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Home राज्य उत्तर प्रदेश अयोध्या

Shree Ram को जानने-समझने भी अयोध्या आने को बाध्य होगी पूरी दुनिया : कई स्तर पर हो रही कवायद

by Kajal Seth
February 2, 2024
in अयोध्या, देश-विदेश
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yogi cabinet in ayodhya
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वाराणसी। अयोध्या में श्रीराम मंदिर में बीते 22 जनवरी को रामलला [Shree Ram] की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश ही नहीं पूरी दुनिया के रामभक्त वहां जाकर मत्था टेकने के लिए लालायित हैं। सो, केंद्र व प्रदेश सरकार अयोध्या नगरी को व्यापक स्तर पर सजाने-संवारने के लिए वृहद पैमाने पर विकास कार्य करा रही है। न सिर्फ डेवलपमेंट के जरिये वहां की सूरत बदली जा रही है बल्कि भगवान श्रीराम से जुड़े बिंदुओं पर कई स्तर से पहल हो रही है। यह प्रयास छोटे-मोटे नहीं बल्कि भविष्य में राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को अयोध्या आने के लिए विवश करेगी। जिसके तहत विश्वभर में रामायण से जुड़ी परंपराओं को तलाशेंगे। उनका डॉक्यूमेंटेशन यानि अभिलेखीकरण कर संबंधित विषयों का प्रकाशन होगा।

Shree Ram : विभिन्न प्रयासों को दिया जा रहा मूर्त स्वरूप

कोशिशें सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहेंगी बल्कि आगामी शैक्षणिक सत्र से अयोध्या में भगवान श्रीराम [Shree Ram] से संबद्ध डिप्लोमा कोर्स तथा पीएचडी की डिग्री कोर्स शुरू करने की भी कवायद है।
इस दिशा में अयोध्या [Shree Ram] में हाल में ही संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश की ओर से आरंभ ‘अन्तरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान’ यानि आईआरवीआरआई को यह दायित्व सौंपा गया है।

Highlights

  • Shree Ram : विभिन्न प्रयासों को दिया जा रहा मूर्त स्वरूप
  • देश के कई संस्थानों के साथ हुआ समझौता
  • ‘नेशनल प्रेजेंस स्कीम’ से जुड़ रहे प्रतिष्ठित संस्थान
  • रामलीला अकादमी के लिए मंथन जारी : डॉ. लवकुश द्विवेदी
  • आकर्षण का केंद्र रही दो देशों की Shree Ram की रामलीला
  • पर्यटकों को नहीं होगी असुविधा

पूर्व में इसका नाम अयोध्या शोध संस्थान था। चूंकि भारतीय संस्कृति की जड़ें वैदिक स्रोतों में निहित हैं, इसलिए संस्थान के नाम में यह बदलाव कर उसमें ‘वैदिक शोध’ शब्द को सम्मिलित किया गया। साथ ही संबंधित विषयों पर होने वाले या संभावित रीसर्च आदि को व्यापक स्तर पर आगे लाने के लिए ‘अन्तरराष्ट्रीय’ शब्द शामिल कर इस संस्थान को दुनियाभर से जोड़ने का उद्देश्य लेकर यह पहल हुई।

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शासन का मकसद है कि रामायण के बारे में विषद अध्ययन और शोध कर प्राचीन तत्वों को ढूंढ़ा जाय। इसके लिए वैदिक शोध बेहद जरूरी है। इसीलिए बड़े पैमाने में काम करने के उद्देश्य से अन्तरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान नाम दिया गया। इसके अंतर्गत पूरी दुनिया में रामायण की परंपराओं की तलाश करेंगे। उन विवरणों का डाक्यूमेंटेशन और प्रकाशन होगा। इसके अलावा विश्व के विभिन्न देशों में रामलीला [Shree Ram] की परंपराओं का संरक्षण किया जाएगा।

उनसे जुड़े कलाकारों को खोजकर उन्हें प्रोत्साहन देंगे। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के गीत, नृत्य एवं अभिनय आदि से संबद्ध ऐसी लोककलाएं जिनमें मुख्य रूप से श्रीराम [Shree Ram] सम्मिलित हैं, उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। वहीं, एक और महत्वपूर्ण पहल के तहत प्रदेश-देश-विदेश की संस्कृतियों को नजदीक से जानने-समझने और आमलोगों को उसके बारे में बताने के लिए शैक्षिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान का उद्देश्य लेकर तमाम संस्था-संगठनों के साथ एमओयू कर रहे हैं।

देश के कई संस्थानों के साथ हुआ समझौता

आईआरवीआरआई की ओर से विभिन्न संस्थानों के साथ किये जा रहे समझौतों के क्रम में अबतक भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद नई दिल्ली यानि आईसीसीआर, इंदिरा गांधी राष्टÑीय कला केंद्र भारत सरकार यानि आईजीएनसीए, इंदिरा गांधी ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक, महात्मा गांधी अंतरर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवां, पं. रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर, जगतगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय चित्रकूट, छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर, संस्कृतिक मंत्रालय गुजरात, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल आदि के साथ एमओयू हो चुका है।

इन संस्थानों के विद्यार्थी एवं रीसर्च स्कॉलर आदि अयोध्या आकर श्रीराम [Shree Ram] से जुड़ी विभिन्न स्तर पर श्रेणी में एकत्र की जा रही सामग्री के बारे में न सिर्फ जानकारी हासिल कर सकेंगे बल्कि उन्हें शोध की सुविधा भी मिलेगी। इसके लिए संस्थान उन शोधार्थियों या दलों का स्थानीय स्तर पर होने वाला खर्च उठाएगा।

‘नेशनल प्रेजेंस स्कीम’ से जुड़ रहे प्रतिष्ठित संस्थान

आईआरवीआरआई भविष्य के लिए चल रही तैयारियों के अंतर्गत थाईलैंड में होने वाली ‘खोन की रामलीला’, रामायण केंद्र मॉरिशस, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली यानि आईसीएचआर, जैन विश्वविद्यालय राजस्थान समेत चंडीगढ़ स्थित संस्थान आदि के साथ भी समझौते की कवायद है। अयोध्या की आईआरवीआरआई ‘नेशनल प्रेजेंस स्कीम’ के अंतर्गत राष्टÑीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संस्थाओं को संस्कृति मंत्रालय भारत से ग्रांट उपलब्ध करा रही है। इसके तहत अब तक इंटरनेशनल लेवल पर चार सेमिनार हो चुके हैं। वहीं, 150 से अधिक कॉफी टेबल बुक, सर्वे अभिलेखीकरण व शोधग्रंथ आदि प्रकाशित हो चुके हैं।

रामलीला अकादमी के लिए मंथन जारी : डॉ. लवकुश द्विवेदी

अन्तरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान यानि आईआरवीआरआई के निदेशक डॉ. लवकुश द्विवेदी ने संस्थान की ओर से विभिन्न स्तर पर हो रही पहल की जानकारी देते हुए कहा कि यह सभी कवायद प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के संरक्षण में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह और महकमे के प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम के प्रयासों का परिणाम है। रामलीला के सूत्रधार काशी में मेघा भगत थे। अयोध्या में रामलीला का इतिहास लगभग 200-250 वर्ष पुराना है।

तुलसीदासजी ने अयोध्या में जहां रामचरितमानस को संपूर्ण किया था उसे तुलसीचौरा के नाम से जाना जाता है। इसलिए राम और तुलसी, दोनों अयोध्या से जुड़े हुए हैं। संस्थान ने रामकथा पर आधारित ‘भारतीय भाषाओं में राम’ को 18 भारतीय भाषाओं में चार खंडों में जारी किया है। जबकि ‘वाल्मीकि रामायण’ को डेढ़ दर्जन भाषाओं में अनुवाद कराने के लिए आईजीएनसीए का सहयोग लेंगे। अयोध्या में विभाग को अन्तरराष्ट्रीय स्वरूप देने के लिए लगभग दस एकड़ जमीन की तलाश है। शासन ने इसके लिए 20 करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी है।

दूसरी ओर, भविष्य में भगवान श्रीराम [Shree Ram] से संबद्ध डिप्लोमा एवं डिग्री कोर्स अयोध्या [Shree Ram] में आरंभ करेंगे। पीएचडी के लिए शोध कार्य होंगे। फेलोशिप भी दी जाएगी। इसके लिए भवन का निर्माण एवं जीर्णोद्धार कार्य युद्धस्तर पर जारी है। वहीं, अयोध्या में संस्थान की देखरेख में गुरुकुल पद्धति आरंभ करने के लिए ‘रामलीला अकादमी’ पर शासन मंथन कर रहा है।

आकर्षण का केंद्र रही दो देशों की Shree Ram की रामलीला

भगवान श्रीराम और रामकथा [Shree Ram] के प्रचार-प्रसार के लिए आईआरवीआरआई की ओर से किये जा रहे प्रयासों के क्रम में गत दिनों वाराणसी के नमो घाट पर दो दिनी ‘इंटरनेशनल रामायण उत्सव’ का आयोजन किया गया। उसमें इंडोनेसिया और सिंगापुर की रामलीला की भव्य प्रस्तुतियों को दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। दोनों देशों से अपनी-अपनी कला परंपराओं के माध्यम से प्रेजेंटेशन दिया, जो स्थानीय दर्शकों के लिए एक प्रकार से नये तरह की प्रस्तुति थी। लोगों को दोनों देशों में पेश की जाने वाली रामलीलाओं के कुछ अंशों की झलक देखी।

उससे पूर्व 23 जनवरी को ‘भारतीय संस्कृति और भाषाओं में राम’ विषय पर वर्चुअल स्तर पर ऑनलाइन परिचर्चा करायी गयी। जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय में मूल्य संवर्द्धन समिति के अध्यक्ष एवं शिक्षा राज्यमंत्री भारत सरकार में सलाहकार प्रो. निरंजन कुमार, अमेरिका में विजिटिंग स्कॉलकर डॉ. नीलम जैन, क्वांग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, काठमांडू की डॉ. श्वेता दीप्ति, सिक्किम के प्रो. इरफान अहमद, नीदरलैंड के डॉ.रामा तक्षक, लखनऊ की विनीता मिश्रा एवं डॉ. ममता जैन आदि की हिस्सेदारी थी।

पर्यटकों को नहीं होगी असुविधा

अयोध्या [Shree Ram] में विश्वभर के पर्यटकों को श्रीराम से जुड़े विषयों के प्रति आकर्षित करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान कई और प्रयास भी कर रहे है। जिसके तहत डिजिटल डेटा और रामकथा से जुड़े मॉडल डिस्प्ले करेंगे। उम्मीद की जा रही है कि यह पहल संबंधित विषय से शोधार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी होगा। कारण, यदि कोई टूरिस्ट या शोधार्थी सिर्फ एकदिन के लिए अयोध्या आये तो उसे संपूर्ण जनपद में भ्रमण के लिए समय का अभाव होने के चलते प्रस्तावित सेंटर में एक ही छत के नीचे तमाम जानकारी आकर्षक ढंग से उपलब्ध हो सकेगी।

स्टोरी – सुरोजीत चटर्जी

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