Varanasi: श्री काशी विश्वनाथ धाम में रंगभरी एकादशी का पर्व परंपरागत उल्लास और भव्यता के साथ मनाया गया। इस शुभ अवसर पर भगवान विश्वनाथ और माता गौरा की रजत प्रतिमा को फूलों से सजी पालकी में विराजमान कर शोभायात्रा निकाली गई। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं ने फूलों की होली खेली और अबीर-गुलाल उड़ाकर रंगोत्सव की खुशियां साझा कीं।

पालकी यात्रा ने मोहा भक्तों का मन
गोधूलि वेला में मंदिर चौक से डमरू की गगनभेदी ध्वनि और शंखनाद के साथ श्री विश्वनाथ और माता गौरा की पालकी यात्रा निकाली गई। श्रद्धालुओं ने हर-हर महादेव और बम-बम भोले के जयघोष के साथ यात्रा का स्वागत किया। पालकी में भगवान विश्वनाथ और माता गौरा की रजत प्रतिमा अद्वितीय आभा बिखेर रही थी, जिसे देख भक्तगण भाव-विभोर हो उठे। यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा की गई, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।

शोभायात्रा मंदिर प्रांगण से होती हुई गर्भगृह पहुंची, जहां वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। इस पावन क्षण को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु धाम में उमड़े और इस अलौकिक दृश्य के साक्षी बने।
पूजा-अर्चना और उत्सव की शुरुआत
रंगभरी एकादशी के शुभ अवसर पर सुबह से ही मंदिर में पूजन-अर्चन प्रारंभ हो गया था। मंदिर न्यास की ओर से परंपरा का निर्वहन करते हुए श्री काशी विश्वनाथ महादेव और माता गौरा की शास्त्रानुसार पूजा संपन्न कराई गई। भगवान को वस्त्र, चंदन, भस्म, पुष्प, अबीर, गुलाल, मिष्ठान और अन्य पूजन सामग्री अर्पित की गई। इसके पश्चात श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की रजत प्रतिमा को मंदिर चौक पर लाया गया, जहां भक्तों ने दर्शन कर अपने आराध्य पर अबीर-गुलाल और फूलों की पंखुड़ियां अर्पित कीं।

श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनकर भावविभोर हो उठे। वे अबीर-गुलाल खेलते हुए भक्तिरस में डूब गए और धार्मिक उल्लास का आनंद लिया। मंदिर न्यास की ओर से श्रद्धालुओं का स्वागत पूरे आदर और आत्मीय भाव से किया गया।
धाम में भक्ति और उल्लास का संगम
रंगभरी एकादशी पर पूरा श्री काशी विश्वनाथ धाम भक्तिमय माहौल में डूबा रहा। बाबा विश्वनाथ के दर्शन को उमड़े भक्तों ने रंगों के इस पावन पर्व में अपनी श्रद्धा अर्पित की। मंदिर परिसर गुलाल और पुष्पों की सुगंध से महक उठा, और चारों ओर भक्तिरस की अलौकिक छटा बिखर गई।

श्रद्धालुओं ने महादेव और माता गौरा के साथ इस उत्सव को पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया। मंदिर न्यास ने काशीवासियों और श्रद्धालुओं से अनुरोध किया था कि वे इस परंपरा में सम्मिलित होकर अपनी सदियों पुरानी संस्कृति को आगे बढ़ाएं। भक्तों ने भी इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर पारंपरिक उल्लास और उत्साह के साथ पर्व को सफल बनाया।
परंपरा का निर्वहन और भक्तों का समर्पण
रंगभरी एकादशी का यह उत्सव भगवान शिव और माता गौरा के विवाह उपरांत काशी में प्रथम आगमन की स्मृति में आयोजित किया जाता है। इसे रंगों और उल्लास का पर्व भी कहा जाता है, जिसमें भगवान शिव के भक्त उत्साहपूर्वक शामिल होकर भक्ति और आनंद का अनुभव करते हैं।

इस अवसर पर मंदिर न्यास ने पूरे आयोजन को पारंपरिक रूप में संपन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। न्यास ने सुनिश्चित किया कि काशी की इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाए।
Highlights
इस आयोजन के दौरान पूरे क्षेत्र में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा, जिन्होंने अपने आराध्य को प्रेम, भक्ति और समर्पण भाव से नमन किया। रंगभरी एकादशी का यह भव्य आयोजन काशी की समृद्ध परंपरा और धार्मिक उत्साह का जीवंत प्रमाण बना।
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