Mumbai: 17 साल पहले 26/11 की ये तारीख… जिसने सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया का दिल दहला दिया था। हम बात कर रहे हैं, 26/11/2008 मुंबई में हुए आतंकी हमले की… जिस हमले में 150 से भी ज्यादा मासूमों की जान गयी थी। उस वक़्त मुंबई की दर्द भरी चीखें पूरे भारत में गूंज रही थी। आज भी उस दिन को याद कर के लोगों के दिलों मे दहशत आ जाती है। आइए जानते हैं कि कैसे दिया गया इस 26/11 की भयानक वारदात को अंजाम…

Mumbai: कैसे शुरू हुई हमले की तैयारी
पाकिस्तान का आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-ताइबा का हाफ़िज़ सईद, जो भारत में कई खतरनाक हमले करते रहता था। इन सबके बाद उसने बड़े अटैक की तैयारी करनी शुरू कर दी। 2001 में उसकी मुलाकात दाऊद गिलानी से हुई, जो पाकिस्तान का रहने वाला था, फिर कुछ सालों बाद शिफ्ट करके कनाडा चला गया था। हाफिज़ सईद ने दाऊद गिलानी को मुरीदके मे मिलने को बुलाता है जो कि आतंकवादियों का ट्रेनिंग क्षेत्र था। वहाँ उसकी ट्रेनिंग होती है, उसके नाम, पता सब बदल दिये जाते हैं।

हालांकि भारतीय एजेन्सीयों (Mumbai) का कहना है कि पाकिस्तान कि ISI भी इसमें शामिल है, क्योंकि US में बिना जांच के पासपोर्ट नही बन सकता। साथ ही दाऊद गिलानी कई गैरकानूनी मामलों में पकड़ा गया है।
अनाथ, अनपढ़ लड़कों को बनातेआतंकवादी
उधर, दूसरी तरफ पाकिस्तान में अनाथ, अनपढ़, घर से भागे हुए, जवान लड़के ढूँढे जाने लगे। इन सबकी भारत के खिलाफ एक टीम बनी जिसे कई पड़ावों में ट्रेनिंग दिया गया। ट्रेनिंग के बाद कुल 10 लड़कों को अटैक के लिए तैयार किया जाता है। फिर उनकी योजना के अनुसार 27 सितंबर 2008 को रोजा के दौरान ही अटैक किया जाएगा। लेकिन इसी खास वक्त में भारतीय RAW को सैन्य गुप्त सूचना मिलती है, जिसके बाद जगह-जगह पर छापे मारे जाते हैं।

मुंबई (Mumbai) और दिल्ली को रेड अलर्ट में रखा गया। जिस वजह से उसने हमले की तारीख बदलकर 26 नवम्बर कर दी। फिर वो 10 आतंकवादी मुंबई के बाधवार पार्क, कोलबा में जा पहुंचे। ये इलाका मछुवारों का था, जिस वजह से किसी को शक नही होता। साथ ही टार्गेट भी थोड़े-थोड़े ही दूर पर थे। उसके बाद दो-दो के जोड़ी में 400 से ज्यादा गोलियां लेकर निकलते हैं।

हमलों में गयी सैकड़ों लोगों की जान
ताज होटल (Mumbai) से लेकर नरीमन हाउस तक, सीएसटी स्टेशन से लेकर लियोपोल्ड कैफे तक काफी बम बारी होती है। जिसमें हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अशोक कमाते और कई पुलिसकर्मी शहीद हुए। आतंकवादियों के साथ 60 घण्टे लगातार हमले होते रहे। इसमें 166 मासूमों की जान भी चली गयी। हमारे बहादुर सैनिकों बहादुरी के चलते आतंकवादी मारे गये। हमला के धुंए के शांत होने के बाद हर तरफ लाशों के चिथड़े दिखें। इमारतें भी ढह गयी। रोते-बिलखते बचे हुए परिजन भी दिखे। भारतीय लोगों के दिलों में आज तक उस धमाके की दहशत भरी गूंज है।

