- महाश्मशान पर चिता की भस्म से खेलते हैं होली
- महाश्मशान पर चार मार्च को मनायी जायेगी मसाने वाली होली
राधेश्याम कमल
वाराणसी। काशी का महाश्मशान जहां एक ओर विलाप और शोक है वहीं रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन होने वाली मसाने वाली होली में सभी चिता भस्म से सराबोर हो जाते हैं। ये भी काफी अजीब है कि एक ओर जहां चिताओं पर अंतिम संस्कार किया जाता है वहीं दूसरी ओर लोग चिता भस्म से जम कर होली खेलते हैं। यह परम्परा लगभग दो दशकों से चल रही है।
मणिकर्णिकाघाट महाश्मशान पर रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन होने वाली मसाने की होली में चिता की राख (भस्म) से होली खेली जाती है। चिता भस्म की होली अपने आप में अद्भुत एवं अनोखी है। इसे देखने व इसमें भाग लेने के लिए काशी ही नहीं दूर दराज से आये लोग इसमें शरीक होते हैं। मसाने वाली होली बनारस ही नहीं विश्व में भी मशहूर है। विदेशियों के लिए भी यह आकर्षण का केन्द्र बन जाता है।

इतिहास
मसाने वाली होली की शुरूआत 1999 में हुई। चिता भस्म की होली कार्यक्रम के संयोजक गुलशन कपूर ने बताया कि पहले यह आयोजन बाबा मसान के मणिकर्णिकाघाट स्थित मंदिर पर हुआ करता था। सभी लोग मंदिर के अंदर परम्परागत ढंग से इसका निर्वाह करते थे। 1999 में धीरे-धीरे इसको आमजनमानस से जोड़ दिया गया। जब इसकी शुरूआत हुई तो काशीवासी व अन्य लोग इससे जुड़ गये। धीरे-धीरे इसकी ख्याति बढ़ती गई। इसके साथ ही महाश्मशान पर लोगों की भीड़ भी बढ़ती गई। तीन चार महीना पहले श्मशानघाट पर चिताओं की राख (भस्म) को एकत्र करते हैं। उसको चलनी से साफ करके सिर्फ राख को रख लिया जाता है। इस तरह लगभग 15 बोरी (50 किलो वाली) राख एकत्र करके उसे मसाने वाली होली पर होली खेलते हैं।

मसाने की होली के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि इस दिन सभी चिता भस्म की होली से सराबोर हो जाते हैं। मध्याह्न में बाबा महाश्मशान का स्नान कराने के बाद उनकी आरती की जाती है। इसके बाद मध्याह्न में ही मसाने वाली होली की शुरूआत हो जाती है। इसे आदि से अनंत की यात्रा का पर्व भी कहते हैं। रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन द्वादशी पर काशी के महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर जलती हुई चिताओं के बीच मसाने की होली होती है।