- मणिकर्णिका कुंड में श्रद्धालुओं ने लगाई श्रद्धा की डुबकी
- पुजारी द्वारा पूजन-अर्चन करने के बाद स्नान का हुआ आरंभ
- गाजे-बाजे के साथ माता मणिकर्णिका को पुनः मंदिर में किया गया स्थापित
- कुंड में डुबकी लगाकर श्रद्धालुओं ने की सुख – समृद्धि की कामना
- भगवान विष्णु ने स्वयं अपने सुदर्शन चक्र से की थी इस कुंड की स्थापना
- लगभग 80 हजार वर्षों तक भगवान विष्णु ने की थी इस कुंड में तपस्या
- पुरोहित का पूरा परिवार करता है इसकी तैयारी
- भगवान विष्णु, शंकर और माता पार्वती के साथ सभी देवी- देवता करते हैं स्नान
आध्यात्म की नगरी काशी में सैकड़ों परम्पराएं जीवंत हैं. इन्हीं परम्पराओं में से एक है, काशी के अक्षय तृतीया के दूसरे दिन महाशमशान मणिकर्णिका घाट स्थित चक्र पुष्करणी तीर्थ के कुंड में स्नान. मान्यता है कि इस दिन लोग अपने पापों की मुक्ति के लिए इस कुंड में स्नान करते हैं. इस कुंड में स्नान करने से अक्षय फल एवं चारों धामों में एक साथ स्नान करने का फल मिलता है.
काशी में अक्षय तृतीया के दूसरे दिन मणिकर्णिका स्थित चक्र पुष्करणी तीर्थ के कुंड में हजारों भक्तों ने आस्था की डुबकी लगाई. माना जाता है कि सी दिन दोपहर में भगवान विष्णु और शिव समस्त देवी-देवताओं के साथ भी स्नान ध्यान करने के लिए आते हैं. इसी कारण यहां स्थानीय लोगों के साथ ही देशभर से लोग आते हैं.
पुजारी के पूजन-अर्चन करने के बाद स्नान का हुआ आरंभ
परंपराओं का निर्वहन करते हुए सोमवार को हजारों की संख्या में मणिकर्णिका घाट पहुंचे श्रद्धालुओं ने कुंड में आस्था की डुबकी लगाई. अक्षय तृतीया के अवसर पर मां मणिकर्णिका का श्रृंगार रविवार रात में किया गया. मां का भव्य श्रृंगार करने के बाद मंदिर के प्रधान पुरोहित जयेंद्र नाथ दुबे ‘बब्बू महाराज’ ने विधि-विधान से मां मणिकर्णिका का पूजन अर्चन क्या. जिसके बाद मां मणिकर्णिका की प्रतिमा को गाजे-बाजे के साथ मंदिर में स्थापित किया गया.
यहां गिरा माता पार्वती का कर्ण कुंडल, नाम पड़ा मणिकर्णिका कुंड
स्कंद पुराण के काशी खंड के अनुसार, श्रृष्टि काल के आरंभ में भगवान विष्णु ने यहां 80 हजार वर्षों तक तपस्या की थी. उन्होंने ही अपने सुदर्शन चक्र से इसका निर्माण किया था. इसलिए इसे चक्र पुष्करिणी कुंड के नाम से जाना जाता है. बाद में इस कुंड में काशी भ्रमण के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती ने स्नान किया. स्नान के बाद जब दोनों लोगों ने अपना माथा झटका, तब शिव की मणि और मां का कुंडल गिर गया. तभी इसे इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया. वैसे इसका पूरा नाम चक्र पुष्करिणी मणिकर्णिका तीर्थ है.
भगवान गणेश और शिव के साथ विराजमान हैं भगवान विष्णु
मणिकर्णिका स्थित इस कुंड के बाहर विष्णुचरण पादुका है. यह कुंड घाट ताल से करीब 25 फीट नीचे स्थित है. कुंड में जाने के लिए 17-17 सीढियां बनी हुई हैं. कुंड के किनारे दक्षिण दिशा में भगवान विष्णु, गणेश और शिव की प्रतिमा स्थापित है. यहां लोग स्नान करने के बाद जल चढ़ाते हैं.
गाजे-बाजे के साथ निकली है मां की सवारी
मंदिर के पुजारी जयेंद्र नाथ दुबे ‘बब्बू महाराज’ ने बताया कि मां मणिकर्णिका की अष्टधातु प्रतिमा प्राचीन समय में इस कुंड से निकली थी. ढाई फीट ऊँची प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती हैं. मां का दर्शन वर्ष में केवल एक बार होता है. केवल अक्षय तृतीया के दिन मां को पालकी में बैठाकर गाजे-बाजे के साथ कुंड में स्थापित करते हैं. फिर उसके दूसरे दिन मां की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने के बाद श्रद्धालु कुंड में स्नान करके मां से पाप मुक्ति का वरदान मांगते हैं.

कई वर्षों से लगा रहे आस्था की डुबकी
हमें यहां आकर काफी अच्छा लगता है. हम कई सालों से यहां आते रहे हैं. हर वर्ष अक्षय तृतीया और उसके अगले दिन कुंड में स्नान करते हैं. कोरोना के कारण 2 वर्ष से कुंड में स्नान पर रोक थी, लेकिन इस बार काफी सुकून मिला.
- महेश वल्लभाचार्य, तमिलनाडु.
मणिकर्णिका दर्शन अलौकिक
मणिकर्णिका का दर्शन अपने आप में अलौकिक है. यहां के दर्शन मात्र और कुंड में स्नान करने से लोगों को कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है. हमने अपने पूरे परिवार सहित इस कुंड में स्नान किया. जिसके बाद एक अद्भुत शांति मिल रही है.
- विवेकानंद शांडिल्य, रांची.
कुंड में स्नान के बाद होती है मोक्ष की प्राप्ति
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी कई मायनों में अद्भुत है. यहां त्योहारों पर अक्सर आना होता है. त्योहारों पर काशी जगमग हो जाती है. मणिकर्णिका कुंड में स्नान के बाद लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- मनीष झुनझुनवाला, सूरत.