- संकटमोचन मंदिर में ही गोस्वामी तुलसीदास को हुआ था हनुमान का दर्शन: प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र
- जैसा हुआ था साक्षात्कार वही विग्रह मंदिर में है विराजमान
- हनुमानजी का यह कोई स्थापित विग्रह नहीं है
- पांच सौ साल प्राचीन है संकटमोचन का इतिहास
- आठ एकड़ में फैले वन को हनुमानजी का बगीचा मानते हैं
राधेश्याम कमल
वाराणसी। गोस्वामी तुलसी दास ने असी गंगा के तीर पर रामचरित मानस की रचना की थी। इसी दौरान गोस्वामी तुलसी दास को हनुमान का साक्षात दर्शन हुआ था। जिस स्थान पर गोस्वामी तुलसी दास को हनुमानजी का साक्षात दर्शन हुआ था, वहां कभी घनघोर वन (जंगल) हुआ करता था। साढ़े आठ एकड़ में फैले इस वन को हनुमानजी के बगीचे के रूप में जाना जाता है। यह वन आज भी सुरक्षित है। इसी के पास काशी का विश्व विख्यात संकटमोचन मंदिर स्थित है। मंदिर परिसर में उसी काल का प्राचीन कुआं भी है। जो आज भी विद्यमान है और इस इतिहास को जीवंतता प्रदान किये हुए है।
संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र बताते हैं कि संकटमोचन में ही गोस्वामी तुलसी दास को पहली बार हनुमानजी का साक्षात्कार हुआ था। गोस्वामी तुलसी दास को जिस स्वरूप में हनुमानजी ने दर्शन दिया था वही विग्रह संकटमोचन मंदिर में विद्यमान है। संकटमोचन मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। पहले यहां अस्सी नदी का तट हुआ करता था। गोस्वामी तुलसी दास ने काशी में कई स्थानों पर अनेक हनुमान के विग्रहों की स्थापना की। इनके मंदिर शहर के कई स्थानों पर आज भी विराजमान हैं। इसमें प्रमुख मंदिरों में संकटमोचन मंदिर भी है। हनुमानजी की ही वजह से गोस्वामी तुलसी दास को भगवान श्रीराम के दर्शन हुए। वे बताते हैं कि भगवान श्रीराम परम ब्रह्म परमेश्वर हैं। भगवान श्रीराम बहुत ही सरल हैं। आज जनमानस भगवान श्रीराम के चरित्र को समझ नहीं पा रहा है। वह सभी में विराजमान हैं। केवल हमारे में ही नहीं है। भगवान श्रीराम जन-जन के नायक हैं। बनारस शहर एक बेजोड़ शहर है। यहां पर सभी आपसी मेल मिलाप व सौहार्द्र पूर्वक रहते हैं।

देश के विभिन्न कोनों से आते हैं दर्शनार्थी
संकटमोचन मंदिर में वैसे तो रोज हजारों श्रद्धालु हनुमानजी का दर्शन-पूजन करने के लिए हाजिरी लगाते हैं। यहां पर देश के विभिन्न कोनों से न जाने कितने श्रद्धालु आते हैं। मंगलवार एवं शनिवार को मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है। भोर में चार बजे मंगला आरती के पश्चात नित्य मंदिर का पट खुलता है। अपराह्न में भोग आरती के पश्चात मंदिर का पट बंद हो जाता है। पुन: एक घंटे के बाद मंदिर का पट खुलता है। जिसके बाद रात्रि शयन आरती तक हनुमान जी का दर्शन का क्रम चलता रहता है। यहां पर नरक चतुर्दशी और चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनायी जाती है। यहां पर प्रसिद्ध संकटमोचन समारोह आयोजित हो रहा है। इस समोराह में देश-विदेश के जाने माने संगीत साधक व कलाकार हनुमत दरबार में गायन-वादन व नृत्य के जरिये अपनी हाजिरी लगाते हैं। संकटमोचन मंदिर की खासियत यह है कि हनुमत दरबार में आने वाले हर भक्त को एक समान आदर व सम्मान मिलता है।

यहां हनुमानजी स्वयं करते हैं कथा का श्रवण
- 6 से 9 अप्रैल तक संकट मोचन हनुमान का होगा विशेष श्रृंगार, सजेगी झांकी व आरती
संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र ने बताया कि संकटमोचन मंदिर में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा 6 अप्रैल को हनुमत जयंती महोत्सव मनायी जायेगी। इस अवसर पर संकटमोचन हनुमान जी का विशेष शृंगार व झांकी, आरती तथा पूजन होगा। शहनाई वादन से ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक, रामचरित मानस पाठ, संकीर्तन, सुंदरकांड का पाठ तथा रात्रि पर्यन्त नगर के विभिन्न रामायण मंडलियां रामचरित मानस पाठ करेंगी। इस बार हनुमान जयंती पर सार्वभौम रामायण सम्मेलन 7 से 9 अप्रैल तक आयोजित है। इसमें देश के प्रसिद्ध मानस वक्ताओं की कथा सायंकाल पांच से रात्रि दस बजे तक आयोजित है। इसमें मुख्य रूप से पं. उमाशंकर शर्मा (बरेली), रामाकांत चतुर्वेदी (हनुमानगढ़)पं. नीरज मिश्र (छपरा) आदि है। इस साल सार्वभौम रामायण सम्मेलन का 100वां अधिवेशन है। प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र बताते हैं कि रामचरित मानस कथा का स्वरूप संकटमोचन मंदिर की ही देन है। यहां पर हनुमानजी स्वयं कथा का श्रवण करते हैं। इस दिन आरती सूर्योदय से पहले की जाती है।
लोग छुट्टियां लेकर मानस सुनने आते हैं
प्रो. मिश्र बताते हैं कि जब पहले रामचरित मानस हुआ करता था तब लोग पेड़ पर चढ़ कर इसका श्रवण करते थे। काफी लोग तो देश के कोने-कोने से छुट्टियां लेकर रामचरित मानस पाठ सुनते के लिए आते हैं। कहा कि यह शहर बेजोड़ शहर है लेकिन आज जो यह दिख रहा है वह है नहीं। हम तो सिर्फ महामना पं. मदन मोहन मालवीय को जानते हैंं, जिन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के माध्यम से हर कुछ दिया।