाल खाने लगा। हथियारबंद पुलिस की परवाह न करते हुए वह थाने में घुसने की कोशिश करने लगे। सामने खड़ी पुलिस को अंदाजा भी नहीं था कि आजादी के उन दीवानों पर किस तरह का जुनून सवार है।
दोनों पक्षों में से कोई भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं था। दबाव बढ़ता गया। एकओर जुलूस थाने में घुसकर झंडा फहराने की जद्दोजहद में था तो दूसरी ओर पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही थी। अंतत: अंग्रेजी हुकूमत के हथियारबंद सिपाहियों ने थानेदार के नेतृत्व में मोर्चा संभाला और चेतावनी दी।
उसके बावजूद जुलूस ने सिपाहियों की परवाह नहीं की और कई लोग थाने में घुस ही गये। नियंत्रण हाथ से छूटता देखकर थानेदार के आदेश पर पुलिस ने फायरिंग और लाठीचार्ज शुरु कर दिया। उस बीच जुलूस में से पांच युवक भीड़ को चीरते हुए तिरंगा लेकर थाने की छत पर चढ़े और ब्रिटिश हुकूमत का झंडा जला दिया और तिरंगा फहराया।
इस पर हथियाबंद सिपाही उन युवाओं पर निशाना साधकर गोली चलाने लगे। फलस्वरूप फायरिंग (August Resolution) की रेंज में आये पांचों युवक घायल होकर गिर पड़े। आनन-फानन में उन्हें अस्पताल ले जाने की भागदौड़ होने लगी। अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही पांचों देशभक्तों ने दम तोड़ दिया और शहीद हो गये।
उन शहीदों में आयर के रामनरेश उपाध्याय ‘विद्यार्थी’, बेनीपुर के पंचम राम, शिवरामपुर के श्रीराम ‘बच्चू’ एवं चौथी नोनिया और सुलेमापुर के निरहु भर ने अपनी कुर्बानी दी। उधर, चोलापुर पुलिस ने जुलूस में शामिल कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार क्रांतिकारियों को कठोर कारावास की सजा दी गयी। सन 1972 में चोलापुर थाना के कुछ ही कदम पर उन देशभक्तों की याद में ‘शहीद स्मारक’ का निर्माण कराया गया।
Highlights
गलत मुखबीरी में गंवाई जान
1942 में चोलापुर थाने पर झंडा फहराने की घटना से अलग एक अन्य चर्चा भी है। कहते हैं कि 1945 के दौर में तत्कालीन ढेरही गांव के लालमन यादव चोलापुर थाने के सिपाहियों के लिए अक्सर मिट्टी की हंड़िया में दही, खोवा वगैरह लेकर जाते रहते थे। एकबार किसी ने गलत मुखबीरी कर दी कि लालमन चोलापुर थाने को उड़ाने के लिए हंड़िया में बम लेकर जा रहे हैं। इस पर ब्रिटिश पुलिस ने गोसाईंपुर के मोहांव में लालमन को घेरकर मार डाला। कहते हैं कि कालांतर में उन्हीं की याद में लालमन के गांव का नाम ‘लालमन कोट’ रखा गया।
अगस्त क्रांति (August Resolution) की खास बातें
- आठ अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव पारित किया गया।
- देश को अंग्रेजी हुकूमत से तुरंत आजाद करवाने के लिए उनके खिलाफ इस सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव महात्मा गांधी ने रखी थी।
- नौ अगस्त को संपूर्ण भारत में ‘करो या मरो’ नारे के साथ आंदोलन की शुरुआत हुई।
- महात्मा गांधी को नजरबंद किये जाने पर देशभर में हड़ताल (August Resolution) और तोड़फोड़ शुरु हो गया। इसे ‘अगस्त क्रांति’ के तौर पर भी जाना जाता है।
- इस आंदोलन (August Resolution) के दौरान हजारों भारतियों को जेल में डाल दिया गया और सैकड़ों लोग शहीद हुए थे।
- भारत की आजादी के लिए यह ऐसा सबसे तीव्र और विशाल आंदोलन (August Resolution) था जिसमें सभी लोग शामिल थे। बाध्य होकर अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का संकेत दिया। उसके बाद यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया।