Varanasi: आर्य महिला महाविद्यालय के ज्ञानानंद सभागार में गुरुवार को आयोजित महिला सम्मेलन में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विषय पर गूंजते विचारों ने न सिर्फ राजनीतिक चेतना को जागृत किया, बल्कि महिलाओं के बीच एक नई राष्ट्रीय संकल्पना की जमीन भी तैयार की। इस कार्यक्रम की मुख्य वक्ता रहीं दिल्ली से सांसद और सुप्रसिद्ध अधिवक्ता बांसुरी स्वराज, जिन्होंने अपने विचारों और अनुभवों से नारी शक्ति को प्रेरित करते हुए एक सशक्त लोकतांत्रिक भारत की परिकल्पना को साझा किया।
कार्यक्रम की शुरुआत दो मिनट के मौन से हुई, जो हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप था। बांसुरी स्वराज ने इस क्षण को सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं बल्कि एक “प्रतिज्ञा” बताया। उन्होंने कहा, “यह मौन हम बहनों ने यह संकल्प लेने के लिए रखा है कि न हम डरेंगे, न भूलेंगे और न ही छोड़ेंगे। यह नया भारत है—मोदी जी का भारत—जो आतंकियों के सामने कभी नहीं झुकता और हर चुनौती को दृढ़ता से जवाब देता है।”

काशी की धरती को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि “यह मोक्ष की नगरी है, जहां बाबा विश्वनाथ की कृपा है और मां गंगा की श्रद्धा बहती है। यह सनातन परंपरा का प्रतीक है और अब इसे मिला है मोदी युग का नव विकास।” उन्होंने सभा को यह भी बताया कि वह यहां एक सांसद या नेता नहीं, बल्कि एक भारतीय नागरिक और बेटी के रूप में आई हैं, जो अपने देश की बहनों से संवाद करने और उनके बीच एक राष्ट्रीय विचार साझा करने के लिए उपस्थित हैं।
Varanasi: बांसुरी स्वराज ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को सरल भाषा में समझाया
मंच से नीचे उतरकर महिलाओं के बीच जाकर उन्होंने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के विचार को सरल भाषा में समझाया। उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने के पीछे की तार्किकता को घर-परिवार के उदाहरणों से जोड़ा। उन्होंने कहा, “मान लीजिए कि एक घर में तीन भाइयों की शादी होनी है, अगर सब एक साथ कर दें तो खर्चा भी कम होगा और काम भी आसानी से हो जाएगा। यही तर्क चुनावों पर भी लागू होता है।”

उन्होंने बताया कि बार-बार चुनाव कराने में देश का भारी वित्तीय नुकसान होता है, जो जीडीपी का लगभग 1.5% तक होता है। सुरक्षा बलों और प्रशासन पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे वे अपने अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान नहीं दे पाते। इसके अलावा चुनावी आचार संहिता विकास योजनाओं की गति को बाधित करती है। उन्हहोंने कहा कि कुछ महीनों में आचार संहिता लगने से योजनाएं अटक जाती हैं और विकास में स्पीड ब्रेकर लग जाता है।
उन्होंने मतदाताओं के भ्रम, राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय मुद्दों के हावी होने की समस्या को भी रेखांकित किया। एक साथ चुनाव से यह समस्याएं कम होंगी और सरकारें लंबे समय तक स्थिरता के साथ काम कर सकेंगी। उन्होंने महिलाओं से आह्वान किया कि वे केवल मतदान तक सीमित न रहें, बल्कि विचार-विमर्श और संवाद के माध्यम से लोकतंत्र को और मजबूत बनाएं।
उन्होंने तीन संकल्प महिलाओं को दिलाए—पहला, “हम राष्ट्रहित में एक राष्ट्र, एक चुनाव का समर्थन करेंगे।” दूसरा, “हम लोकतंत्र को केवल वोट देने तक नहीं सीमित रखेंगे, बल्कि विचारों का आदान-प्रदान करके उसे सुदृढ़ बनाएंगे।” और तीसरा, “हम इस विचार को अपने घरों, गली-कूचों तक पहुंचाएंगे और इसके ध्वजवाहक बनेंगे।”

सम्मेलन के प्रारंभ में “वंदे मातरम” की सुमधुर प्रस्तुति ने माहौल को भावनात्मक बना दिया। गीत प्रस्तुत किया नेहा कक्कड़, लक्ष्मी सिंह और श्वेता शर्मा ने। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. रचना अग्रवाल ने किया जबकि अध्यक्षता जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कुसुम चंद्रा ने की। मंच संचालन संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. जया मिश्रा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन भाजपा क्षेत्रीय अध्यक्ष नम्रता चौरसिया द्वारा प्रस्तुत किया गया।

इस सम्मेलन में भाजपा महानगर अध्यक्ष प्रदीप अग्रहरि, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्या, पूर्व महापौर मृदुला जायसवाल, सामाजिक कार्यकर्ता निर्मला सिंह पटेल, पूजा दीक्षित, जगदीश त्रिपाठी, चंद्रशेखर उपाध्याय, वैभव कपूर, साधना वेदांती, डॉ. गीता शास्त्री सहित सैकड़ों महिलाएं, छात्राएं, समाजसेवी, महिला उद्यमी और चार्टर्ड अकाउंटेंट मौजूद रहीं। प्रमुख चेहरों में ऋचा शाह, जमुना शुक्ला, डॉ. रुबी शाह, शशिबाला शाह, किशोर सेठ, प्रीति पुरोहित, आरती पाठक, अनीशा शाही, मंजू सिंह, किरन मिश्रा, सोनिया जैन और संध्या सिंह प्रमुख थीं।