परशुराम की माता के वद से जुड़ा सत्य
भगवान परशुराम स्वयं नारायण के छठे अवतार थे जिन्हें आवेशावतार भी कहा जाता है। इसी आवेश (क्रोधित) स्वभाव तथा पितृ भक्ति के कारण एक दिन उन्होंने अपनी ही माता का वध कर दिया था। उनके पिता महान ऋषि जमदग्नि तथा माता रेणुका थी। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।
एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उनके पिता ने उन्हें उनकी ही माता का वध का आदेश दिया जिसके बाद परशुराम ने अपनी ही माँ का सिर धड़ से अलग कर दिया था। आज हम आपको उसी कथा के बारे में विस्तार से बताएँगे।

परशुराम ने अपनी माता का वध क्यों किया था
माँ रेणुका का नदी में स्नान करने जाना
एक बार परशुराम की माँ रेणुका आश्रम के पास नदी में स्नान करने गयी थी। वहां पर उन्होंने राजा चित्ररथ को अन्य अप्सराओं के साथ स्नान करते तथा क्रीड़ा करते हुए देखा। राजा चित्ररथ दिखने में बहुत आकर्षक तथा सुंदर शरीर वाले थे। अन्य अप्सराओं के साथ उनकी क्रीड़ा को देखकर रेणुका का मन भी प्रफुल्लित हो उठा तथा वह उसे देखती रही। इसी कारण उन्हें स्नान करके वापस आश्रम में आने में देरी हो गयी।
ऋषि जमदग्नि ने जाना रेणुका के मन की बात
जब रेणुका स्नान करके वापस आश्रम लौटी तो उसके हाव भाव बदले हुए थे तथा उसके मन में अभी भी वही दृश्य चल रहा था। चूँकि ऋषि जमदग्नि एक महान तपस्वी थे तो उन्होंने अपने तप के बल पर संपूर्ण बात का पता लगा लिया तथा रेणुका का मन भी पढ़ लिया। यह देखकर उन्हें इतना ज्यादा क्रोध आया कि उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र को अपनी माँ का गला काट देने का आदेश दिया।
उनका सबसे बड़ा पुत्र अपनी माँ के प्रेम में ऐसा नही कर पाया। तब उन्होंने अपने दूसरे तथा तीसरे पुत्र को भी यही आदेश दिया लेकिन वे भी ऐसा कर पाने में असक्षम थे। एक ओर माँ की हत्या का पाप लगता तो दूसरी ओर पिता की आज्ञा की अवहेलना करने का पाप। यह एक धर्मसंकट था लेकिन उन्होंने मातृ हत्या करने से मना कर दिया।
अपने पुत्रों के द्वारा स्वयं की ऐसी अवहेलना किये जाने पर ऋषि जमदग्नि को अत्यधिक क्रोध आ गया और उन्होंने अपने तीनों पुत्रों को श्राप दिया कि वे अपना विवेक, बुद्धि तथा सारा ज्ञान खो देंगे।
परशुराम ने मानी अपने पिता की आज्ञा और काट दिया अपनी माँ का मस्तक
इसके पश्चात ऋषि जमदग्नि ने अपने सबसे छोटे पुत्र परशुराम को अपनी माँ रेणुका का मस्तक धड़ से करने का आदेश दिया। पिता का आदेश मिलते ही परशुराम ने बिना देर किये एक पल में अपनी माँ का सिर धड़ से अलग कर दिया। देखते ही उनकी माँ निष्प्राण हो गयी तथा लहू की धारा फूट पड़ी।
यह देखकर परशुराम के पिता जमदग्नि अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा परशुराम को स्नेहपूर्वक कोई वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने समझदारी से काम लेते हुए अपने पिता से तीन वर मांगे। पहले वर में उन्होंने अपनी माँ को पुनः जीवित करने को कहा, दूसरे वर में उन्होंने माँगा कि उनकी माँ को इस चीज़ की स्मृति न रहे तथा तीसरे वर में उन्होंने अपने तीनो भाइयों का विवेक व बुद्धि मांग ली।
ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम की समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे तीनों वर प्रदान कर दिए। इसके पश्चात सब कुछ फिर से सामान्य हो गया तथा परशुराम जी की माँ पुनः जीवित हो उठी।
मातृ हत्या के पाप से परशुराम का मुक्ति पाना
हालाँकि भगवान परशुराम ने अपनी माँ रेणुका को पुनः जीवित तो करवा लिया था लेकिन उनके ऊपर मातृ हत्या का पाप लग चुका था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी तथा मातृ हत्या के पाप से मुक्ति पायी थी।
Anupama Dubey