भारतीय नौसेना की ताकत को बढ़ाने की दिशा में IIT-BHU ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने डीआरडीओ के सहयोग से ऐसा स्वदेशी इलेक्ट्रोलाइट फ्यूल विकसित किया है, जो अब तक अमेरिका से आयात किया जाता था। यह फ्यूल खासतौर पर पनडुब्बियों में बिजली उत्पादन के लिए उपयोग होगा, जिससे न सिर्फ देश की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि लंबे समय तक जल के भीतर पनडुब्बियों की संचालन क्षमता भी बेहतर होगी।
भारतीय नौसेना की पनडुब्बियों को लंबे समय तक पानी के नीचे ऑपरेट करने के लिए पावर बैकअप की जरूरत होती है। अब तक बैटरियों या अमेरिका से मंगाए जाने वाले नेफियान इलेक्ट्रोलाइट फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता था, जो सीमित क्षमता वाला और महंगा था। लेकिन अब IIT-BHU के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया इलेक्ट्रोलाइट फ्यूल तैयार किया है, जिससे सिर्फ फ्यूल डालते ही बिजली पैदा की जा सकेगी — वो भी बिना किसी चार्जिंग सिस्टम के।
अमेरिकी विकल्प से बेहतर है भारतीय फ्यूल
इस फ्यूल को विकसित करने वाले प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने बताया कि यह नया इलेक्ट्रोलाइट नेफियान मेंब्रेन की तुलना में अधिक टिकाऊ और तापमान सहनशील है। नेफियान जहां 100 डिग्री सेल्सियस के बाद काम करना बंद कर देता था, वहीं नया फ्यूल 140 डिग्री तापमान में भी बेहतर प्रदर्शन करता है। उन्होंने मेटल ऑक्साइड फ्रेमवर्क के आधार पर यह तकनीक विकसित की है, जिसमें हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग ईंधन के रूप में होता है।
IIT-BHU: दो साल पुराना प्रोजेक्ट अब बन गया है हकीकत
प्रोफेसर प्रभाकर ने बताया कि यह प्रोजेक्ट उन्हें दो साल पहले डीआरडीओ से मिला था। इसके तहत उन्होंने एक इंडिपेंडेंट पावर यूनिट का प्रोटोटाइप तैयार किया, जिसे अब पनडुब्बियों (IIT-BHU) में प्रयोग किया जाएगा। पहले यह प्रयोग लैब में सफलतापूर्वक पूरा किया गया और अब इसे वास्तविक संचालन के लिए तैयार किया जा रहा है।
पर्यावरण के लिए भी वरदान
नया इलेक्ट्रोलाइट फ्यूल न केवल देश को आयात निर्भरता से मुक्त करेगा, बल्कि यह पूरी तरह से ग्रीन टेक्नोलॉजी आधारित है। इसमें किसी भी प्रकार के हानिकारक रसायन का उपयोग नहीं किया गया है। प्रयोग के दौरान इस्तेमाल किया गया पानी तक पीने योग्य रहता है, जो इसे एक पर्यावरण के अनुकूल समाधान बनाता है।
प्रोफेसर प्रभाकर ने बताया कि यह तकनीक सिर्फ पनडुब्बियों तक सीमित नहीं रहेगी। आने वाले समय में इसका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भी किया जा सकेगा। इससे भारत में हरित ऊर्जा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन आने की संभावना है।
जहां पहले पनडुब्बियों के पावर बैकअप के लिए विदेशी तकनीकों पर निर्भर रहना पड़ता था, वहीं अब भारत के पास अपनी खुद की, और उससे भी बेहतर टेक्नोलॉजी उपलब्ध है। IIT-BHU का यह कदम रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।