- परिवर्तन के साथ ही अब जनहित के मुद्दे व्यक्तिगत स्वार्थ में बदल गये
- पहले सदन में विचारों में मतभेद के बावजूद सभी में थी समझदारी
- सात बार के विधायक रहे श्यामदेव राय चौधरी दादा से खास मुलाकात
राधेश्याम कमल
वाराणसी। नगर निगम के सदन में पहले सुकून और शांति हुआ करती थी लेकिन अब हंगामा होता है। सदन में जनहित के मुद्दों पर चर्चा तो आज भी होती है लेकिन अब उसका तरीका बदल गया है। परिवर्तन के साथ ही अब जनहित के मुद्दे निजी स्वार्थ में बदल गये हैं। पहले सदन में विचारों में मतभेद के बावजूद सभी में आपस में समझदारी थी लेकिन अब ऐसा नहीं दिखता है। ये कहना है भाजपा के पूर्व 83 वर्षीय विधायक श्यामदेव राय चौधरी दादा का।
श्यामदेव राय चौधरी ‘दादा’ 1968 से लेकर 1973 तक नगर निगम के पार्षद भी रहे। श्यामदेव राय चौधरी पहली बार 1989 में शहर दक्षिणी से भाजपा विधायक बने थे। इसके बाद 2017 तक लगातार सात बार विधायक चुने जाते रहे। श्याम देव राय चौधरी का नाम आज भी जुझारू नेताओं के रूप में शहर में लिया जाता है। चाहे बिजली की समस्या हो या फिर पेयजल का संकट हो या फिर शहर का कोई भी ज्वलंत मुद्दा हो दादा सभी के लिए हमेशा खड़े रहते थे। श्यामदेव राय चौधरी ही शहर के एक ऐसे नेता रहे जिन्होंने कभी किसी भी सरकार के समक्ष समझौता नहीं किया। अपने ही शासन में कुछ कहने की हिम्मत भी दिखायी।
बिजली की समस्या को लेकर मैदागिन में लगातार कई दिनों तक चले उनके आमरण अनशन के बाद अखिलेश यादव सरकार ने उनकी मांगें पूरी की थी। श्यामदेव राय चौधरी अब अस्वस्थ्य होकर घर पर पड़े हैं। कहा कि अब पालिटिक्स से मेरा कोई नाता नहीं रहा। नगर निगम का सदन तब और अब संदर्भ को लेकर पूर्व विधायक श्यामदेव राय चौधरी दादा से उनके बड़ादेव (हौजकटोरा) स्थित आवास पर मुलाकात की गई। इस दौरान जनसंदेश टाइम्स ने उनसे इस मुद्दे पर लंबी बातचीत की।
पहले पार्षद ही चुनते थे मेयर, नहीं होता था चुनाव
श्यामदेव राय चौधरी बताते हैं कि 1973 के बाद नगर निगम में चुनाव नहीं हुआ। 1979 में चुनाव हुआ था। पुराने संस्मरणों को याद करते हुए वे बताते हैं कि पहले मेयर पद के लिए चुनाव नहीं होता था। पार्षद ही मेयर चुनते थे। कहा कि वैसे तो हर क्षेत्र में परिवर्तन हुआ है। नगर निगम के सदन में भी परिवर्तन हुआ है। हमारे समय में नगर निगम का माहौल काफी अच्छा था। नैतिक मूल्यों पर चर्चा होती थी। विचारों में भले ही मतभेद रहा हो लेकिन आपस में समझदारी बहुत ही ज्यादा रहती थी। सदस्य जिन मुद्दों को सदन में रखते थे उसका मतलब होता था।
हंगामा दिखाने के लिए मीडिया का सहारा
आज भी जनहित के मुद्दों पर चर्चा होती है लेकिन उसका तरीका बदल गया है। अब तो जनहित के मुद्दे व्यक्तिगत स्वार्थ में बदल गये हैं। कहा कि सदन में पहले शांति हुआ करती थी। काफी सुकून था लेकिन आज हंगामे का सहारा लिया जा रहा है। अब तो सदस्यों को हंगामा दिखाने के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ता है। पहले इतना हंगामा नहीं था। बिना शोर शराबे के बातें सुनी जाती थी। लेकिन आज सब कुछ बदल गया।
देश व समाज का असली मालिक तो है जनता
श्यामदेवराय चौधरी दादा बताते हैं कि समाज एक आइना है। समाज ही बता सकता है कि कौन कैसा है। सभी कहते हैं कि हम अच्छा हैं। कहा कि देश व समाज का असली मालिक तो जनता है। जनता के हित के सिवाय हमने कुछ जाना नहीं है। जनता के हित के लिए ही लोग चुने जाते हैं। उसका हित सर्वोपरि है लेकिन अब परिस्थितियां बदलती जा रही है।
जनता अपनी ताकत को पहचानें
श्यामदेव राय चौधरी दादा बताते हैं कि जनता को अपनी ताकत पहचाना चाहिए। इसके साथ ही उसका सही उपयोग करना चाहिए। इससे देश व समाज में सुधार आ सकता है। कहा कि जनता हमेशा सर्वोपरि रही है और रहेगी। लेकिन जरुरत है अच्छे लोगों के पहचान करने की।
जनता का जो प्यार पहले था आज भी है बरकरार
यह सवाल किये जाने पर कि क्या जनता आज भी आपके पास आती है? कहा कि वैसे तो मैं कुछ भी नहीं हूं। जहांं शक्ति है वहीं भक्ति भी है। लेकिन मुझे संतोष है कि इस स्थिति में भी जो जनता का प्यार पहले था आज भी बरकरार है। किसी भी व्यक्ति के लिए यह संतोष की बात हो सकती है। आज भी कोई आदमी हमारे पास कोई काम लेकर आता है तो हम किसी ने किसी को माध्यम बना कर कोशिश करते हैं कि उसका कार्य हो जाय। लेकिन राजनीति हित के लिए कोई काम नहीं करते हैं। टिकट के लिए कभी नहीं किया।
ईश्वर से है शिकायत, सुख-दु:ख तो जीवन के हिस्से हैं
श्यामदेव राय चौधरी दादा रोजाना सुबह पांच बजे उठते हैं। पहले रोज टहलने के लिए निकलते थे और लोगों से घंटों मुलाकात भी करते थे। वे बताते हैं कि उन दिनों समय का पता ही नहीं चलता था। अब तो एक उम्र ही बीत गई। उम्र व शारीरिक कारणों से अब वह बात नहीं रह गई है जिसका कि मुझे भगवान से शिकायत है। कहा कि लेकिन भगवान भी क्या करेंगे उम्र का तकाजा जो है।
डाक्टर भी हंसी मजाक में कहते हैं कि आप पैदल इतना चल चुके हैं कि आपका सब कुछ खर्च हो चुका है। आपको अफसोस नहीं होना चाहिए। कहा कि मुझे तो शारीरिक के साथ ही मानसिक कष्ट भी हुआ। कोरोना काल में पुत्र के निधन से उनको सबसे बड़ा कष्ट पहुंचा था। संतान को तो वृद्धावस्था की लाठी कहते हैं। कोविड ने तो न जाने कितने ही लोगों का जीवन छीन लिया। वैसे सुख-दु:ख तो जीवन के हिस्से हैं। उन रास्तों से हमें गुजरना पड़ता है।