- कार्तिक माह पर्यंत घर घर पूजी जाती है भगवान नारायण की प्रिय तुलसी
- चार माह शयन के बाद प्रोबिधिनी एकादशी पर जागते हैं जगत के पालनहार भगवान विष्णु
- गंगा के तट पर कार्तिक माह में भगवान बिन्दु माधव और तुलसी छोड़ने का है महात्म्य
गंगा का किनारा, पंचगंगा घाट की सीढ़ियों सहित ऊपर बिन्दु माधव मंदिर के आसपास पूजन करती महिलाओं की टोली से बिना ढोल मंजीरा के बीच एक ऐसी लय, जस जस तुलसा लेत हिलोरा तस तस ठाकुर करें कलेवा, को सुन बरबस ही लोगों का ध्यान उस तरफ आकर्षित हो जा रहा था। पास जाकर देखा तो महिलाओं की टोली गमले में लगे तुलसी का पूजन कर रहीं थी, लेकिन जिस लय में पूजन के लिए स्तुति उनके द्वारा की जा रही थी, उसको किसी संगीतज्ञ ने सुर, लय, ताल नहीं दिया था बल्कि यह उनके रोजाना के पूजन की विधि थी। बात करने पर पता चला कि यह कोई एक दिन की नहीं बल्कि कार्तिक माह पर्यंत पूजन का विधान है। गंगा स्नान, बिन्दु माधव का दर्शन और फिर सूर्य उगने के पूर्व ही तुलसी का पूजन जन्मजन्मांतर के पाप को नष्ट कर देता है।
वाराणसी। शास्त्रों में वर्णंन है कि माह में कार्तिक, तिथियों में एकादशी, नदियों में गंगा जगत के पालनहार भगवान विष्णु को अत्याधिक प्रिय है। लेकिन इन सब में ठाकुर जी को अगर सबसे अधिक प्रिय है तो वह है तुलसी। तुलसी की महिमा का वर्णन ऐसा है कि बिना तुलसी के भगवान नारायण छप्पन भोग भी स्वीकार नहीं करते। कार्तिक माह में काशी के पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान का विधान है, स्नान के बाद बिन्दु माधव का दर्शन सभी पापों को नष्ट कर देता है।
राक्षस कुल में जन्म के बाद भी नारायण को प्रिय हैं तुलसी
राक्षस कुल में जन्म के बाद भी भगवान विष्णु को सबसे अधिक तुलसी प्रिय हैं। महिलाओं की ओर से जब यह बात बतायी गयी तो मेरी जिज्ञासा और बढ़ी और हमने इसका वृतांत पूछा तो सभी ने बताया कि तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्मी यह बच्ची बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न ह७ुआ। राक्षस जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी। जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी। जलंधर तो युद्ध में चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को न हरा सके। सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास पहुंचे और सभी ने भगवान से प्रार्थना की, भगवान बोले, वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उससे छल नहीं कर सकता। इस पर देवता बोले कि भगवान दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं लेकिन हमारी मदद जरूर करें। इस पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए। वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया। इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया, और उसका सिर काट कर अलग कर दिया। जलंधर का कटा हुआ सिर जब महल में आ गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की ओर देखा जिन्होंने जलंधर का रूप धर रखा था।

इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके। वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया। देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया। इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहूंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि किसी भी शुभ कार्य में बिना तुलसी जी के भोग के पहले कुछ भी स्वीकार नहीं करुंगा। तभी से ही तुलसी जी की पूजा होने लगी।
कार्तिक माह में नहीं तोड़ते तुलसी
तुलसी का पूजन करने वाली महिलाओं की मानें तो पूरे कार्तिक माह पूजन करने वाली महिलाएं तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ती, इसके साथ ही रविवार व मंगलवार को तुलसी पौधो को छूती तक नहीं, इसके पीछे उन लोगों ने शास्त्रों में वर्णित तमाम दंथ कथाओं को बताया। उन महिलाओं में इस माह में बिना तुलसी के पूजन के पानी तक नहीं ग्रहण किया जाता है।
एकादशी को विवाह और तेरस को तुलसी अर्चन
महिलाओं ने बताया कि कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी पूजन का विधान है, भगवान शालीग्राम (नारायण का एक रुप)के साथ विवाह सम्पन्न कर मांगलिक कार्य का शुभारम्भ किया जाता है। घर-घर में पूजन के अलावा पंचगंगा घाट पर स्थित एक मठ में भी विधि विधान के साथ तुलसी का विवाह भगवान शालीग्राम के साथ सम्पन्न कराया जाता है। महिलाओं की ओर से बताया गया कि इसी माह में विवाह के बाद शुक्ल पक्ष के तेरस तिथि को पचगंगा घाट पर तुलसी छोड़ने (108 तुलसी पत्तों को भगवान विष्णु को अपर्ण करना) का भी विधान है इसके बाद ही तुलसी पूजन सम्पन्न हो जाता है।
तुलसी पूजन से सारे कष्टों का निवारण
तुलसी पूजन से सारे कष्टो का निवारण तो होता ही है साथ ही जिस घर में तुलसी का पौधा हो उस घर में किसी भी नकारात्क ऊर्जा का वास नहीं होता। वहीं ज्योतिषाचार्य बब्बन तिवारी ने बताया कि तुलसी पूजन का विधान कोई अनादि काल से हैं, सनातनी संस्कृति में हिन्दु के घर पर रामचरित मानस, तुलसी का पौधा, गीता, और लड़्ड् गोपाल का रहना उनके सनातनी संस्कार माने जाते हैं।
- डॉ० पं० दिनेश शुक्ल ज्योतिषाचार्य