मनुस्मृति में हिन्दू धर्म के लिए कुल 8 प्रकार के विवाहों को चिन्हित किया है अर्थात एक मनुष्य आठ प्रकार से विवाह कर सकता है। इसमें ब्रह्म विवाह को आदर्श विवाह माना गया है जबकि गंधर्व विवाह को उससे नीचे की स्थिति में रखा गया है। गंधर्व विवाह को हम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रेम विवाह की संज्ञा भी दे सकते हैं। आज हम आपके साथ गंधर्व विवाह के बारे में संपूर्ण जानकारी साँझा करेंगे।
गंधर्व विवाह के बारे में जानकारी
गन्धर्व विवाह क्या होता है?
हिन्दू धर्म हमेशा से एक महान धर्म रहा है तथा उसने समाज के सभी वर्गों व भावनाओं को स्वयं में समाहित किया है तभी उसे सनातन धर्म कहा जाता है। उसी का एक जीता-जागता उदाहरण है गन्धर्व विवाह जिसका स्वयं मनुस्मृति में उल्लेख है।
गन्धर्व विवाह के अनुसार यदि एक पुरुष व कन्या एक दूसरे से प्रेम करते हैं, फिर चाहे वे ब्रह्म विवाह के नियमों के विरुद्ध हो, तब भी उनका विवाह मान्य होगा। अर्थात एक पुरुष-कन्या के अलग वर्ण, जाति, समुदाय से होने या कुछ और कारण से मेल नही हो पा रहा हो लेकिन फिर भी वे एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और परिवार की आज्ञा के बिना विवाह कर लेते हैं तो उसे गन्धर्व विवाह कहा जायेगा और धर्म के अनुअर वह विवाह मान्य होगा जिसे कोई झुठला नही सकता।
गंधर्व विवाह कैसे होता है?
विवाह के कुल आठ प्रकारों में गन्धर्व विवाह पांचवे नंबर पर आता हैं, उससे ऊपर ब्रह्म, प्रजापत्य, दैव व आर्ष विवाह आते हैं जिसमे वर व वधु के परिवारों की सहमति अनिमार्य होती है। किंतु गन्धर्व विवाह में ऐसा कुछ भी अनिवार्य नही है तथा ना ही कोई धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है।
उपरोक्त सभी विवाह या तो समान वर्ण में होते थे या किसी सिद्ध पुरुष या ज्ञानी व्यक्ति के साथ, किंतु गन्धर्व विवाह इन सभी बंधनों को तोड़ता है। गन्धर्व विवाह में वर व वधु की जाति, वर्ण, कुल, रंग, रूप, पद, प्रतिष्ठा, धन, परिवार, कुंडली, राशि इत्यादि कुछ भी नही देखा जाता, इसमें केवल कन्या व पुरुष का आपसी प्रेम व भावनाओं का मिलन आवश्यक होता है।
हालाँकि गन्धर्व विवाह के भी कुछ नियम हैं, जैसे कि:
कन्या व पुरुष दोनों अपने ब्रह्मचर्य आश्रम की आयु से निकलकर गृहस्थ आश्रम की आयु में प्रवेश कर चुके हो अर्थात दोनों बालिग हो चुके हो।
इसमें दोनों की पूर्ण रूप से सहमति हो तथा किसी प्रकार का सौदा, पैसो का लेनदेन, जोर-जबरदस्ती ना की गयी हो।
अग्नि को साक्षी मानकर ही विवाह किया गया हो व किसी प्रकार का धोखा ना किया गया हो।
दोनों ने एक-दूसरे को अपना असली परिचय दिया हो व ऐसी कोई बात ना छुपाई हो जो विवाह के बाद के जीवन पर प्रभाव डाले।
यदि इन सभी नियमो का पालन करते हुए कन्या व पुरुष यह चाहते हैं कि वे आपस में विवाह कर ले लेकिन उनके घरवाले इसके लिए तैयार ना हो तो वे गन्धर्व विवाह कर सकते है। इसके लिए उन्हें किसी मंदिर या धार्मिक स्थल पर जाकर अग्नि को साक्षी मानकर विवाह करना होता है।
इसमें वे अग्नि के फेरे लेते है व विवाह को संपन्न करवा लेते है। उसके बाद वे धर्म के अनुसार पति-पत्नी बन जाते हैं क्योंकि हिंदू धर्म में अग्नि को साक्षी मानकर किया गया विवाह मान्य होता है।
गन्धर्व विवाह के पश्चात वर-वधु
जब कन्या व पुरुष गंधर्व विवाह कर लेते हैं तब वे अपने परिवार के समक्ष आ सकते हैं व उन्हें अपने विवाह की सूचना दे सकते है। समाज में कोई भी चाहे वह उनका रिश्तेदार हो, मित्र हो या जानने वाला हो, कोई भी उनके विवाह को झुठला नही सकता क्योंकि धर्म उस विवाह को मान्यता प्रदान करता है।
गंधर्व विवाह का उदाहरण
इतिहास में कई गन्धर्व विवाह हुए हैं जिसमे सबसे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण महाराज दुष्यंत का शकुंतला से हुआ विवाह है। दोनों का विवाह गन्धर्व विवाह की श्रेणी में आता हैं जिसमे दोनों के परिवारों की इसमें सहमति नही थी फिर भी दोनों ने प्रेम स्वरुप एक-दूसरे से विवाह किया व उनसे भरत नामक शक्तिशाली सम्राट का जन्म हुआ।
Anupama Dubey