Haryana Assembly Election: हरियाणा में कांग्रेस को सरकार बनाने में करारी हार का सामना करना पड़ा, बावजूद इसके कि सरकार के खिलाफ माहौल था। कांग्रेस की इस हार के कई कारण और साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं, जिनमें से प्रमुख गुटबाजी और चुनावी रणनीति में खामियां रही हैं। आइए जानते हैं कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण:
Haryana Assembly Election: जाट वर्सेस अन्य बिरादरी में ध्रुवीकरण का असर
हरियाणा में जाट समुदाय के खिलाफ अन्य 35 बिरादरियों का ध्रुवीकरण हुआ, जिससे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को बड़ा लाभ मिला और वह लगातार तीसरी बार राज्य में सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। कांग्रेस के टिकट वितरण और बागी उम्मीदवारों की भूमिका ने भी पार्टी की हार को मजबूत किया।
गुटबाजी से कमजोर पड़ी कांग्रेस
लोकसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने वाली कांग्रेस विधान सभा चुनाव में बिखरी हुई नजर आई। टिकट बंटवारे में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा रहा, जिससे कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे बड़े नेता नाराज हो गए। सुरजेवाला केवल कैथल में अपने बेटे को जिताने में व्यस्त रहे, जबकि कुमारी शैलजा चुनाव प्रचार में देर से शामिल हुईं, जिससे पार्टी की एकता कमजोर पड़ी।
प्रदेश संगठन की कमी
कांग्रेस का हरियाणा में 2009 के बाद से प्रदेश स्तर का संगठनात्मक ढांचा नहीं बन पाया। 2014 में कोशिशें की गईं, लेकिन बूथ और जिला स्तर पर कमिटी का गठन गुटबाजी के कारण नहीं हो सका। 2022 में भी प्रयास हुए, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। इस वजह से कांग्रेस पिछले 15 सालों से प्रदेश में संगठनहीनता का सामना कर रही है।
आप के साथ गठबंधन न होना
कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की वजह से करीब 12 सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। बल्लभगढ़, अंबाला कैंट, बहादुरगढ़, और अन्य सीटों पर बागी उम्मीदवारों ने पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचाया। साथ ही, आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवारों ने सात सीटों पर कांग्रेस के हार के अंतर से अधिक वोट हासिल किए, जो गठबंधन की स्थिति में कांग्रेस के पक्ष में आ सकते थे।
अशोक तंवर की एंट्री से नहीं मिला फायदा
चुनाव से एक दिन पहले बीजेपी से कांग्रेस में आए अशोक तंवर की वापसी से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। तंवर के आने से जाट वोट और दलित वोट दोनों ही कांग्रेस से छिटक गए। तंवर सिरसा से आते हैं, लेकिन उनके आने से कांग्रेस को सिरसा में कोई लाभ नहीं हुआ।
दलित वोट बैंक कांग्रेस से दूर
कुमारी शैलजा और अशोक तंवर, जो दलित समुदाय से आते हैं, अपने समुदाय के वोट को कांग्रेस में लाने में असफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में नाकाम रही, जिससे पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
Highlights
कुल मिलाकर, गुटबाजी, कमजोर संगठन, और रणनीतिक चूकों ने कांग्रेस की हार में अहम भूमिका निभाई।