Bharat Milap: काशी के लक्खा मेलों में शुमार नाटी इमली के भरत मिलाप में बुधवार को जनसैलाब उमड़ा। समूची काशी रघुकुल के चारों भाइयों के मिलन की साक्षी बनी। पांच मिनट तक चले इस दृश्य के लिए लाखों की संख्या में भक्त गण जुटे रहे।
चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौट रहे श्रीराम से भरत मिलाप के इस दृश्य के देवी-देवता भी साक्षी बने। श्रीराम ने अपने भाई भरत को अश्रुपूरित नयनों से गले लगाया। वहीं भरत को भी इस घड़ी की वर्षों से प्रतीक्षा थी। आज श्रीराम वनवास समाप्त होने के साथ ही भरत का भी सन्यास समाप्त हो गया। इसी के साथ नाटी इमली की भरत मिलाप लीला समाप्त हुई।
480 वर्षों से काशी की परंपराओं में शुमार नाटी इमली की भरत मिलाप (Bharat Milap) सालों से अनवरत चला आ रहा है। काशी नगरी में यह भरत मिलाप (Bharat Milap) पिछले 480 वर्षो से यदुकुल के कंधो पर रघुकुल के मिलन की साक्षी बन रही है। नाटी इमली के भरत मिलाप का आयोजन 480 वर्षो पूर्व मेघा और तुलसी के अनुष्ठान से प्रारंभ हुआ था। पांच टन से भी ज्यादा वजनी पुष्पक विमान को जब यादव कुल बंधु जब अपने कंधे पर जब उठा कर चलते है तो कुछ समय के लिए वक्त ठहर सा जाता है।

विहंगम दृश्य को देखने देवता भी स्वर्ग से उतर आए
मान्यता है कि रघुकूल के इस मिलन (Bharat Milap) के दृश्य को देखने के लिए स्वयं भगवान भास्कर भी अपने रथ के पहिए को थाम कर निहारने लगते है। श्रद्धा और आस्था की रघुकुल की इस महामिलन का साक्षी बनने के लिए मैदान मे श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ पड़ता हैं कि तिल रखने के लिय जगह तक न मिलती हैं। चित्रकूट के रामलीला समिति के व्यस्थापक पंडित। मुकुंद उपाध्याय के मुताबिक, 479 वर्ष पूर्व रामभक्त मेघा भगत को प्रभु के दर्शन सपने में हुआ था।

प्रभु के दर्शन सपने में प्राप्त होने के बाद ही काशी मे रामलीला और भरत मिलाप का आयोजन किया जाने लगा। आज भी ऐसी मान्यता है कि कुछ पल के लिए प्रभु श्रीराम के दर्शन होते हैं। यही वजह है कि महज कुछ मिनट के मिलाप को देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ यहां हर वर्ष उमड़ जाती है।
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Bharat Milap: तुलसीदास के समय से है यादव बंधुओं का इतिहास
तुलसीदास काल से ही बनारस के यादव बंधु का इतिहास (Bharat Milap) जुड़ा हुआ है। तुलसीदास जी ने बनारस के घाट किनारे रह कर श्रीरामचरितमानस की रचना तो कर दी, लेकिन उस दौर में श्रीरामचरितमानस को जन मानस तक पहुंचाया कैसे जाए ये बड़ा सवाल था। प्रचार प्रसार का यह जिम्मा तुलसीदास जी के समकालीन गुरु भाई मेधा भगत जी ने उठाया। जाती के अहीर मेधा भगत विशेश्वरगंज स्थित फूटे हनुमान मंदिर के रहने वाले थे। सर्वप्रथम उन्होंने ही काशी में रामलीला मंचन की शुरूवात की थी। लाटभैरव और चित्रकूट की रामलीला तुलसीदास के दौर से ही चली आ रही है।

काशी का राज परिवार भी इस विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप (Bharat Milap) और रामलीला का साक्षी बनता है। पिछले 227 वर्षो से काशी के नरेश शाही अंदाज मे इस लीला मे शामिल होते रहें हैं। पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। तभी से उनकी पांच पीढ़ी इस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही है।