Ghosi Election Analysis: घोसी विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों के बाद अब विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में ख़ुशी की लहर है। इस चुनाव पर सभी पार्टियों के दिग्गजों ने अपनी नजर गड़ाई थी। माना जा रहा था कि घोसी उपचुनाव के नतीजे ही लोकसभा की दशा और दिशा दोनों तय करेंगे। ऐसे में बीजेपी के लिए थोड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
घोसी का उप चुनाव पूर्वांचल की राजनीति के लिए काफी अहम रहा। इस चुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। वहीँ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इसे ‘इंडिया’ गठबंधन की जीत बताया है। दो बार के विधायक रहे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने अपने प्रतिद्वंदी भाजपा के प्रत्याशी को 42 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है।
वैसे देखा जाय तो, घोसी विधानसभा उपचुनाव के नतीजों (Ghosi Election Analysis) ने साफ़ कर दिया है कि आप समीकरण बनाकर निश्चिंत नहीं हो सकते। ध्रुवीकरण की जो कोशिश बीजेपी ने की है, उसी ने इसका नुकसान कराया है। पूर्वांचल में जिन समीकरण और वोटों के जरिए बीजेपी अपने आप को यहां का सिकंदर समझ रही थी, वही समीकरण अब घोसी के नतीजों के बाद उलझता सा नजर आ रहा है।
ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान को साथ लेकर बीजेपी जो ओबीसी वोटरों को साधने का प्रयास कर रही थी, लेकिन माना जा रहा है कि इन दोनों के कारण ही पार्टी का कोर वोट बैंक भी हाथ से फिसलता जा रहा है। सुधाकर सिंह के पक्ष में स्वर्ण वोटों का जाना बीजेपी के लिए एक बड़ा और बुरा संकेत है।
Ghosi Election Analysis: जनता के वोटबैंक को अपनी पॉकेट में समझना बीजेपी की बड़ी भूल
घोसी विधानसभा उपचुनाव के परिणाम (Ghosi Election Analysis) ने स्पष्ट कर दिया है कि वोट बैंक को अपनी पॉकेट में समझना बीजेपी के लिए एक बड़ी भूल होगी। सत्ता की नजदीकी की ख्वाहिश रखने वाले दारा सिंह चौहान को वोटर्स ने घर पर बैठाकर समीकरण और ध्रुवीकरण की राजनीति पर पानी फेर दिया है। सुधाकर सिंह ने स्थानीय स्तर पर वोटरों को साधा। इसमें सुधाकर को सवर्ण, ओबीसी और दलित वोटरों का साथ मिला। वहीं दारा सिंह चौहान का जमीनी स्तर के वोटर्स से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं रहा। दारा सिंह चौहान के समर्थन में नेताओं ने बस जनसभा किये, और उस सभा के मंच से बड़े-बड़े वादे किए।
वहीं सुधाकर के समर्थन में शिवपाल यादव से लेकर प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल तक ने डोर टू डोर कैम्पेन किया और बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी की। इस मामले में सपा का समीकरण पूरी तरह से एकजुट (Ghosi Election Analysis) दिखा। चुनावी नतीजों से स्पष्ट हो रहा है कि घोसी के जो बदले समीकरण हैं, वह बीजेपी का टेंशन बढ़ाने वाले हैं। समाजवादी नेताओं ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
बीजेपी पर उपचुनाव को थोपा गया?
घोसी में बीजेपी की इतने भारी अंतर से हार (Ghosi Election Analysis) देखकर एक बात जो राजनीतिक गलियारों से निकलकर सामने आ रही है, वह यह कि घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव को थोपा गया था। जनसंपर्क के बजाय बीजेपी बस जनसभा और लंबे-लंबे भाषणों में उलझी रही। जनता की मूलभूत आवश्यकताओं पर उन्होंने अपना ध्यान केन्द्रित करना उचित ही नहीं समझा। अब इसका राजनीतिक एंगल देखा जाय, तो यूपी विधानसभा 2022 चुनाव से थोड़े ही समय पहले योगी सरकार-1 में मंत्री रहे दारा सिंह चौहान ने भाजपा को झटका देते हुए सपा का दामन थाम लिया। सपा ने उनकी मनपसंद सीट से उम्मीदवार बनाया और चौहान की इस सीट पर जीत हुई।
सपा में जाने के पीछे का कारण उनका चुनावों में सत्ता परिवर्तन (Ghosi Election Analysis) की उम्मीद थी। लेकिन, प्रदेश की जनता ने एक बार फिर भाजपा की सरकार बनाई तो दारा सिंह चौहान का मन एक बार फिर बदल गया। वे भाजपा के साथ हो गए। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। उप चुनाव में पार्टी ने उम्मीदवार भी बनाया। लेकिन, घोसी की जनता का भरोसा जीत पाने में कामयाब नहीं हुए। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले घोसी के रण को NDA बनाम I.N.D.I.A. के रूप में पेश किया गया। इसमें जीत विपक्षी गठबंधन की हुई। दो बार के विधायक रहे सुधाकर सिंह तीसरी बार एमएलए बनकर यूपी विधानसभा पहुंचने की तैयारी में हैं।
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बड़ी-बड़ी बातें, जो जनता को समझ ही नहीं आई
बीजेपी की इतनी करारी हार के बाद जो बातें सामने आ रही हैं वह यह कि बीजेपी बस मंच से बड़ी-बड़ी बातें (Ghosi Election Analysis) ही करती रह गई। सीएम, डिप्टी सीएम, भूपेंद्र सिंह चौधरी से लेकर निरहुआ, मनोज तिवारी, रवि किशन सभी ने मंच से ही जनता को संबोधित किया। जमीनी स्तर पर इनके किसी भी बड़े नेता ने लड़ाई नहीं लड़ी। वहीँ सुधाकर सिंह के ओर से शिवपाल यादव, नरेश उत्तम पटेल ने नुक्कड़ सभाओं से लेकर डोर टू दूर कैम्पेनिंग किया। उन्होंने स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा छेड़ा। उन्होंने लोगों के बीच भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को बाहरी करार देने में सफलता हासिल की।
दारा और राजभर दोनों दलबदलू, जिसे जनता ने किया दरकिनार
दारा सिंह चौहान की दलबदलू वाली छवि ने भी उन्हें खासा नुकसान पहुंचाया। दलित वोटर छिटके। सवर्ण वोटरों का साथ सुधाकर सिंह मिला। एनडीए के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए। वोटों का ध्रुवीकरण (Ghosi Election Analysis) भी काम नहीं आया। दारा सिंह चौहान 42,759 वोटों के अंतर से हारे। इतने बड़े अंतर से जीत की उम्मीद तो समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी नहीं कर रहे थे। परिणाम जारी होने के बाद सुधाकर सिंह ने बड़ा दांव खेला। उन्होंने कहा कि ओम प्रकाश राजभर का भीतर से हमें समर्थन हासिल था। इसी कारण इतनी बड़ी जीत हमें मिली।
दूसरी ओर, दारा सिंह चौहान और ओमप्रकाश राजभर दोनों ही बीजेपी और सपा में दलबदलू छवि के हो गए हैं। एक ने विधानसभा चुनाव लड़ा और दूसरे को इस चुनाव की जिम्मेदारी (Ghosi Election Analysis) सौंपी गई। इसलिए कहा जा रहा है कि ‘खेला’ तो होना ही था। वहीं बीजेपी ने जातिगत समीकरण को भी दरकिनार कर केवल मंच साधने में व्यस्त रही। लिहाजा, सपा की सीट सपा के खेमे में चली गई।
सवर्ण बनाम दलित की लड़ाई
घोसी उप चुनाव पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि यहां पर 80 हजार मुस्लिम वोटर हैं। वहीं, यादव वोटरों की संख्या करीब 50 हजार है। चौहान, राजभर और निषाद वोटरों को मिला दें तो उनकी भी संख्या लगभग सवा लाख के आसपास हो जाती है। मतलब, यहां मुकाबला (Ghosi Election Analysis) बराबरी का रहता है। ऐसे में हार-जीत सवर्ण और दलित वोटों के जरिए तय होता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां लड़ाई स्वर्ण बनाम दलित है।
इस बार के चुनाव में सपा ने क्षत्रिय उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारकर खेल (Ghosi Election Analysis) कर दिया। क्षत्रिय वोट बैंक का लगभग 50 फीसदी सुधाकर सिंह के पक्ष में गया। सुधाकर सिंह के स्थानीय और जमीन से जुड़े होने के कारण अन्य सवर्ण वोटरों ने भी साथ दे दिया। भले दारा सिंह चौहान भाजपा में वापसी कर रहे थे, लेकिन स्थानीय स्तर पर नेताओं से लेकर वोटर्स तक में उनकी दलबदल की राजनीति को लेकर नाराजगी थी। यह नाराजगी भारी पड़ी। कह सकते हैं कि दारा सिंह चौहान की छवि ख़राब हो गई थी।
वोट बैंक का समीकरण सुलझाने में असफल रहे दारा सिंह चौहान
घोसी में एससी वोटरों की संख्या (Ghosi Election Analysis) करीब 70 हजार है। इनमें दलित, घोबी, खटीक, पासी और मुसहर समाज के लोग हैं। वहीं, मुसलमानों की 85 हजार आबादी में सबसे बड़ी संख्या अंसारी बुनकरों की है। इसके बाद स्थान आता है 55 हजार चौहान एवं नोनिया और करीब 50 हजार राजभर वोटरों का। विधानसभा सीट पर 15 हजार क्षत्रिय, 14 हजार भूमिहार, 7 हजार ब्राह्मण और 30 हजार बनिया समाज के वोटर हैं। 15 हजार कोइरी और 5 हजार प्रजापति कुम्हार जाति का भी वोट है। इन वोटों का समीकरण स्थानीय सुधाकर सिंह ने सुलझा लिया। दारा सिंह चौहान और भाजपा कागजों पर समीकरण को सुलझा कर दावे करती रही।