Ganga Mahotsav: देव प्रबोधिनी एकादशी के पावन पर्व पर मां जाह्नवी का सुरम्य तट सुर, संगीत और नृत्य का साक्षी बना। ख्यातिलब्ध कलाकारों की हृदय के तारों को झंकृत करने वाली प्रस्तुतियों से सांस्कृतिक निशा परवान चढ़ी। मां गंगा की कल- कल करती धारा पर चांद की रोशनी की अठखेलियों के बीच कण-कण में काशी, रस-रस में बनारस की थीम पर आधारित काशी गंगा महोत्सव भव्य आगाज शनिवार को शाम राजघाट पर हुआ। महोत्सव की पहली सांस्कृतिक निशा में कलाकारों के साथ संगतकारों ने भी चार चांद लगाया। सुर- ताल और वादन की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने ऐसा शमां बांधा की श्रोता टस से मस नहीं हुए।

Ganga Mahotsav: उत्तरवाहिनी मां गंगा के तट पर सुर संध्या
काशी गंगा महोत्सव (Ganga Mahotsav) का उद्घाटन जनप्रतिनधियों व अधिकारियों ने दीप प्रज्जवलित कर किया। कार्यक्रम की रूपरेखा और महोत्सव के महत्व पर चर्चा के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला आरंभ हुई जो रात्रि तक प्रवाहमान रही। जनप्रतिनिधियों ने कहा कि काशी की ऐसी महिमा है कि यहां पर साल के 365 दिन उत्सव होते हैं। उत्तरवाहिनी मां गंगा के तट पर आयोजित हो रहा काशी गंगा महोत्सव आज देश-विदेश में अपना पहचान बन चुका है।


देश- विदेश से लोग गंगा महोत्सव का लुत्फ उठाने आते हैं। चार दिवसीय गंगा महोत्सव (Ganga Mahotsav) के बाद होने वाली देव दीपावली आज पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त कर चुकी है। काशी गंगा महोत्सव में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से स्थानीय एवं उभरते हुए कलाकारों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन का एक बड़ा मंच मिलता है। इस दौरान जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्य, जिलाधिकारी सत्येंद्र्र कुमार, नगर आयुक्त हिमांशु नागपाल, संयुक्त निदेशक पर्यटन दिनेश सिंह आदि उपस्थित रहे।

युगल कथक से पहली निशा का आगाज
पहली सांस्कृतिक निशा का आगाज युगल कथक से हुआ। पहली प्रस्तुति देते हुए ख्यातिप्राप्त पं. माता प्रसाद मिश्र व पं. रविशंकर मिश्र के युगल कथक नृत्य ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। इसके बाद कविता मोहंती ने ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया। विदुषी श्वेता दुबे ने अपनी सधी गायकी से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

इसके बाद कमला शंकर का स्लाइड गिटार वादन, डा. ऋषि मिश्र का शास्त्रीय गायन, देविका देवंद्र एस मंगलामुखी का कथक, डा दिवाकर कश्यप व डा. प्रभाकर कश्यप के गायन ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद शवि शर्मा और उनके ग्रुप के ब्रज लोकनृत्य व संगीत से काशी के गंगा घाट (Ganga Mahotsav) पर ब्रजलोक सा नजारा दिखने लगा। पंडित नवल किशोर मल्लिक के शास्त्रीय गायन से पहली निशा ने विराम लिया।

