ED Inspection: कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और व्यवसायी रॉबर्ट वाड्रा मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समक्ष एक बार फिर पेश हुए। इस बार वे किसी वाहन के बजाय पैदल ही ईडी कार्यालय पहुंचे, जिससे उनका यह कदम राजनीतिक संदेश देने जैसा प्रतीत हुआ। वाड्रा से यह पूछताछ गुरुग्राम के शिकोहपुर स्थित ज़मीन सौदे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में की गई।
ईडी ने उन्हें समन जारी कर पेश होने को कहा था, जो इस मामले में दूसरा समन था। इससे पहले आठ अप्रैल को उन्हें पहला समन भेजा गया था, लेकिन वाड्रा उस समय पेश नहीं हुए थे। ईडी का यह कदम उस एफआईआर की जांच के तहत उठाया गया है, जो हरियाणा पुलिस द्वारा वर्ष 2018 में दर्ज की गई थी।
वाड्रा बोले – ‘सत्ता पक्ष मुझे डराने की कोशिश कर रहा है’
प्रवर्तन निदेशालय कार्यालय पहुंचने से पहले वाड्रा ने मीडिया से बात करते हुए इस कार्रवाई को सत्ता प्रायोजित बताया। उन्होंने कहा, “जैसे ही मैं जनता की आवाज़ उठाने की कोशिश करता हूं या राजनीति में सक्रिय होता हूं, वैसे ही ये संस्थाएं मुझे निशाना बनाना शुरू कर देती हैं। मैं अब तक 20 बार ईडी के सामने पेश हो चुका हूं, घंटों बैठ चुका हूं, 23,000 से अधिक दस्तावेज़ सौंपे हैं, फिर भी हर बार मुझसे वही दस्तावेज़ दोबारा मांगे जाते हैं। क्या यह न्याय है?”
ED Inspection: घोटाले की जड़ें – शिकोहपुर में ज़मीन सौदा और मुनाफे का खेल
मामले की शुरुआत 2008 में हुई थी, जब रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी ‘स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी’ ने गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से 3.5 एकड़ जमीन 7.5 करोड़ रुपए में खरीदी थी। इसी वर्ष हरियाणा की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने इस भूमि के एक हिस्से – करीब 2.7 एकड़ – पर वाणिज्यिक कॉलोनी विकसित करने की अनुमति दे दी।
कुछ ही महीनों बाद, स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने यह जमीन रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को 58 करोड़ रुपए में बेच दी, जिससे वाड्रा की कंपनी को लगभग 50 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
आईएएस अधिकारी खेमका ने उठाए सवाल, म्यूटेशन किया रद्द
2012 में इस सौदे पर उस समय सवाल उठे जब वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अशोक खेमका ने इस डील की जांच की। उन्होंने आरोप लगाया कि इस सौदे में नियमों की अनदेखी की गई और ज़मीन के स्वामित्व हस्तांतरण की प्रक्रिया (म्यूटेशन) को अमान्य घोषित कर दिया। इसके तुरंत बाद खेमका का तबादला कर दिया गया, जिससे यह मामला और विवादास्पद हो गया।
एफआईआर में लगे गंभीर आरोप, हुड्डा और डीएलएफ भी घेरे में
हरियाणा पुलिस ने साल 2018 में रॉबर्ट वाड्रा, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इसमें धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र और भ्रष्टाचार जैसे संगीन आरोप लगाए गए थे। आईपीसी की धारा 420, 120बी, 467, 468, 471 और बाद में 423 के तहत मामले दर्ज किए गए।
हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए वाड्रा की कंपनी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लाइसेंस जारी किए और डीएलएफ को ज़मीन हस्तांतरित कर दी। आरोप है कि जून 2008 में महज चार महीने में वाड्रा की कंपनी को लगभग 700 प्रतिशत का लाभ हुआ, जो अपने आप में असामान्य माना जा रहा है।
ईडी को शक – डीएलएफ को पहुंचाया गया हजारों करोड़ का फायदा
प्रवर्तन निदेशालय ने इस एफआईआर के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की। ईडी का मानना है कि यह महज एक ज़मीन सौदा नहीं, बल्कि अवैध रूप से कमाई गई धनराशि को वैध बनाने की साज़िश हो सकती है। जांच एजेंसी को संदेह है कि ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज महज एक मुखौटा कंपनी थी, जिसका उपयोग स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को ज़मीन हस्तांतरण के लिए किया गया।
ईडी को इस सौदे में डीएलएफ को भी बड़ा लाभ मिलने का अंदेशा है। रिपोर्ट के मुताबिक, वजीराबाद क्षेत्र में डीएलएफ को 350 एकड़ ज़मीन आवंटित की गई, जिससे उसे कथित तौर पर 5,000 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
Highlights
राजनीति बनाम जांच: टकराव जारी
रॉबर्ट वाड्रा का यह कहना कि यह कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है, कोई नई बात नहीं है। विपक्ष लगातार सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता रहा है। लेकिन ईडी का दावा है कि उसके पास पर्याप्त दस्तावेज़ और सबूत हैं जो इस पूरे मामले में गंभीर वित्तीय अनियमितताओं की ओर इशारा करते हैं।