Digital Arrest: देश में इंटरनेट की पहुंच जितनी तेज़ी से बढ़ी है, उसी गति से साइबर अपराधियों का नेटवर्क भी विस्तार पा रहा है। अब यह ठगी सिर्फ फिशिंग लिंक, ओटीपी चोरी या नकली लॉटरी तक सीमित नहीं रह गई है। अब ठग ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसे हाईटेक और मनोवैज्ञानिक दबाव वाले हथकंडों का प्रयोग कर रहे हैं, जिसमें लोग आंखों के सामने अपनी बर्बादी को होते देख भी कुछ नहीं कर पा रहे।
Digital Arrest: हर जिले में एक्टिव स्लीपर सेल, अपराध की बुनियाद बन चुके ‘खलिहर’
सूत्रों के अनुसार, देश के हर जिले में साइबर ठगों ने अपना ‘स्लीपर सेल’ सक्रिय कर रखा है। ये सेल ऐसे बेरोजगार और सोशल मीडिया पर अत्यधिक सक्रिय युवाओं को निशाना बनाते हैं, जो थोड़े लालच में बड़ी जानकारी उपलब्ध करा देते हैं। यह नेटवर्क किसी खुफिया एजेंसी की तरह काम करता है। आम लोगों की जरूरतों, व्यवहार और ऑनलाइन गतिविधियों की जानकारी इन ठगों तक पहुंचाई जाती है।
ठगी का तरीका: पहले डाटा, फिर डर, और आखिर में ट्रांजैक्शन
एक बार जानकारी मिलते ही साइबर ठग शिकार की मनोस्थिति को समझते हैं और फिर उन्हें टारगेट करने का तरीका तय करते हैं। अक्सर वर्चुअल वीडियो कॉल के ज़रिए खुद को सरकारी जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर डराते हैं। बताया जाता है कि उस व्यक्ति का नाम किसी गंभीर अपराध (जैसे मनी लॉन्ड्रिंग) में आ चुका है और अब उसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ किया जाएगा।
डर का ऐसा माहौल बनाया जाता है कि व्यक्ति बाहर निकलने से भी डरता है। कॉल पर ही कहा जाता है कि पुलिस plainclothes में बाहर खड़ी है। फिर कहा जाता है कि अगर गिरफ्तारी से बचना है, तो कैमरे के सामने ही बना रहो और कुछ रकम ट्रांसफर करो ताकि जांच आगे बढ़े।

लखनऊ में 8 दिन, तीन केस, एक जैसी स्क्रिप्ट
लखनऊ में 10 से 18 अप्रैल के बीच तीन बड़े ठगी के मामले सामने आए हैं। हर केस में तरीका एक जैसा था—वीडियो कॉल, डराने की कोशिश और डिजिटल अरेस्ट की धमकी के बाद रकम ऐंठी गई।
- 10 अप्रैल: गोमतीनगर के एक नामी डॉक्टर से 95 लाख रुपये की ठगी की गई।
- 12 अप्रैल: इंदिरानगर की योगा प्रशिक्षिका से 8 लाख रुपये झटक लिए गए।
- 18 अप्रैल: एचएएल के एक कर्मचारी से 18 लाख रुपये ठग लिए गए।
इन मामलों में लखनऊ पुलिस और साइबर सेल ने शुरुआती जांच में यह पाया कि कॉल्स अलग-अलग देशों से इंटरनेट के जरिए किए गए थे। लोकेशन ट्रेस करना लगभग असंभव रहा क्योंकि कॉल्स VPN और रूटिंग टूल्स के जरिए मास्क की गई थीं।
साइबर ठगों की भौगोलिक रणनीति
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, भारत में यह गिरोह खासकर नक्सल-प्रभावित इलाकों जैसे छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और पंजाब में गहराई से सक्रिय है। हालांकि अब इनका विस्तार दिल्ली, नोएडा, लखनऊ जैसे शहरी केंद्रों तक हो चुका है, जहां अधिकतर पढ़े-लिखे, तकनीकी रूप से जागरूक लेकिन मानसिक दबाव में आसानी से आ जाने वाले नागरिक रहते हैं।

वर्चुअल कॉल्स: नया हथियार, मुश्किल पहचान
साइबर ठग वर्चुअल कॉल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं जो इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीफोनी (VoIP) से किए जाते हैं। इनकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि इन्हें ट्रेस करना मुश्किल होता है और कॉलर्स की असल लोकेशन आसानी से नहीं मिल पाती। साइबर थाने की शुरुआती रिपोर्ट्स में यह भी सामने आया है कि कई कॉल्स फिलीपींस, कंबोडिया और UAE जैसे देशों से किए गए।
एसटीएफ और साइबर सेल की कार्रवाई
लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए एसटीएफ की साइबर विंग और स्थानीय साइबर थाना अलर्ट मोड में आ चुके हैं। बीते हफ्ते लखनऊ के पीजीआई से जुड़ी एक डॉक्टर के केस में पुलिस ने एक लोकल गैंग को गिरफ्तार किया है, जिससे मिली जानकारी से देशव्यापी नेटवर्क की जांच आगे बढ़ाई जा रही है।
एसटीएफ की एक सर्विलांस टीम इन कॉल्स के डिजिटल फुटप्रिंट्स का विश्लेषण कर रही है और इंटरनेशनल नेटवर्क्स से लिंक तलाशे जा रहे हैं।
एक्सपर्ट्स की राय: डिजिटल साक्षरता ही है बचाव
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ मृत्युंजय सिंह का कहना है कि इस तरह की ठगी से बचाव का सबसे मजबूत तरीका “डिजिटल सजगता” है। उन्होंने कहा, “अगर किसी को वर्चुअल कॉल आती है जो डर या धमकी दे रही है, तो सबसे पहले शांत रहें, बात को समझें और किसी परिचित या पुलिस से सलाह लें। किसी भी जांच एजेंसी द्वारा फोन पर पैसे की मांग नहीं की जाती।”
उन्होंने यह भी बताया कि ऐसे कॉल्स को रिसीव न करें, खासकर जो +91 से इतर किसी अन्य कोड से आते हों। साथ ही, किसी अनजान व्यक्ति या लिंक पर अपनी निजी जानकारी साझा करने से बचें।

वाराणसी साइबर थाना भी अलर्ट
वाराणसी साइबर थाना के एक्सपर्ट श्याम लाल गुप्ता ने बताया कि इन गिरोहों की कार्यप्रणाली हाईटेक और संगठित हो चुकी है। उन्होंने कहा, “अब यह सिर्फ ऑनलाइन ठगी नहीं रही, यह साइकोलॉजिकल वारफेयर है। जनता को इसके प्रति जागरूक करना ही सबसे कारगर उपाय है।”
Highlights
भारत के साइबर अपराध के हॉटस्पॉट राज्य
सरकारी डेटा के अनुसार, 2024 में देश के जिन राज्यों में सबसे अधिक साइबर ठगी के मामले सामने आए, वे हैं:
- उत्तर प्रदेश – 1,97,546 मामले
- महाराष्ट्र – 1,25,153 मामले
- गुजरात – 1,21,701 मामले
- राजस्थान – 77,769 मामले