Brahmacharini Temple: शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन सोमवार को माता ब्रह्मचारिणी मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी के आराधन-पूजन का विधान है।
नौ दिनों में देवी पूजा का विशेष महात्म है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी [Brahmacharini Temple] के आराधना-पूजन का विधान है। माता ब्रह्मचारिणी भगवती की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप हैं। बालाजी घाट के किनारे स्थित मां ब्रह्मचारिणी मंदिर में भोर से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है। मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से ही आस्थावानों को यश-कीर्ति की प्राप्ति होती है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि भोर में तीन बजे माता को पंचामृत स्नान कराया गया। उसके बाद माता को वस्त्र, आभूषण और मुकुट धारण कराया गया।
इसके बाद बेला, चमेली, गुलाब, गुड़हल, कमल के पुष्पों से माता के दरबार को सजाकर उनका विशेष श्रृंगार किया गया। फिर महाआरती की गई। इसके बाद आम भक्तों के दर्शन के लिए माता का कपाट खोल दिया गया। सुबह के पांच बजे से लगातार आस्थावानों की भीड़ मंदिर में जुटी है। श्रद्धालु कतारबद्ध होकर माता के चरणों में मत्था टेककर आशीष ले रहे हैं। वहीं मन ही मन अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की अर्जी लगा रहे हैं। कतारबद्ध श्रद्धालु हाथ में प्रसाद की टोकरी (नारियल, चुनरी, माला-फूल) लेकर पूरे श्रद्धा-भक्ति के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।

Brahmacharini Temple: मिश्री का लगाया गया भोग
माता ब्रह्मचारिणी को मिश्री अतिप्रिय है। इस कारण माता को मिश्री का भोग लगाया गया है। मान्यता है कि मिश्री का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं। जिससे लंबी आयु का सौभाग्य प्राप्त होता है। ऐसे पड़ा ब्रह्मचारिणी नाम [Brahmacharini Temple] शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।
हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न कर लिया। उनके इसी तप के प्रतीक के रूप में नवरात्र के दूसरे दिन इनके इसी रूप की पूजा की जाती है।
ऐसा है माता का स्वरूप
ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं। इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिप्टी हुई कन्या के रूप में है, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा [Brahmacharini Temple] शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ सम्पन्न विद्या देकर विजई बनाती हैं। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी है।