- नेता और जनता के बीच की दीवार तोड़ने वाला हो
- महापौर को चाहिए कि वह घर-घर सम्पर्क कर समस्याओं को जाने और दूर करें
- विकास कार्य कर दिल में उतरने व वादों को धरातल पर उतारने जज्बा होना चाहिए
- अपने कार्यकाल में मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने का जज्बा रखने वाला हो मेयर
जितेंद्र श्रीवास्तव
वाराणसी। सर्द मौसम में चुनाव का बाजार गर्म है। ऐसा नहीं है कि चुनावी प्रचार के लिए आइटम खरीदे जा रहे हैं। बल्कि चाय-पान की अड़ियों, गलचऊर के अड्डों पर इन दिनों एक ही चर्चा है, वह है शहरी निकाय चुनाव की। ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में फंसे पेंच के चलते तिथि की घोषणा होने में विलंब के बावजूद मेयर और पार्षद को लेकर रायशुमारी करने वालों की इस शहर में कमी नहीं है और हो भी यहीं रहा है। इसके बीच ‘जनसंदेश टाइम्स’ की तरफ से शुरू किये गये कॉलम ‘काशी का मेयर कैसा हो…?’ को बनारस की जनता ने हाथों-हाथ लिया है और इस विषयक को लेकर समाचार पत्र दफ्तर में रोजाना दर्जनों संदेश आ रहे हैं। काशी की अलमस्त जनता का मानना है कि हमें ऐसा महापौर मिले, जो नेता और जनता के बीच की दीवार को तोड़ने वाला हो। दीवार से मतलब दूरी की खाई पाटने वाला हो। रोज न सहीं, सप्ताह में तो एक बार जनता से मिले। घर-घर सम्पर्क करें और अपने शहर के नागरिकों के दुख-दर्द को समझे, उसे दूर करने का प्रयास करें। विकास कार्य कर दिल में उतरने और वादों को धरातल पर उतारने का जज्बा रखने वाला ही इस शहर का मेयर होना चाहिए।
भूतभावन भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी अपनी मौलिकता के लिए विख्यात हैं। हमारा मेयर ऐसा हो, जो वास्तविक रूप से काशी को तो जानता ही हो। साथ-साथ उसकी सोच आधुनिक विकास की हो। वो काशी को और सुंदर, सुविधायुक्त बनाने के लिये शहर की मौलिकता को बरकरार रखते हुए नए विकास के आयाम रखे। शहर की जाम समस्या दूर कराने, साफ-सफाई व्यवस्था दुरुस्त कराने, कूड़े के अंबार का निस्तारण कराने, समुचित पथ-प्रकाश कराने, जीण-शीर्ण गलियों व सम्पर्क मार्गों का निर्माण कराने, शुद्ध पेजयल उपलब्ध करााने आदि मूलभूत विकास कार्यों का मास्टर प्लान बनाकर उसे प्राथमिकता पर लेते हुए अपने कार्यकाल में पूरा करने का जज्बा रखने वाला हो। काशी का मेयर केवल शहर का ही प्रतिनिधित्व नही करता अपितु एक संस्कृति का भी प्रतिनिधि करता है। ऐसे में काशी का मेयर वाकपटुता के साथ-साथ सुशिक्षित एवं सकरात्मक सोच का भी होना चाहिए।

- ज्ञानेंद्र नाथ शर्मा, एडवोकेट, ईश्वरगंगी।
निश्चित रूप से महापौर अपने शहर का प्रथम नागरिक होता है। इस पद में कार्यकारी व वित्तीय शक्तियां निहित होती है। लिहाजा, हमारा महापौर ऐसा होना चाहिए, जो दूरदृष्टि रखता हो, नेतृत्व की क्षमता हो, उसके विचार में शहर को विकसित करने की कल्पनाशीलता हो। बनारस को इतना विकसित करें कि विकास के पैमाने पर विश्व फलक पर स्थापित हो जाए। शहर की दो मुख्य पहलू है। वह है साफ-सफाई और सुचारू आवागमन सुनिश्चित करना। अभी तक जितने भी विकास के कार्य हुए हैं, नाकाफी है। नागरिक सुविधा के दृष्टिकोण से अभी तक जितने भी कार्य हुए हैं, वे फटे में पैबंद के समान है। महापौर ऐसा हो, जो अपनी कार्यशैली से विकास की बयार बहा दें और उसमें आम आदमी सहज, सरल और तनावमुक्त मानव जीवन जी सके। हमारा महापौर सत्यनिष्ठ, ईमानदार, कर्मठ और दूरदर्शी होगा, तभी काशी और काशीवासियों का कल्याण होगा।

- डॉ. विजय नारायण सिंह, वरिष्ठ होम्योपैथ चिकित्सक।
महापौर ऐसा होना चाहिए, जो नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के समूल को समाप्त करने का जज्बा रखता हो। महापौर पद पाने के बाद सिर्फ लोकार्पण, शिलान्यास या किसी आयोजन का आतिथ्य स्वीकार कर खुद को गौरवान्वित होने के बजाय काशी की मूलभूत समस्याओं को दूर कर विकास की गंगा बहाये और यहां के नागरिकों को गौरवान्वित करें। ऐसा मास्टर प्लान बनाए कि रोज न सहीं, हफ्ते में एक बार तो अवश्य किसी न किसी वार्ड के सभी मोहल्ले का भ्रमण करें। वहां के वाशिंदों के दुख-दर्द-समस्या को सुनें और नोट करें। फिर, नगर निगम के अलावा अन्य विभागों के अफसरों पर लगात कसते हुए उसे पूरा कराने का काम करे। काशी का महापौर ऐसा होना चाहिए जो पूरे समाज में बदलाव का संकल्प जगा सके और उसे व्यावहारिक रूप भी दे पाए।

- संजय सिंह, महामंत्री, दवा विक्रेता समिति, टकटकपुर।
काशी का महापौर ऐसा होना चाहिए, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह विकास की गंगा बहाने की सोच रखे। शहर बड़ा है और क्षेत्रफल में भी इजाफा हुआ है। लेकिन मास्टर प्लान के तहत यदि महापौर विकास का कार्य करें तो पांच साल का समय कम नहीं होता है। इसके लिए महापौर को जाति, वर्ग, क्षेत्र, धर्म, सम्प्रदाय आदि से परे हटकर काम करना होगा। पार्टी की सोच पर चलने के साथ शहर का प्रथम नागरिक होने के नाते हरेक नागरिक की समस्याओं को दूर करने का जज्बा रखना होगा। उसे आम लोगों को यकीन दिलाना होगा कि वह उन्हीं के बीच से एक है। नेता और जनता के बीच की दीवार तोड़ने का जज्बा रखने वाला हो। उसे ऐसा सुंदर उदाहरण बनना होगा।

- विजय कपूर, अध्यक्ष पूर्वाचल मील एसोसिएशन।
प्रथम नागरिक के नाते मेयर में काशी की झलक परिलक्षित होनी चाहिए। कर्मठ, विचारवान, काशी की रीति-नीति-संस्कृति का ज्ञाता होना चाहिए। बनारसी मस्ती के प्रति नरम दृष्टिकोण रखने वाला हो तो दूसरी तरफ अतिक्रमण, स्वच्छता, पथ-प्रकाश, प्राथमिक शिक्षा व सामान्य निर्माण में सख्त रवैया अपनाने वाला हो। ऐसा तभी संभव है जब सरकार 74वां संविधान संशोधन को पूर्णरूपेण लागू करें, ताकि प्रशासनिक व वित्तीय अधिकार प्राप्त मेयर निगरानी और अगवानी के राजनीतिक गुलदस्ते की छवि से बाहर आकर शहरी सरकार का सपना पूरा कर सकें। महापौर निश्चित रूप से शहर का प्रथम नागरिक होता है, लेकिन केंद्र और प्रदेश सरकार को ऐसे नागरिक को हर तरह की शक्तियों से लैस करना होगा वरना फिर पांच साल गुजर जायेंगे और विकास की कहानी ‘ढाक के तीन पात वाली’ कहावत के समान कही और सुनी जाएगी।

- संजीव सिंह बिल्लू, अध्यक्ष, नगर उद्योग व्यापार मंडल।
विश्व की पुरातन नगरी काशी का मेयर ऐसा होना चाहिए, बने जो व्यापार के साथ व्यापारी समाज को फिजूल के टैक्स की देनदारी से बचावे। सभी छोटे बड़े व्यवसायियों को खुल कर कारोबार करने में अपना सहयोग व सुरक्षा दे। महापौर ऐसा होना चाहिए, जो धर्म-जाति-भाषा-वर्ग •ोद आदि के बंधन को तोड़ते हुए एक चश्मे से सभी को देखें। उसके लिए हर व्यक्ति समान हो। जो जनता के प्रति जवाबदेह हो। ऐसा महापौर न हो, बल्कि जनता का प्रतिनिधि हो। जन भागीदारी पर गंभीरता से विचार करता हो और उस दिशा में काम करता भी नजर आए। हमारे महापौर की जवाबदेही महज किसी समारोह का आतिथ्य स्वीकार करने, भाषण देने या शिलान्यास-उद्घाटन करने, किसी बड़े नेता की आगवानी करने, बयानबाजी करने तक सीमित न हो, बल्कि जो वह कह रहा हो उसे करके दिखाए।

- शैलेन्द्र सोनकर, युवा व्यापारी, पांडेयपुर।
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निकाय चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। हालांकि अभी चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। लेकिन विभिन्न पार्टियों में संभावित प्रत्याशियों की दावेदारी की कवायद परवान चढ़ रही है। भारतीय लोकतंत्र में उम्मीदवारों का चयन पार्टियों द्वारा होता है। वो जिसे टिकट देती है, वही चुनावी जुंग में ताल ठोकते हैं। पार्टियों के चयन का अपना पैमाना होता है, उनकी तवज्जो सिर्फ जिताऊ कैंडिडेट पर होती है। इस प्रक्रिया में मतदाता की राय कोई मायने नहीं रखती। मेयर प्रत्याशी के गुण दोष को लेकर लोग क्या सोचते हैं? इसे सामने लाने के मकसद से जन्संदेश टाइम्स ने ‘अपना मेयर कैसा हो?’ श्रृंखला शुरू की है।
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