Buldozer SC Order: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीडीए) की बुलडोजर कार्रवाई को अवैध और अमानवीय करार देते हुए कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि 2021 में की गई इस तोड़फोड़ के दौरान प्रशासन ने नागरिकों के अधिकारों और भावनाओं का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि देश में इस तरह से रिहायशी मकान नहीं तोड़े जा सकते। इस घटना ने न्यायपालिका की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि “राइट टू शेल्टर” (आवास का अधिकार) एक मौलिक अधिकार है और किसी भी नागरिक का घर इस तरह गिराया नहीं जा सकता। न्यायालय ने इस प्रकार की कार्रवाइयों को अनुचित करार दिया और प्रशासन को फटकार लगाई।
प्रयागराज प्रशासन ने 2021 में एक गलतफहमी के आधार पर पांच मकानों को ध्वस्त कर दिया था। अधिकारियों ने इन संपत्तियों को गैंगस्टर अतीक अहमद की प्रॉपर्टी मानकर गिरा दिया, जबकि वे एक वकील, प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घर थे। मकान ढहाए जाने के बाद पीड़ितों—वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह जमीन “नजूल भूमि” थी और सार्वजनिक कार्यों के लिए आरक्षित थी।

Buldozer SC Order: सुप्रीम कोर्ट ने दिए मुआवजे के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन की इस गलती को स्वीकार करने और पीड़ितों को मुआवजा देने का निर्देश दिया। अदालत ने प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी को आदेश दिया कि जिनके मकान गिराए गए, उन्हें छह हफ्तों के भीतर 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई एक घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि “अतिक्रमण विरोधी अभियान” के तहत जब झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था, तब एक आठ साल की बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी। उन्होंने कहा कि यह तस्वीर देखकर हर कोई स्तब्ध रह गया था।
राज्य सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
इस मामले में जब यूपी सरकार की ओर से वकील ने दलील दी कि “याचिकाकर्ताओं को मकान गिराने से पहले नोटिस दिया गया था,” तो जस्टिस अभय एस. ओका ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सवाल उठाया कि “नोटिस इस तरह क्यों चिपकाया गया? कूरियर से क्यों नहीं भेजा गया? क्या इस तरह किसी को नोटिस दिया जाता है और फिर तोड़फोड़ कर दी जाती है?” उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मामला है, जिसमें प्रशासन की लापरवाही और अत्याचार साफ नजर आता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह भूमि नजूल थी और इसकी लीज 1996 में समाप्त हो चुकी थी। याचिकाकर्ताओं ने इसे फ्रीहोल्ड कराने के लिए 2015 और 2019 में आवेदन दिया था, लेकिन वे खारिज कर दिए गए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए स्पष्ट किया कि बिना उचित प्रक्रिया अपनाए, मकानों को तोड़ने की कार्रवाई पूरी तरह से अनुचित थी।
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न्यायपालिका की चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के जरिए सरकार और प्रशासन को कड़ा संदेश दिया कि किसी भी नागरिक के घर को इस तरह बुलडोजर से नहीं गिराया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि सरकार को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उचित नियम और प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।