बॉलीवुड फिल्मों की जगह अब ओटीटी ने ले ली है। दर्शक अब सिनेमाघरों में जाने से बच रहे हैं। हालिया रिलीज़ दृश्यम-2 ने दर्शकों का ध्यान थिएटर की ओर खींचा। लेकिन अभी भी बहुत से लोग इसके ओटीटी रिलीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं। पिछले एक या दो साल में जैसे फिल्मों के बायकॉट का प्रचलन बढ़ सा गया हुई। अब फ़िल्में केवल मोबाइल और एंड्राइड एप्लीकेशन के दम पर रह गई हैं।
आज बॉलीवुड के साथ-साथ भले ही टॉलीवुड (तेलुगू और बांग्ला), कॉलीवुड (तमिल), मॉलीवुड (मलयालम), पॉलीवुड (पंजाबी) का बोलबाला बढ़ रहा हो, लेकिन असल पावर फिल्म के दर्शकों के हाथ में है, क्योंकि हाउसफुल का बोर्ड ही फिल्मों का भाग्य विधाता है।
लोग अब फिल्मों को ओटीटी प्लेटफार्म पर ही देखना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब सिनेमा हॉल्स में टिक के लाइन लगती थीं। लोगों को टिकट काउंटर से टिकट नहीं मिलता तो वे ब्लैक में टिकट लेकर फिल्म देखने जाते थे। दिलीप कुमार, राजेश खन्ना जैसे बड़े स्टार्स की फिल्म रिलीज होने पर ऑडिएंस को काबू करना मुश्किल होता था। सिंगल स्क्रीन होने की वजह से एक बार में एक ही शो होता, यानी दिनभर में 4 से 5 शो। शनिवार और रविवार को एडवांस बुकिंग ना कराने वालों को हाउसफुल के बोर्ड के दर्शन होते। ऐसे में ब्लैक टिकट दबाकर बिकते। 50 रुपए का टिकट 200-300 रुपए तक में बिकता था। उस दौरान फिल्मों के लिए मेहनत भी जबरदस्त होती थी। आज हम उन्हीं फिल्मों और उनसे जुडी घटनाओं को ताजा करेंगे।
मुग़ल-ए-आजम
दिलीप कुमार साहब की ‘मुग़ल-ए-आजम’ एक बड़े लेवल की फिल्म है। इस फिल्म से जुडी सबसे खास बात यह है कि इसे बनाने में 18 साल लगे थे। ‘मुगल-ए-आजम’ जैसी फिल्म को सन 1960 में ही अलग-अलग भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी और तमिल) में शूट किया गया था। इसलिए इस फिल्म को बनाने में 18 साल लगे, क्योंकि इस फिल्म का मकसद हर तरह की ऑडिएंस जुटाना था। इस फिल्म से जुडी सबसे बड़ी घटना यह है कि जब फिल्म में अकबर बने पृथ्वीराज कपूर चिल्लाते तो हॉल में बैठे पुरुष भाग जाते और महिला-बच्चे रोने लगते।

देवानंद की फिल्मों के टाइटल
फिल्म समीक्षक चंद्रमोहन शर्मा ने बताया कि सदाबहार हीरो देवानंद अपने फिल्मों के टाइटल अखबारों की हेडलाइंस से लेते थे ताकि उनकी ऑडिएंस फिल्म से जुड़ा महसूस कर सके। उन्होंने ‘काला बाजार’ और ‘ज्वैलथीफ’ फिल्मों के नाम ऐसे ही रखे।

ट्रेन के डर से लोग सिनेमा हॉल से भागे
1896 में फ्रांस में 50 सेकेंड की L’Arrivée d’un train en gare de La Ciotat (Arrival of a Train) नाम की साइलेंट फिल्म शोकेस की गई। पर्दे पर जब खामोशी से ब्लैक एंड वाइट ट्रेन तेजी से दौड़ती नजर आई तो लोग हॉल से भागने लगे। उस समय हॉल में अफरा-तफरी मच गई थी।

दर्शकों ने स्क्रीन पर पैसे फेंके
मुगल-ए-आजम हिसा चर्चित किस्सा फिल्म ‘जय संतोषी मां’ के साथ भी हुआ। जब ‘जय संतोषी मां’ फिल्म आई तो आरती शुरू होने पर दर्शकों ने स्क्रीन पर पैसे फेंके। उसके बाद जब फिल्म में देवी प्रकट हुईं तो लोग अपनी सीट पर हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
