Loksabha Election: लोकसभा चुनाव में पहले रोड शो का चलन नहीं हुआ करता था। पहले रोड शो से ज्यादा जनसभाओं को महत्व दिया जाता था। चुनाव में नेताओं की जनसभाओं का महत्व भी ज्यादा था क्योंकि मतदाता अपने-अपने मनपसंद के नेता को सुनना ज्यादा पसंद करते थे। चुनाव के जानकारों की मानें तो रोड शो की शुरुआत 2000 के दशक में हुई। जब सोनिया गांधी ने चुनाव प्रचार [Loksabha Election] के दौरान गाड़ियों का प्रयोग करना शुरू किया। धीरे-धीरे चुनाव के दौरान और भी सारी पार्टियो के राजनेता रोड शो करने लगे। रोड शो में दिग्गज राजनेताओं के अलावा सेलिब्रेटी भी आने लगे। कई पार्टियों ने तो रोड शो का दारोमदार सेलिब्रेटी को ही सौंप दिया।
जनता भी अपने बीच सेलिब्रेटी को पाकर मन ही मन खुश होती रही। लगभग हर पार्टी के लोग इसमें लगे रहे। पहले जनसभाओं के साथ ही नुक्कड़ सभाएं [Loksabha Election] भी खूब हुआ करती थी। हर चौराहे पर किसी न किसी नेता की नुक्कड़ सभा होती रहती थी। हर नुक्कड़ सभा में उस इलाके के लोग शामिल होकर राजनेताओं के भाषणों को ग्रहण करते थे। नुक्कड़ सभाओं में पहले नेताओं के अलावा सेलिब्रेटी भी आते थे।
चुनाव में एक ऐसा भी दौर देखने को मिला जब फिल्मों में काम करने वाले एक्टर व एक्ट्रेस भी नुक्कड़ सभाओं मे शिरकत करने लगे। मतदाता [Loksabha Election] भी अपने नेताओं को ज्यादा सुनने के बजाय सेलिब्रेटी को सुनना ज्यादा पसंद करते थे। पहले कोई भी चुनावी जनसभा या फिर नुक्कड़ सभा बहुत ही आसान तौर पर हो जाया करता था। जनसभाओं व नुक्कड़ सभाओं के लिए किसी परमिशन की जरुरत नहीं पड़ती थी। लेकिन अब परिमशन लेना पड़ता है।
पहले तो लोग कहीं भी नुक्कड़ सभा कर लेते थे। अस्सी की दशक के बाद चुनाव में जनसभाओं व नुक्कड़ सभाओं की भरमार हुआ करती थी। अब तो जनसभाओं और नुक्कड़ सभाओं [Loksabha Election] की बजाय लोग सोशल मीडिया को अपने प्रचार का साधन बना रखा है। अब तो सोशल मीडिया पर ही चुनावी रणनीति चल रही है। लोग सोशल मीडिया पर एक-दूसरे पर व्यंग्य बाण भी चला रहे हैं। चुनाव में सोशल मीडिया की भी भूमिका चल रही है।
Loksabha Election: बेनियाबाग की जनसभा बन गई थी ऐतिहासिक
31 दिसम्बर 1979 की बेनियाबाग की जनसभा ऐतिहासिक जनसभा के रूप में जानी जाती है। बताते हैं कि बेनियाबाग के विशाल मैदान में इंदिरा गांधी की जनसभा थी। पूरा बेनियाबाग इंदिरा गांधी को सुनने के लिए खचाखच भरा था। 31 दिसम्बर के दिन साल का आखिरी दिन ठंड बहुत ज्यादा थी। बेनियाबाग [Loksabha Election] के मैदान में पूरी रात बैठ कर लोग इंदिरा गांधी के आने की प्रतीक्षा करते रहे। लेकिन इंदिरा गांधी नहीं आयीं। इस पर उस समय चुनाव लड़ रहे पं. कमलापति त्रिपाठी ने ठंड को देखते हुए बेनियाबाग में बैठे लोगों से बल्लियों को तोड़ कर उसे तापने को कहा।
आखिरकार लोगों ने बल्लियों को निकाल कर उसे आग के हवाले कर दिया और खुद को ठंड से बचाया। इंदिरा गांधी को सुनने के लिए जनता पूरी रात उसी करह बैठी रह गई। आखिरकार 14 घंटे बाद बेनियाबाग मैदान में इंदिरा गांधी पहुंची और विलंब से आने के लिए जनता से माफी मांगते हुए जनसभा [Loksabha Election] को संबोधित किया। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति विभाग में रहे पूर्व प्रो. सतीश कुमार राय का कहना है कि उस समय बेनियाबाग के मैदान में •ाीषण ठंड में बैठ कर जनता इंदिरा गांधी का इंतजार करती रही।
इंदिरा गांधी भी जनसभा में स्नान किये बिना ही पहुंची थीं। बाद में वह औरंगाबाद हाउस पं. कमलापति त्रिपाठी के घर गईं जहां पर स्नान करने के बाद भजन किया। उस समय उन दिनों प्रसिद्ध शायर व कवि बेधड़क बनारसी ने इंदिरा गांधी [Loksabha Election] पर कविता की चंद पंक्तियां लिख दी- आपके के इंतजार में हम एक साल तक बैठे रहे। क्योंकि इंदिरा गांधी को 31 दिसम्बर 1979 को आना था लेकिन वह रात भर नहीं आयी। दूसरे दिन वह 14 घंटे विलंब से पहुंची थी। इसके बाद ही सन व तारीख बदल कर एक जनवरी 1980 हो गया था।