Chandauli Loksabha: चंदौली लोकसभा सीट पर सातवें व अंतिम चरण में वोटिंग होनी है। यहां 1 जून को मतदान होंगे। इसके लिए लगभग दो सप्ताह का समय बचा हुआ है। सभी राजनीतिक दल अपने खेमे में वोट करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं। सपा, भाजपा, बसपा समेत सभी दल वोटरों को साधने में जुटे हुए हैं। इसी बीच समाजवादी पार्टी के नेताओं के आपसी मनमुटाव और गुटबाजी के चलते सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह की मुश्किलें बढ़ रही हैं।
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि एक दूसरे से निपटने के चक्कर में अबकी बार भी समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी चंदौली जिले की दलीय राजनीति का शिकार होगा और चुनाव में हार का स्वाद चखने के लिए मजबूर होगा। यदि समाजवादी पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने इस पर गौर नहीं किया, तो चंदौली लोकसभा सीट पर एक बार फिर भाजपा हैट्रिक लगाएगी।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव पर गौर करें, तो यहां सपा बसपा गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे संजय चौहान को नजदीकी वोटों से चुनावी हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि वह भी चंदौली जिले के सभी समाजवादी नेताओं का सहयोग लेने से छूट गए थे। उसी के चलते भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ० महेंद्र नाथ पांडेय नजदीकी मुकाबले में सीट को लगातार दूसरी बार जीते। कुछ वैसा ही नजारा एक बार फिर चंदौली जिले की सीट पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी और दूसरे धड़े के नाराज लोगों के बीच नजर आ रही है कि नेताओं के साथ समर्थक और कार्यकर्ता भी गुटों में बढ़ गए हैं।
वैसे यहां उम्मीद जताई जा रही थी कि नामांकन के बाद सारी नाराजगी दूर करके लोगों को सपा प्रत्याशी एकजुट कर लेंगे। इसके लिए चुनाव संचालन समिति के को-ऑर्डिनेटर बनने पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता सुरेंद्र पटेल अपनी ओर से पूर्व सांसद रामकिशन यादव व मनोज सिंह डब्लू को मनाने के लिए उनके घर तक गए थे। माना जा रहा था कि सुरेंद्र पटेल की कोशिश रंग लाएगी और सपा के सभी नेता एकजुट होकर इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए आगे आएंगे, लेकिन नामांकन के दिन भी पार्टी के आपसी मतभेदों और एक दूसरे को नीचा दिखाने की आदत की वजह से समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद रामकिशन यादव इस पूरे कार्यक्रम से दूर रहे।
Chandauli Loksabha: रामकिशुन की ज़रूरत वीरेंद्र को नहीं?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकारों से बातचीत में सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि उन्हें रामकिशुन के पिता और पूर्व विधायक गंजी प्रसाद का आशीर्वाद प्राप्त है। सपा प्रत्याशी ने रामकिशुन यादव का नाम लिए बिना यह संकेत दिया कि शायद उन्हें उनके सहयोग की जरूरत नहीं है। रामकिशुन को लेकर चुप्पी साधे रखना भी इस बात का संकेत दे रहा है कि रामकिशुन यादव की जरूरत ना समाजवादी पार्टी को है और ना ही उम्मीदवार को।
यह बात वीरेंद्र सिंह ने भले ही अपने मुंह से ना कहीं हो, लेकिन इसका अंदाजा समाजवादी पार्टी पूर्व सांसद रामकिशुन यादव को भी हो गया है। इसलिए उन्होंने नामांकन के बाद पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए इसे खुले तौर पर स्वीकार किया।
पुराने समाजवादी नेता हैं रामकिशुन
रामकिशुन ने कहा कि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को उनकी जरूरत नहीं है। इसलिए वह चुनाव प्रचार और नामांकन से दूर हैं, लेकिन वह समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए काम करते रहेंगे। एक कार्यकर्ता के रूप में आखिरी दम तक वह समाजवादी पार्टी के साथ है और आगे भी रहेंगे।
रामकिशुन ने तो यहां तक कह दिया कि समाजवादी के पार्टी के प्रत्याशी के पास बहुत अच्छे सलाहकार हैं और उन्हें लगता है कि वह उन्हें चुनाव जितवा देंगे… तो अच्छी बात है। यदि रामकिशुन यादव के बगैर ही वीरेंद्र सिंह की जीत हो रही है, तो यह चुनाव और जीत उनको मुबारक हो।