वाराणसी। काशी विश्वनाथ धाम समेत पूरे काशी में हर्षोल्लास का माहौल है। काशी के पुराधिपति बाबा विश्वनाथ गुरुवार को दूल्हा बने। तिरंगा श्रृंगार के बाद बाबा को मथुरा से लाए गए खादी के वस्त्र पहनाए गए। मंगल गीत, डमरू और शहनाई की गूंज के बीच चांदी के सिंहासन में बैठाकर उनका तिलक किया गया।
बाबा काशी विश्वनाथ का यह 358वां तिलकोत्सव है। स्वदेशी परिधान में बाबा ने दुल्हे स्वरुप में भक्तों को दर्शन दिया। महादेव के पंच बदन रजत प्रतिमा सजाई गई। लग्न के अनुसार, ठीक 7 बजे शाम बाबा के तिलक की रस्में पूरी की गईं। तिलक का थाल लेकर बाबा की आरती उतारी गई। महिलाओं ने मंगल गीत गाया।
शहनाई की मंगल ध्वनि और डमरुओं के निनाद पर हर एक रस्मों को पूरा किया गया। तिलक के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हो गए। पूर्वांचल भर के कलाकारों ने बाबा के भजन गाए। अब महा शिवरात्रि पर विवाह और रंग भरी एकादशी पर बाबा का गौना होगा।
दक्ष प्रजापति से जुड़ी है कथा
डॉ० कुलपति तिवारी ने कहा कि महादेव के तिलक की कथा राजा दक्ष प्रजापति से जुड़ी है। शिव महापुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण और स्कंधपुराण में अलग-अलग कथा संदर्भों में महादेव के तिलकोत्सव का प्रसंग वर्णित है। दक्ष प्रजापति ने पौराणिक काल के कई मित्र राज-महाराजाओं के साथ कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव का तिलक किया था। उसी आधार पर लोक में इस परंपरा इसका निर्वाह किया जाता है। काशी में इस वर्ष इस परंपरा के निर्वहन का 358वां वर्ष है