Brihaspati Temple: काशी में गुरुवार के दिन देवताओं के गुरु बृहस्पति भगवान के दर्शन का विधान है। दशाश्वमेध स्थित भगवान के मंदिर में जल विहार श्रृंगार किया गया व भगवान को पंचामृत स्नान कराया गया। इस दौरान मंदिर में ग्यारह ब्राह्मणों ने वैदिक मंत्रोच्चार से विधि-विधान से पूजन किया।
भगवान बृहस्पति (Brihaspati Temple) के स्वर्ण मुखौटा व चांदी के छत्र, बाबा के अष्टधातु की प्रतिमा को पालना पर विराजमान किया गया। वहीं मुख्य द्वार को अशोक, कामिनी की पत्ति व रंग-बिरंगे कपड़े और झालरों से सजाया गया। इससे पूर्व भोर में 4 बजे मंगला आरती व रात्रि में 1 बजे शयन आरती मंदिर के महंत अजय गिरी ने संपन्न कराया। अर्चक संतोष गिरी ने रुद्राभिषेक के साथ ही मौर आरती संपन्न कराया। इसके बाद भक्तों को प्रसाद वितरण भी किया गया। इस दौरान मंदिर परिसर में भक्तों का तांता लगा रहा।
मंदिर के पुजारी अजय गिरी ने बताया कि आज भगवान बृहस्पति (Brihaspati Temple) का श्रृंगार किया गया। यहां दूर-दराज से आए भक्तों ने बाबा का जलाभिषेक किया। हर वर्ष इस परम्परा का निर्वहन किया जाता है।
भगवान बृहस्पति के इस मंदिर (Brihaspati Temple) का स्थान काशी के सभी मंदिरों में सर्वोच्च माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना स्वयं काशी के पुराधिपति महादेव ने की थी। उन्होंने ही देवगुरु बृहस्पति को यहां स्थापित किया था। इस मंदिर की स्थापना हजारों वर्ष पहले हुई थी। इस स्थान को काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ का निवास स्थान माना जाता है। काशी के प्रख्यात मंदिरों में से इस मंदिर को भी एक माना जाता है।

Brihaspati Temple: गुरु नाराज होने पर कराएं नवग्रह पूजन
काशी में प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान शिव ने जब इस नगरी की स्थापना की, तो सभी देवी-देवता इस मोक्ष की नगरी में वास करने के लिए उत्साहित थे। उस समय भगवान शिव ने गुरु बृहस्पति को यहां स्थान दिया था। देवताओं के गुरु बृहस्पति (Brihaspati Temple) सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। देवगुरु बृहस्पति नवग्रहों में से के हैं। धन और बुद्धि के देवता को पीली वस्तुएं अत्यंत पसंद हैं। इस मंदिर में लोग अपनी प्रार्थना पूरी होने पर हल्दी और चंदन भी लगाते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में गुरु नाराज होते हैं, वे यहां नवग्रह पूजन भी कराते हैं।
गुरु बृहस्पति (Brihaspati Temple) के इस मंदिर में गुरुवार को आस्थावानों का रेला उमड़ता है। ज्योतिष के अनुसार, जिस पर गुरु प्रसन्न होते हैं, तो उनके जीवन में वैवाहिक सुख, धनलाभ और संतान सुख मिलता है। माना जाता है कि गुरु बृहस्पति (Brihaspati Temple) इस मंदिर में साक्षात् विराजमान हैं। जो लोग दोष से पीड़ित होते हैं, वे गुरुवार के दिन इस मंदिर में आकर विधि-विधान से पूजन करते हैं।

यह मंदिर काशी के दशाश्वमेध घाट क्षेत्र में श्री विश्वनाथ मंदिर के पास ही स्थित है। यह मंदिर भगवान बृहस्पति (Brihaspati Temple) (ग्रह ग्रहणेश्वर) को समर्पित है। मंदिर में बृहस्पति भगवान की मूर्ति स्थापित है और भक्त इस मंदिर में भगवान की कृपा और आशीर्वाद के लिए पूजा करते हैं।
यायावर के रूप में काशी आये थे देवगुरु बृहस्पति
मंदिर के महंत अजय गिरी ने बताया कि काशी नगरी में यायावर के रूप में आए गुरु बृहस्पति (Brihaspati Temple) ने इसी सिद्धस्थल पर बैठ कर अपने आराध्य श्रीकाशी विश्वेश्वर की अखंड आराधना की थी। प्रसन्न होकर ‘बाबा’ ने उन्हें यहीं प्रतिष्ठित होने का वर दिया और यह भी जोड़ा के शिवसायुज्य पद के अधिकारी के रूप में वे विष्णु विग्रह नहीं अपितु शिवलिंग के रूप में पूजित होंगे।
Highlights
महंत ने आगे बताया कि भगवान विष्णु के अंशावतार होने के बाद भी यहां देव बृहस्पति (Brihaspati Temple) शिव रूप में पूजित हैं और बाबा विश्वनाथ की ही तरह जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक व बेल पत्रों के श्रृंगार के अधिकारी हैं। आमतौर पर श्रीहरि की आराधना का मास कार्तिक होता है, मगर यहां बाबा विश्वनाथ की ही तरह देव बृहस्पति (Brihaspati Temple) की आराधना का मास श्रावण नियत है। बाबा भोलेनाथ की ही तर्ज पर श्रावण मास के चारों सोमवार देवगुरु का क्रमश: हरियाली श्रृंगार, जल श्रृंगार, फल श्रृंगार व हिम श्रृंगार किया जाता है।
साक्षात् विराजते हैं बृहस्पति भगवान
इस मंदिर में दैनिक पूजन करने आने वाले भक्तों ने बताया कि इस प्राचीन मंदिर में प्रतिदिन चार प्रहर चार दिव्य आरती के अलावा श्रंगार होते हैं। यह स्वयम्भू शालिग्राम मूर्ति है जो देवों के आराध्य देव ब्रृहस्पति देव हैं। मान्यता है कि यहां बृहस्पति (Brihaspati Temple) भगवान साक्षात् विराजते हैं। ऐसे में आज मन्दिर आने वाली अभिलाषा ने बताया कि सावन माह में आज ब्रहस्पतिवार को हरियाली श्रंगार हर साल होता है। पुराणों में मान्यता है कि जो भी भक्त किन्हीं कारणों से श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में नहीं जा पाता है वो सावन में बृहस्पति (Brihaspati Temple)वार को यहां दर्शन कर पूरे एक महीने काशी विश्वनाथ के दर्शन का फल पाता है।